कोरोना संकटमें जरूरतमंदों की मदद के लिए कई चेहरे सामने आए। इन्होंने जाति-मजहब से परे कौमी एकता की मिसाल पेश की। लखनऊ की सईद उज्मा परवीन व कुली मुजीबुल्ला की कहानी भी कुछ ऐसीही है। शरीर से दुबली-पतली उज्मा हर दिन अपनी पीठ पर 20 लीटर वाली स्प्रेयर मशीन लादकर पुराने लखनऊ की उन तंग गलियों में पहुंच जाती हैं, जहां नगर निगम की टीम ने सैनिटाइजेशन से हाथ खड़े कर दिए थे। उज्मा ने इस काम में न तो मजहब का भेद रखान ही ऊंच-नीच का।
44 दिनमेंउज्मा नेलखनऊ के 20 मंदिर, 8-10 मस्जिद, पांच गुरुद्वारे समेत 20 उन क्षेत्रों को सैनिटाइज करने का काम किया है।उसे अपनों से ताने भी मिलेलेकिन उसने कमजोर करने वाले लफ्जों को अनसुना कर दिया और हर सुबह नई उर्जा के साथ अपने काम में जुट गई।
इससे पहले उज्मा नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को लेकर सुर्खियों में आई थी। उसे घंटाघर में 'झांसी की रानी' की संज्ञा दी गई थी। इसी तरह चारबाग रेलवे स्टेशन पर कुली मुजीबुल्ला ने मजदूरोंका फ्री में लगेज उठाया।
कहानी 1: पुराने लखनऊ की तंग गलियों को सैनिटाइज करने में खर्च किए 4लाख
उज्मा कहती हैं,"लखनऊ में तमाम इलाके ऐसे हैं, जहां सरकारी व्यवस्था पहुंचने में दिक्कत होती है। इस आपदा में मुझे लगा किजो भी भागीदारी मैं निभा सकूं वह करना चाहिए। इसलिए मैंने इस काम की शुरुआत की।
दिन में करीब दो से चार घंटे तक इसके लिए समय देती हूं। पहले दिन मैंने फैजुल्लागंज स्थित सीता-राम मंदिर को सैनिटाइज कर अपने काम की शुरुआत की थी। इस दौरान लोगों ने कई बार ताने दिए किमहिलाएं ऐसा नहीं कर पाएंगी ये दो तीन दिन का ही दिखावा है। लेकिन अब उन्हीं लोगों के फोन आते हैं किकहीं मेरी मदद लेनी होगी तो बताइएगा।"
उज्मा यह काम बीते 26 अप्रैल से कर रही हैं। अब तक लखनऊ के 20 से ज्यादा इलाकों को सैनिटाइज किया हैं, जहां नगर निगम की टीम नहीं पहुंच पा रही है। बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, फैजुल्लागंज, बालागंज, कैम्पल रोड, जमा मस्जिद, खदरा, ठाकुरगंज, सहादतगंज, मंसूर नगर इलाको में खुद जाकर सैनिटाइज किया है।
खुद खरीदा कैमिकल औरस्प्रेयर मशीन
उज्मा का कहना है,"सैनिटाइज करने के लिए स्प्रेयर मशीन से लेकर केमिकल उन्होंने अपने खर्चे पर खरीदा है।मैंने बच्चों के गुल्लक फोड़ दिए। परिवार के सभी सदस्य ने कुछ न आर्थिक मदद की।
लॉकडाउन के पहले दिन से अभी तक चार लाख से ज्यादा रुपए खर्च हो चुके हैं। वहीं, तमाम लोगों ने जब मेरे काम के बारेमें सोशल मीडिया पर सुना तो आर्थिक मदद की। मैं जब भी कहीं सैनिटाइजेशन के लिए जाती हूं तो यह कभी नहीं सोचती कि यहां किस धर्म के लोग रहते हैं। मेरे जेहन में सिर्फ हिंदुस्तान की तस्वीर उभरती है। जिसे महफूज रखना हम सभी का कर्तव्य है।"
पति ट्रैवल का बिजनेस करते हैं, दो बच्चों की मां उजमा
सआदतगंज की रहने वाली उज्मा परवीन ग्रेजुएट हैं। पति सैफुल हसन पहले सऊदी अरब में रहते थे लेकिन अब लखनऊ में रहकर ट्रैवल एजेंसी का काम करते हैं। उनके दो बच्चे हैं,वलीउल्लाह व वीर अब्दुल। हमीद अभी केजी में पढ़ता है। बीते साल दिसंबरमें जब नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लखनऊ के घंटाघर मैदान में धरना शुरू हुआ था तो उसमें भी उज्मा शामिल हुईं थीं।
कहानी 2: 80 साल के कुली मुजीबुल्ला ने फ्री में उठाया लगेज
देश में लॉकडाउन से पहले ही ट्रेनें चलना बंद हो गईं थीं।इससे रेलवे स्टेशनों पर तमाम कुली बेरोजगार हो गए। चारबाग रेलवे स्टेशन पर 16 नंबर बिल्ला लगाकर काम करने वाले 80 साल के मुजीबुल्ला भी उनमें से एक थे। लेकिन, जब 3 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत हुई थी तो मुजीबुल्ला मजदूरोंकी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने सुबह से रात तक मजदूरों का लगेज फ्री में उठाया। इस काम में उन्होंने जाति, धर्म का कोई भेद नहीं किया।
प्रियंका गांधी ने काम की तारीफ की
कुली मुजीबुल्ला बताते हैं, "वे 50 साल से चारबाग स्टेशन पर कुली का काम कर रहे हैं। पहले भी अगर कोई गरीब या जरूरतमंद हाेता थातो उसका लगेज फ्री में ही उठाते थे। लेकिन, कोरोना संकट की सबसे बड़ी चोट मजदूरों पर ही पड़ी।उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वे मुझे दे पाते। उनकी तो जितनी मदद हो, वह कम थी,इसलिए मैंने उनका फ्री में लगेज उठाया। मुजीबुल्ला पांचों वक्त के नमाजी हैं।कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी चिठ्ठी लिखकरउनके इस काम की तारीफ की।"
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