बुधवार, 22 जुलाई 2020

शराब, गांजा ही नहीं भैंसा-राशन की भी होती है तस्करी, रिश्तेदार बनाकर भारत लाई जाती हैं नेपाली लड़कियां

बिहार के सुपौल जिले में आने वाले वीरपुर में पुलिस ने 180 बोतल नेपाली शराब पकड़ी। वीरपुर वह जगह है, जहां से नेपाल की बॉर्डर चंद कदमों की दूरी पर है। वीरपुर के लिए यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि यहां नेपाल-भारत के बीच होने वाली तस्करी बहुत आम बात है। चार दिन पहले बॉर्डर के नजदीक ही आने वाले मानिकपुर के बोरहा गांव में बच्चों को नदी में दो बोरियां मिली थीं, जिनमें नेपाली शराब भरी थी।

गांव के बच्चे नदी में लकड़ी इकट्ठा करने गए थे। दरअसल कोसी नदी में बहकर बहुत जलाऊ लकड़ियां बिहार आ जाती है। कई बार कीमती लकड़ी भी आ जाती हैं। इसलिए गांव के लड़के हर रोज नदी में कूदते हैं, ताकि लड़की इकट्ठा कर सकें। तभी उन्हें पानी में बहती हुई बोरियां मिलीं, जिनमें शराब भरी थी।

इस तरह नेपाल से लोग भारत में आते हैं और थैलियों में राशन ले जाते हैं। बॉर्डर पर यह सिलसिला दिनभर चलता है।

कहने को तो भारत-नेपाल बॉर्डर अभी सील है और किसी का आना-जाना नहीं लेकिन सच्चाई ये है कि बॉर्डर पर सिर्फ लोग ही इधर से उधर आना-जाना नहीं कर रहे बल्कि तस्करी भी पहले की तरह जारी है। आना-जाना चोर रास्तों से होता है। खेतों के किनारे-किनारे आते-जाते हैं।

नेपाल-बिहार बॉर्डर पर सिर्फ शराब की ही तस्करी नहीं हो रही बल्कि गांजा, भैंसा से लेकर राशन तक की तस्करी होती है। जब हम रक्सौल के पंटोका गांव में थे तो देखा कि चौकियों पर तो एसएसबी बहुत सख्त है लेकिन खेतों के रास्ते तस्करी चल रही है। मधवापुर-मटिहानी पहुंचने पर तो ऐसा लगा ही नहीं था कि बॉर्डर सील भी है।

यह फोटो मधवापुर-मटिहानी का है, जहां नेपाल और भारत की बॉर्डर आमने-सामने है।

खुलेतौर पर राशन की तस्करी होती दिखी। वीरपुर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और लोक भारती सेवा आश्रम चलाने वाले पंचम नारायण सिंह कहते हैं, नेपाल में गांजेकी खेती बहुत होती है। जबकि भारत में यह गैरकानूनी है। इसलिए वहां से गांजे की तस्करी बहुत होती है। वहां से भारत आने वाला गांजा सस्ता भी बहुत होता है। ढाई-तीन हजार रुपए में नेपाल से जितना गांजा बिहार पहुंच जाता है, दिल्ली जाते-जाते उसका रेट 25 से 30 हजार रुपए तक हो जाता है।

यही वजह है कि नेपाल से मैले-कुचैले कपड़े पहनकर तस्करी से जुड़े लोग आते हैं, जो थैली लटकाए रहते हैं और आसानी से गांजा बिहार में बेचकर चले जाते हैं। इनका पूरा नेटवर्क है। डिलीवरी की बात पहले ही तय होती है। कभी पगडंडी के रास्ते आते हैं तो कभी पानी के रास्ते आते हैं।

खेतोंं के रास्ते तस्करी का काम किया जाता है, क्योंकि सड़कों पर चेकिंग होती है।

नेपाल और भारत के बीच 1751 किमी लंबी बॉर्डर है और यह यूपी, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार और सिक्किम से होकर गुजरती है। सबसे ज्यादा 726 किमी का हिस्सा बिहार से ही जुड़ा हुआ है। दोनों देशों के बीच यह ओपन बॉर्डर है। जगह-जगह चेक पोस्ट हैं। एसएसबी के कैंप हैं चौकियां हैं लेकिन बाकी पूरा ऐसा इलाका है जो खुला है। हालात ऐसे हैं कि किसी के खेत का आधा हिस्सा भारत में है तो आधा नेपाल में है।

वहीं, बिहार के पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण,सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज ऐसे जिले हैं, जो नेपाल से सीमा साझा करते हैं। इसलिए इन जिलों में तस्करी होना बहुत आम बात है। पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी और सुपौल में हमने देखा कि दिन में राशन और रात में नशीले पदार्थ इधर से उधर पहुंचाए जा रहे हैं।

बिहार में कई दफा पुलिस नेपाल से आने वाली शराब की तस्करी को पकड़ चुके हैं।

बिहार में शराबबंदी है, इसलिए वहां नेपाल से शराब की तस्करी होती है। पंचम सिंह के मुताबिक, शराब की इतनी खपत तो राज्य में तब भी नहीं थी, जब यहां शराब प्रतिबंधित नहीं थी। प्रतिबंध के बाद तो खपत और ज्यादा बढ़ गई है और सरकार को राजस्व का नुकसान तो हो ही रहा है।

भारत से तेल, नमक, दाल-चावल से लेकर कपड़ों तक की तस्करी की जाती है और यह माल नेपाल भेजा जाता है। यदि प्रॉसिजर से भेजा गया तो कस्टम ड्यूटी भरनी होगी इसलिए लोग खेतों के रास्ते राशन इधर से उधर करते हैं। जब हम मधवापुर-मटिहानी में थे तो हमने देखा कि खेतों के रास्ते नेपाली महिलाएं चावल की कट्टी सिर पर रखकर ले जाती हैं।

इस तरह से नेपाली महिलाएं चावल की कट्टी भारत से ले जाती हैं, क्योंकि राशन नेपाल के बजाए भारत में सस्ता मिलता है।

करीब 34 साल सीआरपीएफ में सेवाएं देने वाले सुपौल के इंदर सिंह कहते हैं कि, तस्करी तो खुलेतौर पर बॉर्डर पर चल रही है। सबसे ज्यादा तस्करी गांजा, शराब और अफीम की है क्योंकि यह नेपाल में पर्याप्त मात्रा में हैं और भारत से सबसे ज्यादा तस्करी राशन की होती है। कोसी बैराज नेपाल में बना हुआ है। वहां से नाव के जरिए भी तस्करी की जाती है।

हालांकि, बीच--बीच में एसएसबी के कैंप हैं। कई बार जवान पकड़ लेते हैं तो लोग पानी में ही सामान फेंक देते हैं। जैसे दो दिनों पहले हमारे गांव के लड़कों को दो बोरी भरकर नेपाली शराब मिली। यह वही शराब थी, जो एसएसबी जवानों को देखकर पानी में फेंक दी गई होगी और लड़कों के हाथ लग गई।

हालांकि, बहुत बार एसएसबी वाले भी पैसों का लेना-देना करके तस्करी करने वालों को छोड़ देते हैं। कई बार पकड़ भी लेते हैं। बिहार में जब शराब प्रतिबंधित नहीं थी, तब शराब से 37 परसेंट राजस्व मिलता था लेकिन, अब तो यह राजस्व भी नहीं मिल रहा और शराब की खपत को लगातार बढ़ ही रही है। फायदा नेपाल को भी नहीं हो रहा, लेकिन वहां के व्यापारी जरूर लाभ कमा रहे हैं।

बिहार में शराबबंदी का फायदा तस्करी करने वाले उठा रहे हैं, और नेपाल की शराब यहां सप्लाई कर रहे हैं।

बॉर्डर पार से लड़कियों की तस्करी भी बहुत आम है। सिंह के मुताबिक, नेपाल में गरीबी बहुत है। एजेंट उनके पैरेंट्स को लालच देते हैं कि आपकी बच्ची को नौकरी दिलवा देंगे। कुछ पैसे देते हैं और साथ में ले आते हैं। यहां भी आते हैं तो रिश्तेदार बनाकर लाते हैं क्योंकि सीमा से लगे जिलों का तो नेपाल के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता है।

लगभग हर घर की ही रिश्तेदारी है। इसलिए रिश्तेदार बनाकर लाते हैं पकड़ा गए तो रिश्तेदारी बताते हैं और अंदर आ जाते हैं। यहां से लड़कियों को देह व्यापार के धंधे में धकेल दिया जाता है। बिहार की होटलों में भी नेपाल की लड़कियां और नेपाली शराब खूब परोसी जाती है। हालांकि, लॉकडाउन के बाद से सख्ती हुई थी तो इन चीजों पर काफी लगाम लगी थी लेकिन चोरी-छुपे तो सब हो ही रहा है।

2016 में तो एक पूरी बसभरकर नेपाल से लड़कियां बिहार लाईं गईं थी, इन सबको बेचने की तैयारी थी, लेकिन तभी स्थानीय लोगों को बस पर शक हुआ और उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस को कर दी। इसके बाद तमाम लोगों को गिरफ्तार किया गया था और लड़कियों को उनके घरवालों के पास छोड़ा गया था।

बॉर्डर से 15 किमी तक के दायरे में एसएसबी को एक्शन लेने का अधिकार है।

बिहार सीमा जागरण मंच के प्रदेश अध्यक्ष महेश अग्रवाल कहते हैं, नेपाल से बड़ी मात्रा में शराब, गांजा के साथ ही भैंसा की तस्करी भी होती है। भैंसा भारत से नेपाल में भेजा जाता है क्योंकि वहां भैंसा काफी खाया जाता है। पशु चराने का बोलकर मवेशियों के सीमा पर ले जाया जाता है और वहीं छोड़कर आ जाते हैं। दोनों देशों के बीच बॉर्डर खुली होने का फायदा ये है कि हमारा इंटेलीजेंस सिस्टम मजबूत है।

हमारे इंटेलीजेंस के लोग, गांव के लोग वहां आना-जाना करते हैं तो हर एक बात के बारे में पता चलता है। यदि बाउंड्रीवॉल हो गई तो सूचना का यह आदान-प्रदान रुक जाएगा और जिन देशों के साथ बाउंड्री है, वहां भी तस्करी तो रुक नहीं सकी। हालात ऐसे हैं कि बिहार से लोग क्राइम करके नेपाल भाग जाते हैं और नेपाल से क्राइम करके बिहार आ जाते हैं।

यह पंटोका गांव में आने वाली बॉर्डर है। यहां से भी लोगों की आवाजाही होती है।

हालांकि, 2003 में एसएसबी के डिप्लॉयमेंट के बाद स्थितियां थोड़ी ठीक हुई हैं, लेकिन अब इतनी बड़ी बॉर्डर पर एसएसबी भी कहां-कहां निगरानी करेगी। बॉर्डर से लेकर अंदर 15 किमी तक एसएसबी का दायरा है। यहां एसएसबी किसी को भी रोक सकती है और पूछताछ कर सकती है। इसके बाद पुलिस का कार्यक्षेत्र शुरू हो जाता है।

नेपाल और भारत के बीच कोई ट्रीटी नहीं हुई कि हम एक-दूसरे को अपराधियों को सौंपेंगे लेकिन इसके बावजूद सीमा पर तैनात दोनों देशों के अधिकारियों की सूझबूझ से यह काम होते रहता है। बीते कुछ दिनों में ओली सरकार के बाद जरूर रिश्तों में तनाव आ गया है और अब बॉर्डर पर जवानों के बीच वो प्यार नजर नहीं आता, जो पहले नजर आता था।

पूरी बॉर्डर खुली है इसलिए तस्कर सड़क के बजाए चोर रास्तों से ही बिहार में एंट्री करते हैं।

चार दिन पहले भारतीय क्षेत्र के सिजुआ और नेपाल के अड़नाहा गांव के लोगों के बीच भी झड़प हो गई थी। ग्रामीणों ने बताया कि, रात में नेपाल से शराब और दिन में कपड़े, राशन, यूरिया खाद की बड़े पैमाने पर तस्करी की जा रही है। तस्करी को लेकर ही दोनों गांवों के बीच कुछ विवाद हो गया था।

बहेरा पंचायत के मुखिया लालबाबू सिंह ने कहा कि, खुलेतौर पर तस्करी चल रही है लेकिन न ही इसे एसएसबी रोक पा रही है और न ही प्रशासन कुछ कर रहा है। जब हम मधेपुरा-मटिहानी बॉर्डर पर थे, तो हमें नेपाल सुरक्षा बल द्वारा वीडियो, फोटो लेने से रोका गया था। इसकी एक वजह यही थी कि दिन में सबके सामने राशन की तस्करी चल रही थी। कैमरा देखने के बाद सुरक्षा जवानों ने मुख्य सड़क पर आवाजाही को बंद कर दिया था और लोग खेतों के रास्ते घूमकर जा रहे थे।

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बॉर्डर से लेकर अंदर 15 किमी तक एसएसबी का दायरा है। यहां एसएसबी किसी को भी रोक सकती है और पूछताछ कर सकती है।


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