कोरोना महामारी में गुजरात के सूरत में अब तक 1300 से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार और दफन विधि हो चुकी है। श्मशान की तरह कब्रिस्तान में भी संख्या बढ़ने लगी है। मोरा भागल कब्रिस्तान में खुदाई करने वाले इब्राहिम ने बताया कि एक समय था जब पूरे दिन बैठा रहता था। कोई शव नहीं आता था। यह कोविड-19 से पहले की बात है, लेकिन कोरोना के कारण अब सांस लेने का भी वक्त नहीं मिल रहा है।
एक कब्र खोदने में 4 से 5 घंटे लग जाते हैं। एक साथ 4 या 5 तो कई बार इससे भी ज्यादा शव आ जाते हैं। इससे समय से कब्र खोदना मुश्किल होता है, इसलिए जेसीबी का उपयोग करना शुरू किया है। पहले 6 फीट की गहराई में कब्र खोदते थे। लेकिन अब कोरोना के कारण 10 फीट गहरी कब्र खोदते हैं।
बोटावाल ट्रस्ट का यह कब्रिस्तान 800 साल पुराना है। पिछले 800 सालों में जिस जगह का अभी तक उपयोग नहीं किया गया उस जगह को अब कोरोना के शव को दफन करने के लिए उपयोग में लिया जा रहा है।
कब्रिस्तान ही हमारा घर, यहीं आता है खाना; पत्नी और बच्चों से फोन पर ही बात होती है
इब्राहिम ने बताया कि हमें सीधे तौर पर कोरोना से कोई खतरा नहीं है। लेकिन एकता ट्रस्ट की टीम आती है और उनके पास कर्मचारी ज्यादा नहीं होते तो हम भी पीपीई किट पहनकर दफन-विधि में सहयोग करते हैं। हम चार लोग हैं, लेकिन एक भी व्यक्ति अप्रैल से घर नहीं गया। खाना कब्रिस्तान पर ही आ जाता है।
परिवार का कोई सदस्य आता है तो उसके साथ दूर से ही बात कर लेते हैं। बच्चों और पत्नी के साथ मोबाइल पर ही बातें होती हैं। अब तो कब्रिस्तान ही हमारा घर है, यहीं रात को सो जाते हैं। अब हमारी एक अलग दुनिया बन चुकी है। अब लगता है कि कब्रिस्तान में जो है वही सबसे सुरक्षित है, क्योंकि यहां कोई आता-जाता नहीं है।
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