बेटे के पैदा होने के बाद से एक ही सपना देखा था कि वो बड़ा होकर डॉक्टर बने। गांव में लोगों ने कहा कि बेटे को डॉक्टर बनाना है, तो इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाओ। हिंदी मीडियम वाले डॉक्टर नहीं बन पाते। इसलिए छठी क्लास से उसे इंग्लिश मीडियम में डाल दिया। कर्ज लेकर पढ़ाया। एमबीबीएस करने चीन तक भेज दिया, लेकिन कुदरत ने हमारे साथ बड़ा खेल खेला। जब बहू ढूंढने जाने का सोच रहे थे, तब बेटे का तीसरा करने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
इतना कहते-कहते राजेंद्र चौधरी फूट-फूटकर रोने लगे। वे डॉक्टर जोगिंदर चौधरी के पिता हैं। 27 साल के डॉक्टर जोगिंदर दिल्ली के डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर हॉस्पिटल में करीब सालभर से नौकरी कर रहे थे। पहले वो फ्लू क्लीनिक में थे, लेकिन नवंबर 2019 से उन्हें केजुअल्टी डिपार्टमेंट में शिफ्ट कर दिया गया था। 23 जून को उन्हें बुखार आया। उनके दो साथी कोरोना पॉजिटिव आए थे। इसलिए उन्होंने तुरंत कोरोना टेस्ट करवाया। 27 जून को उन्हें पता चला कि वो कोरोना पॉजिटिव हैं। सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। इसी कारण उन्हें डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर हॉस्पिटल से लोक नायक जयप्रकाश हॉस्पिटल (एलएनजेपी) में एडमिट कर दिया गया।
एलएनजेपी में भी उनकी हालत गंभीर ही बनी रही। इसलिए उन्हें 7 जुलाई को सर गंगाराम हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया गया। उन्होंने अपने पिता को कहा था कि मुझे सर गंगाराम में एडमिट करवा दीजिए। हालांकि, उनकी हालत खराब ही होती चली गई। पहले ब्लड प्रेशर कम हुआ। इम्फेसिमा का शिकार हो गए। सांस लेने में बहुत तकलीफ होने लगी और आखिरकार कोरोना से एक माह की लड़ाई के बाद 27 जुलाई की रात उनकी जान चली गई।
घरवाले जोगिंदर की शादी के लिए लड़की देखने जाने वाले थे। एक लड़की लखनऊ और दूसरी देवास की थी। पिता ने बेटे को फोन लगाकर कहा था कि हमने लखनऊ वालों को 26 जुलाई को आने का बोल दिया है। तुम छुट्टी लेकर आ जाना। पहले लखनऊ जाएंगे और फिर देवास से जो रिश्ता आया है, वो भी देखेंगे। जो लड़की तुम्हे पसंद आएगी, उससे शादी करवा देंगे। जोगिंदर और उनके पिता की यह बात 24 जून को हुई थी। तब जोगिंदर ने पिता को कहा था कि मुझे तबियत ठीक नहीं लग रही। बुखार आ रहा है। इसलिए मैं अभी नहीं आ पाऊंगा। पिता को लगा था कि बुखार ही है तो है, हो जाएगा ठीक। इसलिए उन्होंने बहुत चिंता नहीं की थी।
जोगिंदर मप्र के नीमच जिले के सिंगोली थाना क्षेत्र में आने वाले झांतला गांव के रहने वाले थे। पिता गांव में ही खेती करते हैं। घर में मां-बाप के अलावा एक छोटा भाई और एक छोटी बहन है। जोगिंदर को जब एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए चीन भेजना था, तो पिता के पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने 18 लाख रुपए में अपना घर ही बेच दिया था। इससे जो पैसा आया, उसी से बेटे का एमबीबीएस पूरा हो पाया था।
घर बेचने के बाद परिवार गांव में ही किराये के घर में रहने लगा था। राजेंद्र चौधरी कहते हैं, मैंने छोटे बेटे को ज्यादा नहीं पढ़ाया, क्योंकि मेरी इतनी हैसियत नहीं थी और मेरा सपना बड़े बेटे ने पूरा कर दिया था। वो डॉक्टर बन गया था। हमने सोचा था कि जब उसका एमडी हो जाएगा तो उसको गांव के पास में ही बुला लेंगे। फिर जब वो पैसे कमा लेगा तो यहीं हॉस्पिटल भी खोलेंगे, ताकि यहां के लोगों को इलाज के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े। परिवार पर अभी भी करीब 7 लाख रुपए का कर्जा है। पहले जो पैसा जोड़ा था, वो सब बेटे की पढ़ाई में ही लग गया था।
जोगिंदर के छोटे भाई कपिल कहते हैं, मेरा भैया इस गांव का पहला ऐसा लड़का था जो डॉक्टर बना। चीन से पढ़ाई की। उसे जयपुर में पता चला था कि चीन से एमबीबीएस कर सकता है। फिर उसने पापा को बताया तो वो उसे वहां भेजने को तैयार हो गए। जब से कोरोना आया तब से ही वो पेशेंट्स का इलाज कर रहा था, लेकिन कब खुद ही कोरोना की गिरफ्त में आ गया, पता नहीं चला। हम उससे रोज हालचाल पूछते थे। यदि लॉकडाउन नहीं लगता तो मार्च में ही उसकी शादी हो जाती। कपिल ने बताया, जब भैया का दिल्ली में इलाज चल रहा था, तब घर पर सब महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे थे, लेकिन हमारा भाई बच नहीं सका।
सर गंगाराम अस्पताल ने डॉक्टर जोगिंदर के पिता से इलाज का कोई शुल्क नहीं लिया। 4 लाख रुपए का बिल बना था, लेकिन जब अस्पताल को परिवार की स्थिति के बारे में पता चला तो उन्होंने बिल माफ कर दिया। रविवार की रात दिल्ली में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया। पिता जवान बेटे को आग देने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे, इसलिए छोटे भाई ने अंतिम संस्कार किया।
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