पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है, लेकिन तैयारी अभी से शुरू हो गई है। लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन करने वाली भाजपा को विधानसभा चुनाव को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। कोरोना के बीच भाजपा कैंपेनिंग में जुटी हुई है। विधानसभा केंद्रों में आत्मनिर्भर भारत का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
लोकसभा चुनाव के समय पार्टी के 350 कार्यकर्ता दूसरे राज्यों से प्रचार के लिए यहां आए थे, वे अभी भी यहां जमे हुए हैं और पार्टी के प्रचार में लगे हैं। प्रदेश में संगठन की जिम्मेदारी मेदिनीपुर के सांसद दिलीप घोष पर है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से घोष 2014 में सक्रिय राजनीति में आए।
पहले पार्टी की राज्य इकाई के महासचिव और फिर 2015 में अध्यक्ष बने।सांसद चुने जाने के पहले घोष, खड़गपुर से विधायक थे।प.बंगाल मेंसत्ता हासिल करने का दारोमदार उनपर है। विधानसभा चुनवा और पार्टी की रणनीति को लेकरदैनिक भास्कर ने उनसे बातचीत की।
क्या लोकसभा की तरह विधानसभा में भी भाजपा को समर्थन मिलेगा और पार्टी सत्ता में आएगी
घोष बताते हैं कि यहां के लोग परिवर्तन के लिए मन बना चुके हैं, लोगों को लगता है कि बदलाव होना चाहिए। घोष ने कहा कि ऐसा नहीं है कि लोकसभा चुनाव में हमें अचानक से 18 सीटें आ गई।एक साल पहले हम पंचायत चुनाव लड़े। लड़ाई-हिंसा हुई। सत्ताधारी दल ने 34% सीट पर किसी को पर्चा ही नहीं भरने दिया।
विदाउटकंटेस्ट जीते टीएमसी के लोग। उस चुनाव में हमने हर जिले में40% वोट हासिल किया। और लोकसभा में यह आंकड़ा 42% से अधिक हो गया। उन्होंने कहा किपंचायत चुनाव से ही लोगों का मन बदलने लगा है।
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की क्या रणनीति होगी? मुद्दे क्या होंगे?
मुद्दे तो कई हैं। यहां हर चीज गड़बड़ है। लोकतंत्र बचाना सबसे बड़ा सवाल है। जहां लोकल बॉडी के चुनाव में नॉमिनेशन तक नहीं कर सकते, वहां कैसा लोकतंत्र है? आज हमसभा तक नहीं करते। चुनाव में अगर भाग ही नहीं लेने दिया जाएतो फिर क्या और कैसी डेमोक्रेसी। बंगाल का एजुकेशन सिस्टम गड़बड़ हो गया है।
मुद्दे तो कई हैं। यहां हर चीज गड़बड़ है। लोकतंत्र बचाना सबसे बड़ा सवाल है। जहां लोकल बॉडी के चुनाव में नॉमिनेशन तक नहीं कर सकते, वहां कैसा लोकतंत्र है? आज हमसभा तक नहीं करते। चुनाव में अगर भाग ही नहीं लेने दिया जाएतो फिर क्या और कैसी डेमोक्रेसी। बंगाल का एजुकेशन सिस्टम गड़बड़ हो गया है।
यहां लॉ-आर्डर इतना खराब है कि कोई निवेश करना नहीं चाहता है। बंगाल की हालत इतनी खराब कभी नहीं थी, बिहार-यूपी में होता था लेकिन यहां तो सत्ताधारी पार्टी के एमएलए का मर्डर हो गया।म्युनिसीपैलिटी के चेयरमैन का मर्डर हो गया। जयनगर का एमएलए बाल-बाल बचा।
रुलिंग पार्टी के लोग जब सुरक्षित नहीं तो हमारी हालत क्या होगी आपसमझ सकते हैं। कोविड में रिलीफ बांटने गए तो हमें घर से निकलने ही नहीं दिया। पुलिस ने रास्ते से सामान ले लिया। हमें हाईकोर्ट जाना पड़ा। आप कल्पना कर सकते हैं, यहां स्थिति कैसी है।
बंगाल लोग काम की तलाश में आते थे, आज यहां से माइग्रेशन हो रहा है?
घोष ने कहा कि माइंग्रेंट लेबर को यहां सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि सभी प्रदेश वाले अपने लोगों को बुला लिए, लेकिन यहां की सरकार ने आने पर रोक लगा दिया। यहां की सरकार ने कह दिया कि जो जहां हैं वही रहे।कुछ लोग अपनी गाड़ी से और कुछ लोगपैदल आए। उन्होंने कहा कि यहां नौकरी-चाकरी नहीं है। लोगों को बाहर जाना पड़ रहा है। सबसे बड़ा लेबर सप्लाई का हब बन गया है बंगाल। एक समय था कि बंगाल से बाहर पढ़े-लिखे लोग जाते थे। डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, आईएएस, आइपीएस, बाद के दिनों में आईटी इंजीनियर।
बाहर से लोग यहां के जूट कारखानों में काम करने आते थे। आज फैक्ट्रियां लगभग बंद हो चुकी हैं। इन फैक्ट्रियों में यूपी-बिहार-ओडिशा के लोग काम करते थे। नॉर्थ बंगाल के चाय बागान में झारखंड के आदिवासी लोग काम करने आते थे। अबकोलकाता छोड़कर लोग पश्चिम भारत की ओर भाग रहे हैं। बंगाल के मूल निवासी भी भाग रहे हैं। पत्थर तोड़ने के लिए लोग तमिलनाडु जा रहे हैं। उन्होंने कहा किबांग्लादेश के घुसपैठिए आकर यहां के लोगों की नौकरी छीन रहे हैं।बांग्लादेश के 1 करोड़ लोग यहां अवैध रूप से रह रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में नार्थ बंगाल में भाजपा ने कैस स्वीप किया?
पहले से ही नॉर्थ बंगाल हमारी पार्टी के लिए पॉजिटिव था। 2014 में हमें 17% से अधिक वोट मिला। इस बार 40% को पार किया। हमने संगठन खड़ा किया है। बूथ स्तर पर लगातार काम किया। पहले मुश्किल से 15% बूथोंपर संगठन था। आज 85% बूथ रेडी है। करीब 80 हजार बूथों में से 63,000 बूथ पर आज हमारी टीम है। बाकी प्रॉसेस में है।
विपक्ष तो कहता है कि भाजपा का संगठन ही नहीं है तो चुनाव कैसे जीतेगी?
आज बीजेपी को छोड़कर किसी दूसरे दल के पास संगठन नहीं है। वर्चुअल रैली हम कर रहे हैं। 21 जुलाई को शहीद दिवस पर चीफ मिनिस्टर रैली करने वाली है। बूथ स्तर पर उनकी वर्चुअल रैली हो रही है। 50% बूथों तक वह पहुंच जाएं, मैं मान लूंगा कि उनका संगठन है। हम तो 63 हजार बूथों पर टीम खड़ीकर चुके हैं।
1.39 करोड़ लोग तो हमारी वर्चुअल रैलियों में सीधे जुड़े। विपक्ष के पास न कोई डाटा है, न कोई इंफ्रास्ट्रक्चर। पहले भी कभी नहीं था। सीपीएम ने स्ट्रक्चर खड़ा किया था। अब उनके सारे लोग भागकर हमारे तरफ आ गए। खासकर ग्राउंड स्तर के वर्कर। लोग जान गए कि सीपीएम से कुछ होने वाला नहीं है। टीएमसी को कोई हटा सकता है तो वह भाजपा है।
वाम दलों के कार्यकर्ताओं का समर्थन कितना टिकाऊ है?
विधानसभा चुनाव में वाम दलों को 30% वोट मिला था। आज 6-7% वोट बचा है। कांग्रेस भी नीचे खिसक गई है। विधानसभा में दोनों का गठबंधन था।
आप खड़गपुर से विधायक थे। अब सांसद हैं। उप-चुनाव में अपनी सीट तक नहीं बचा पाए?
योगी जी एमपी थे, सीएम बने। उप चुनाव में गोरखपुर सीट पार्टी हार गई। वह कितने बार की जीती हुई सीट थी हमारी। हम तो खड़गपुर से एक ही बार जीते। पहले भाजपा कभी नहीं जीती थी वहां से। 8-10 हजार वोट ही मिलता था। 8 हजार से 61000 तक हम गए।
योगी जी एमपी थे, सीएम बने। उप चुनाव में गोरखपुर सीट पार्टी हार गई। वह कितने बार की जीती हुई सीट थी हमारी। हम तो खड़गपुर से एक ही बार जीते। पहले भाजपा कभी नहीं जीती थी वहां से। 8-10 हजार वोट ही मिलता था। 8 हजार से 61000 तक हम गए।
ज्ञान सिंह सोहनपाल वहां से 9 बार के विधायक थे। पर्चा भरने के बाद से ही लोग उनकी जीत सुनिश्चित मानते थे। 91 हजार वोट मिलता था, हम उनको 55 हजार पर ले आए। उप-चुनाव में हमें 52 हजार वोट मिले। हमारा प्रत्याशी वही था जो पहले से वहां लड़ता रहा। वैसे उप-चुनाव में जो सरकार में रहता है, उसे एडवांटेज होता है।
बंगाल के चुनाव में बाहुबल की जरूरत पड़ती है? क्या करेंगे?
हम यहां सेंट्रल फोर्स की मांग करते हैं, उसके बिना यहां फेयर इलेक्शन नहीं हो सकता है। लोकसभा चुनाव के दौरान देश की 543 सीटों में 501 परकुछ नहीं हुआ लेकिन बंगाल की 42 सीटों में से एक भी सीट ऐसी नहीं रही जहांजहां ईंट-पत्थर नहीं चला। उप-चुनाव में सेंट्रल फोर्स नहीं थी, खूबधांधली हुई। घोष ने कहा कियहां पुलिस राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह बर्ताव करती है।
हम यहां सेंट्रल फोर्स की मांग करते हैं, उसके बिना यहां फेयर इलेक्शन नहीं हो सकता है। लोकसभा चुनाव के दौरान देश की 543 सीटों में 501 परकुछ नहीं हुआ लेकिन बंगाल की 42 सीटों में से एक भी सीट ऐसी नहीं रही जहांजहां ईंट-पत्थर नहीं चला। उप-चुनाव में सेंट्रल फोर्स नहीं थी, खूबधांधली हुई। घोष ने कहा कियहां पुलिस राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह बर्ताव करती है।
चुनाव के टिकट बंटवारे में जीताऊ कैंडिडेट कितना बड़ा फैक्टर होगा?
घोष ने कहा कि चुनाव में चेहरे का असर तो होता ही है। हमारी पार्टी नई है और नए सिरे से खड़ी हो रही है। हमारे पास उस कद के कम चेहरे हैं। दूसरी पार्टियों के लोग भी आकर हमारी पार्टी से जीत गए।दो-चार प्रतिशत वोट तो प्रत्याशी का होता ही है। नए आदमी में दिक्कत होती है। उसे पहचान कायम करने में ही चुनाव बीत जाता है।
प्रदेश में भाजपा का कौन चेहरा कौन होगा?
हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड में जहां हम चुनाव जीते वहां हमारा कौन फेस था? भाजपा की एक संगठन पद्धति है। हर कार्यकर्ता पार्टी को जिताने के लिए लड़ता है। एक साल पहले विप्लव दा त्रिपुरा गए। इसके पहले पार्टी को वहां मामूली वोट था। आज 50% वोट है। हमारे यहां पार्टी, संगठन और हमारे शीर्ष नेतृत्व का महत्व है।
बंगाल में भी अपनी विचारधारा, संगठन और अपने कार्यक्रम के बूते बढ़ रहे हैं। चुनाव बाद पार्टी तय करती है कि नेतृत्व कौन करेगा। राज्य की जनता का भाजपा पर लगातार भरोसा बढ़ रहा है। जनता जानती है कि भाजपा राज्य की कमान किसी अच्छे आदमी को ही देगी।
चेहरा नहीं तो चुनाव ममता बनाम मोदी हो जाएगा? और ममता भी यहीं चाहती हैं?
लोकसभा में तो टीएमसी ने स्लोगन दिया था, इस बार दीदी प्रधानमंत्री। 42 में 42 सीट जीतेंगे। हुआ क्या? 18 सीट हम जीत गए। उनकी सीटों में से 12 हम खा गए। रीजनल पार्टी में एक ही चेहरा होता है। कांग्रेस में भी फेस गांधी फैमिली से ही आएगा। इन पार्टियों में बस फेस है। पार्टी है ही नहीं। लेकिन, भाजपा में ऐसा नहीं है। पार्टी प्रधान है। फेस तो कल आ जाएगा। हम तो दर्जन भर पीएम-सीएम दे सकते हैं।
भाजपा बंगाल में कम्युनल कार्ड खेल रही है?
ऐसा कौन सा इश्यू है जिसके आधार पर भाजपा को यहां साम्प्रदायिक सिद्ध करेंगे। कोई बोलेगा 'सीएए' तो हम इसके प्रति कमिटेड हैं। हमारे संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ही यह कमिटमेंट है। आजादी की लड़ाई में सबका योगदान है। बंटवारे के बाद जो इधर आए हैं उन्हें नागरिकता देने की बात तो गांधी-नेहरू-पटेल ने भी की है।
ऐसा कौन सा इश्यू है जिसके आधार पर भाजपा को यहां साम्प्रदायिक सिद्ध करेंगे। कोई बोलेगा 'सीएए' तो हम इसके प्रति कमिटेड हैं। हमारे संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ही यह कमिटमेंट है। आजादी की लड़ाई में सबका योगदान है। बंटवारे के बाद जो इधर आए हैं उन्हें नागरिकता देने की बात तो गांधी-नेहरू-पटेल ने भी की है।
कम्युनल कार्ड हम नहीं हमारे विरोधी खेल रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। आपने सुना है कि देश में कहीं मुस्लिमों के लिए अस्पताल से लेकर अलग से शैक्षणिक संस्थान सरकारों नेबनाई हों। लेकिन बंगाल में यह हुआ है। यहां रिजर्वेशन के नाम पर 80% मुस्लिम को ओबीसी बना दिया गया।
कोई एथेनोग्राफिक सर्वे हुआ नहीं। कहां है संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण। कोई एफिडेविट बनाकर लिख देगा कि मैं नाई था, बढई था और बीडीओ जाति प्रमाण-पत्र दे देगा। यह भी लोगों को बेवकूफ बनाने लिए हो रहा है।यहां के मुसलमान सबसे गरीब हैं। साइकिल तक नहीं खरीद सकते। यहां बांटो और राज करो की राजनीति है। हम इस नीति का विरोध करते हैं तो हमें साम्प्रदायिक बताते हैं। भाजपा तो सबका साथ, सबका विकास की राजनीति करती है।
वाम के ही वर्कर टीएमसी में भी गए और आपके पास भी आ रहे? यह आइडियोलॉजिकल शिफ्ट है या अवसरवाद?
टीएमसी कीतो कोई आइडियोलॉजी और संविधान नहीं है।बस कमाने का रास्ता है। वाम दलों में तो जो एक बार बन गया तभी हटेगा जब भगवान ले जाएगा। भाजपा की अपनी विशेष कार्यपद्धति है, संविधान है। संगठन का प्रारूप है। तरीका है। दिलीप घोष जैसा किसान का बेटा आज प्रदेश भाजपा अध्यक्ष है।
टीएमसी कीतो कोई आइडियोलॉजी और संविधान नहीं है।बस कमाने का रास्ता है। वाम दलों में तो जो एक बार बन गया तभी हटेगा जब भगवान ले जाएगा। भाजपा की अपनी विशेष कार्यपद्धति है, संविधान है। संगठन का प्रारूप है। तरीका है। दिलीप घोष जैसा किसान का बेटा आज प्रदेश भाजपा अध्यक्ष है।
पांच साल पहले जिसका कोई ठीक से नाम तक नहीं जानता था। यह डेमोक्रेसी है। विचारधारा 5-10% के लिए होती है। बाकी लोग देखकर साथ चलते हैं। मैं कमिटेड हूं, मेरे साथ लोग हैं। कम्युनिस्ट पार्टी में भी 5% वही बचे हैं जो कमिटेड हैं। लेकिन टीएमसी में, वहां कोई नीति नहीं है, बस नेता है।
बंगाल की राजनीति दूसरे राज्यों से कैसे अलग है?
यहां विशेष प्रकार की राजनीति होती है। एक-एक आदमी 24 घंटे पॉलिटिक्स में इन्वॉल्व रहता है। यही पेशा है। बिहार में जात-पात की बात होती है तो बंगाल में पार्टी की बात करते लोग मिलेंगे। मोहल्ला बंटा हुआ है। इधर काली पूजा होगी तो उधर भी होगी। इधर किसी के श्राद्ध का भोज हुआ तो जहां किसी की मौत नहीं हुई है वहां भी भोज होगा। यह कल्चर बन चुका है। इसके कारण लोग विकास की बात कम करते हैं। राजनीतिक हिस्सेदारी पर जोर अधिक है। इसीलिए रोज कहीं न कहीं मार-काट होते रहता है।
यहां विशेष प्रकार की राजनीति होती है। एक-एक आदमी 24 घंटे पॉलिटिक्स में इन्वॉल्व रहता है। यही पेशा है। बिहार में जात-पात की बात होती है तो बंगाल में पार्टी की बात करते लोग मिलेंगे। मोहल्ला बंटा हुआ है। इधर काली पूजा होगी तो उधर भी होगी। इधर किसी के श्राद्ध का भोज हुआ तो जहां किसी की मौत नहीं हुई है वहां भी भोज होगा। यह कल्चर बन चुका है। इसके कारण लोग विकास की बात कम करते हैं। राजनीतिक हिस्सेदारी पर जोर अधिक है। इसीलिए रोज कहीं न कहीं मार-काट होते रहता है।
पुलिस भी निष्पक्ष नहीं है। जो सत्ता में है उसी के साथ है। सीपीएम राज मेंबिना पार्टी के नेता के कहे एफआईआर नहीं लिखा जाएगा। आज भी वही है। हमेंही मारते हैं, हमारे ऊपर ही केस करते हैं। 35 केस हो चुका है। हम टहलने निकलते हैं तो रोकते हैं। हमने भी ठान लिया है, देखें कहां-कहां और कितना रोकते हैं।
बंगाल पर भाजपा का अधिक फोकस क्यों?
हमारी पार्टी का सेंटिमेंट प.बंगाल से जुड़ा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की यह जन्मस्थली है। यह बॉर्डर स्टेट है। 2200 किमी से अधिक हमारी सीमा बंगलादेश से लगती है। अगर यह असुरक्षित रहेगा तो देश कैसे सुरक्षित रहेगा? जब तक कांग्रेस, सीपीएम, टीमएमसी सत्ता में रही, इन्होंने बॉर्डर सुरक्षित करने का प्रयास नहीं किया।
हमारी पार्टी का सेंटिमेंट प.बंगाल से जुड़ा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की यह जन्मस्थली है। यह बॉर्डर स्टेट है। 2200 किमी से अधिक हमारी सीमा बंगलादेश से लगती है। अगर यह असुरक्षित रहेगा तो देश कैसे सुरक्षित रहेगा? जब तक कांग्रेस, सीपीएम, टीमएमसी सत्ता में रही, इन्होंने बॉर्डर सुरक्षित करने का प्रयास नहीं किया।
देश की पश्चिमी सीमा पर फेंसिंग हो गई। लेकिन पूर्वी सीमा पर सिर्फ 1000 किमी की ही फेंसिंग हुई है। बाड़ लगने ही नहीं दे रहे इसलिए कि घुसपैठिए आएं और उन्हें जिताएं। अमित शाह जी भी कहते हैं कि सारा देश जीत जाएं तो भी हमारी जीत अधूरी है जब तक बंगाल नहीं जीतेंगे। यहां एंटी नेशनल और एंटी सोशल एक्टिविटी तेजी से बढ़ी है। यही सबसे बड़ा खतरा है। हमारी लड़ाई इसी के खिलाफ है। बंगाल सुरक्षित तभी होगा, जब यहां सत्ता परिवर्तन होगा।
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