शनिवार, 6 जून 2020

5 साल पहले पीएम मोदी ने मनरेगा योजना का मजाक उड़ाया था, लॉकडाउन के दौरान इसी ने 2.63 करोड़ गरीब परिवारों को रोजगार दिया

तारीख: 27 फरवरी 2015... दिन: शुक्रवार। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण पर हो रही चर्चा का जवाब दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने यूपीए सरकार के समय साल 2005 में आई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर एक टिप्पणी की थी।

मोदी ने कहा था, "मेरी राजनैतिक सूझबूझ कहती है, मनरेगा कभी बंद मत करो..मैं ऐसी गलती कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मनरेगा आपकी (यूपीए) विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है.. आजादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा.. यह आपकी विफलताओं का स्मारक है, और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा... दुनिया को बताऊंगा, ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 सालों के पापों का परिणाम हैं।”

प्रधानमंत्री मोदी जब यह बोल रहे थे, तबसदन में जमकर ठहाके लग रहे थे। उनकी यह टिप्पणी यूपीए की इस योजना का मखौल उड़ाती नजर आ रही थी। लेकिन लॉकडाउन के दो महीने जब देशभर में मजदूर वर्ग बेरोजगार होकर पलायन कर रहा था, तब यही एक योजना थी, जिसने ग्रामीण इलाके में मजदूरों को ज्यादा परेशान नहीं होने दिया। लॉकडाउन के शुरुआती 2 महीनों में देश के ग्रामीण इलाकों में 2.63 करोड़ परिवारों को इस योजना का लाभ मिलता रहा। हर परिवार को लॉकडाउन के 60 दिनों में से 17 दिन काम मिला, जो इनके खाने-पीने और जरूरी खर्चों के लिए पर्याप्त था।

2020-21 के मार्च और अप्रैलमहीने में मनरेगा के तहत मिले रोजगार की तुलना पिछले साल से की जाए तो ज्यादा अंतर नजर नहीं आता। वित्त वर्ष 2019-20 में 5.48 करोड़ परिवारों को इस योजना के तहत सालभर में औसत 48 दिन का काम मिला था। इस हिसाब से इस वित्त वर्ष के 2 महीनों का आंकड़ा ठीक-ठाक ही कहा जाएगा।

मनरेगा से सबसे ज्यादा फायदे में रहा भाजपा शासित राज्य उत्तरप्रदेश
भाजपा शासित राज्य हो या गैर भाजपा शासित राज्य, हर राज्य में लॉकडाउन के दौरान यह योजना लाखों गरीब परिवारों का सहारा बनी। उत्तर प्रदेश कोइस योजना का सबसे ज्यादा लाभ मिला। यहां लॉकडाउन के दौरान 40 करोड़ परिवारों को मनरेगा ने रोजगार दिए। यहां 1091 करोड़ रुपए सिर्फ मजदूरों को मिलने वाले मेहनताने पर खर्च हुए। लॉकडाउन के दौरान ही यूपी में मनरेगा के तहत 43 हजार से ज्यादा काम भी पूरे हुए।

मोदी सरकार भी मनरेगा के सहारे;केन्द्र ने20 दिन पहले ही इस योजना को 40 हजार करोड़ अतिरिक्त दिए
इस साल बजट में मनरेगा पर 61,500 करोड़ का प्रावधान किया गया था। लेकिन 17 मई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा को 40 हजार करोड़ अतिरिक्त देने की बात कही। यानी मनरेगा के बजट को सीधे-सीधे 65% बढ़ा दिया गया। यह इसलिए क्योंकि लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण इलाकों में यही एक योजना थी, जो लोगों को रोजगार दे रही थी। और फिर शहर से गांव वापस लौटे वे मजदूर, जिनके पास अब कोई काम नहीं बचा, उनके लिए भी सरकार को रोजगार का कोई न कोई बंदोबस्त तो करना ही था। ऐसे में मनरेगा पर बजट बढ़ाना ही सरकार के पास सबसे बेहतर विकल्प था।

पिछले साल केन्द्रीय कृषि मंत्री ने मनरेगा को जल्द ही बंद करने की बात कही थी
पिछले साल जुलाई में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा को बताया था कि मोदी सरकार मनरेगा को ज्यादा दिनों तक चलाने के पक्ष में नहीं है। तोमर ने कहा था, “यह योजना गरीबों के हित के लिए है, जबकि सरकार का अंतिम लक्ष्य गरीबी खत्म करना है। ऐसे में गरीबी मिटाने के बाद सरकार मनरेगा को खत्म कर देगी।”

कृषि मंत्री ने यह बयान तो दिया था लेकिन मोदी सरकार के पिछले 4 सालों को ही देख लें तो लगातार इस योजना पर केन्द्र सरकार ने बजट बढ़ाया ही है। 2017-18 में यह 48 हजार करोड़ था, जो 2018-19 में 55 हजार करोड़ हुआ। 2019-20 में मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया, वहीं 2020-21 के लिए यह राशि 61 हजार 500 कर दी गई। बहरहाल, 17 मई के बाद 2020-21 के लिए मनरेगा का बजट 1 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है।

क्या है मनरेगा योजना?
मनरेगा योजना यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान लाई गई थी। 23 अगस्त 2005 को इस योजना का बिल संसद से पास हुआ और 2 फरवरी 2006 से यह योजना 200 पिछड़े जिलों में लागू कर दी गई। फिलहाल यह देश के 644 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू है। इस योजना का मकसद एक वित्त वर्ष के 365 दिनों में से ग्रामीण इलाकों के परिवारों को 100 दिन तक रोजगार उपलब्ध कराना है।



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MGNREGA scheme helps poors in rural area in coronavirus lockdown


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