देश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां ये देखना महत्वपूर्ण है कि लोग ठीक भी बहुत तेजी से हो रहे हैं। इसलिए बेहतर होगा कि हम कुल केसों की संख्या से ज्यादा सक्रियमामले देखें। इस समय एक्टिव केस की दर करीब 3.1% है। वहीं ऐसे केस 23 दिन में दोगुने हो रहे हैं।
इसके अलावा आज देश में मृत्यु दर बेहद कम है। सक्रिय मामलों से ही पता चलता है कि वाकई में कितने लोग हैं जो हमारी स्वास्थ्य सुविधाओं पर भार डाल सकते हैं। अच्छी बात यह है कि कोविड के अधिकांश मरीजों को अस्पताल या वेंटिलेटर की जरूरत ही नहीं पड़ती है। इन्हें कोविड के लक्षण भी नहीं रहते हैं। कुछ मरीज जो अस्पतालों में एडमिट होते हैं उनमें भी 5% लोगों को ही ऑक्सीजन सपोर्ट या वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है।
जहां तक रोज आने वाले केसों की संख्या है तो हम पूरे देश को न देखें। समझने की कोशिश करें कि नए केस कहां से आ रहे हैं। क्योंकि अब नए केसों में करीब 70 फीसदी केस दिल्ली, मुंबई और तमिलनाडु से आ रहे हैं। इसका मतलब है कि देश में इंफेक्शन कंसंट्रेटेड (संकेंद्रित) है।
अलग-अलग राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएं भी अलग-अलग हैं। जैसे आप कुल केस देखते हैं तो दिल्ली में तमिलनाडु से केसेज कम हैं, लेकिन दिल्ली का डेथ रेट देखेंगे तो तमिलनाडु से करीब 10 गुना है। इससे यही समझ आता है कि अब सिर्फ केस लोड समझना जरूरी नहीं है बल्कि राज्योेंं का हेल्थ मैनेजमेंट भी समझना होगा।
आपके राज्य में आइसोलेशन का सिस्टम क्या है, कोविड डेडिकेटेड अस्पताल कितने हैं, ये कैसे काम कर रहे हैं, बेड की उपलब्धता क्या है आदि। भारत एक बड़ा देश है। लंबे समय बाद लॉकडाउन हटा है। ऐसे में नंबर तो बढ़ेंगे ही। रिकवरी अच्छी है लेकिन हमें सतर्क रहना होगा।
हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, केरल आदि अच्छा काम कर रहे हैं। केरल में शुरू में केस कम हुए, लेकिन बाद में यहां गल्फ देशों से लोगों की वापसी के बाद केस बढ़े लेकिन मृत्यु दर तब भी कम है। बड़े राज्य की बात करें तो राजस्थान, उत्तरप्रदेश ठीक-ठाक प्रबंधन कर रहे हैं।
यहां समय के साथ संक्रमण दर सुधरी ही है। हमने दुनिया के बड़े देशों के मुकाबले काफी बेहतर काम किया है। अमेरिका में ही एक लाख लोगों से ज्यादा की मौत हो चुकी है। भारत में भी करीब दो लाख 80 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं लेकिन कुल मौतें करीब 8485 ही हैं।
जबकि ब्रिटेन जैसे छोटे देश में ही 41 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। हमने लॉकडाउन काफी शुरू में ही कर लिया था। इस कारण हमें कोरोना के लिए डेडिकेटेड हॉस्पिटल, क्वारेंटाइन सेंटर, आदि बनाने का समय मिल गया।
लॉकडाउन संक्रमण की दर को कम करता है और आप उस समय में तैयारी कर सकते हैं। भारत ने यही किया। इसलिए हम लोगों को बचा पा रहे हैं। यूरोप में काफी केस सामने आने के बाद लॉकडाउन किया।
देश में कम्यूनिटी स्प्रेड को लेकर बहस चल रही है।
अब हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि कम्यूनिटी स्प्रेड हो चुका है। जैसे मुंबई में आज 53 हजार से ज्यादा और दिल्ली में 34 हजार से ज्यादा केस हो चुके हैं। यह साफ संकेत है कि कम्यूनिटी स्प्रेड हो चुका है। बस जरूरत ये समझने की है कि यह कहां हो रहा है, सुपर स्प्रेडिंग की आशंका कहां ज्यादा हो सकती है।
दूसरी तरफ सरकार लगातार अर्थव्यवस्था सुधारने का प्रयास कर रही है। ग्लोबल इकोनॉमी में बहुत अनिश्चितता है। किस सेक्टर पर कितना असर होगा इसका अंदाजा फिलहाल नहीं लगाया जा सकता है। इसीलिए सरकार जो पैकेज लाई है उनमें मॉनिटरी पॉलिसी और फिस्कल पॉलिसी पर जोर दिया गया है।
इसमें एमएसएमई और पॉवर सेक्टर आदि का ध्यान रखा गया है। अब जब सरकार के पास ये जानकारी नहीं है कि कौन से सेक्टर विनर और कौन से लूजर हैं तो वह किसी एक सेक्टर को सपोर्ट नहीं दे सकती है। इसलिए बड़े नियोजकों को लक्ष्य किया गया है।
यह ब्रॉड स्ट्रोक पॉलिसी है। आधारभूरत संरचनात्मक सुधार किए गए हैं। अभी नीचे के 40 फीसदी लोगों के लिए काम करना बेहद जरूरी है। पैकेज इन्हें कवर करता है। गांव में भी रोज़गार कम हैं, इसीलिए मनरेगा के आवंटन बढ़ा दिए गए हैं इससे गांव गए मज़दूरों को फायदा मिलेगा।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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