दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की नई बनी इमारत के बाहर लोगों की भीड़ है। वहीं एक कोने में एक बुजुर्ग उदास बैठे हैं। उनके इर्द-गिर्द लोग जुटे हैं। कुछ को वो जानते हैं, कुछ को नहीं। कुछ उन्हें सांत्वना दे रहे हैं, कुछ ये भरोसा की उनकी बेटी जिंदगी की जंग जीत जाएगी।
दो सप्ताह पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में गैंगरेप का शिकार हुई उनकी बेटी अस्पताल में वेंटीलेटर पर है। उसकी जीभ काट दी गई थी। रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है। जिस्म पर कई गहरे जख्म हैं। दुपट्टे से उसका गला घोटा गया और उसे मरा जानकर छोड़ा गया।
उसके पास अभी कोई नहीं है। उसका छोटा भाई जो पिछले दो सप्ताह से उसकी देखभाल कर रहा है, दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ गया है, जो ये देखने आए थे कि परिवार को अस्पताल में सुरक्षा मिली है या नहीं। पिता दीवार से कमर टिकाए गुमसुम बैठे हैं। लोग उनसे क्या कह रहे हैं इसका उन्हें बहुत ज्यादा होश नहीं है। मैं उनसे बात करने की कोशिश करती हूं तो वो कहते हैं कि मैं बहुत बोल नहीं पाउंगा। मैं उनके पास ही बैठ जाती हूं।
कुछ देर बाद वो बोलना शुरू करते हैं। बेटी का नाम आते ही फफक पड़ते हैं। चेहरा मास्क से ढका था, आंखों में दर्द और डर साफ नजर आ रहा था। वो कहते हैं, "ये लोग गांव के ठाकुर हैं। ये लोग मेरी बेटी से दरिंदगी करने से पहले मेरे पिता से भी मारपीट कर चुके हैं। उनकी उंगलियां तक काट दी थी। इनकी विचारधारा पहले से ऐसी ही है। ये हमें डराते-धमकाते रहते थे, हम हमेशा बर्दाश्त करते और सोचते कि चलो जाने दो। अब इन्होंने हमारी बेटी के साथ ऐसा अत्याचार किया है।"
वो बोलते-बोलते अचानक खामोश हो जाते हैं। खौफ उनके चेहरे पर तैरने लगता है। दलित संगठनों से जुड़े लोग उन्हें भरोसा देने की कोशिश करते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को अब कुछ नहीं होगा। लेकिन उनका डर कम नहीं होता।
इसी बीच उनका सबसे छोटा बेटा हांफता हुआ आता है। उसका फोन दोपहर से ही बंद है। बहन की देखभाल, कागजों की लिखत-पड़त और अस्पताल में अलग-अलग जगहों के चक्कर काटने में उसे इतना भी समय नहीं मिला है कि कुछ देर रुककर अपना फोन ही चार्ज कर सके।
उसके आते ही कई फोन बात करने के लिए उसे पकड़ा दिए जाते हैं। कुछ पारिवारिक रिश्तेदारों के हैं, कुछ पत्रकारों के, सभी बस वेंटिलेटर पर भर्ती उसकी बहन का हाल जानना चाहते हैं।
वो बताता है, "मैं 12 दिनों से घर नहीं गया हूं। बहन बोल नहीं पा रही है। बस वो आंखों से पहचान रही है। कभी-कभी इशारा करती है। उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। मैं उसकी आवाज सुनने को बेचैन हूं। वो मौत से लड़ रही है।"
वो कहता है, "मैं नोएडा में रहकर काम करता था। फोन करता था तो बहन से बहुत बात नहीं हो पाती थी। वो घर के काम-धंधों में लगी रहती थी। अभी मैं कोशिश कर रहा हूं कि बहन से दो बातें हो जाएं तो वो बोल ही नहीं पा रही है क्योंकि उसकी जीभ कटी हुई है।"
13 दिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने के बाद उसे एंबुलेंस के जरिए सोमवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया है।
14 सितंबर को हुआ क्या था?
परिवार के मुताबिक, 14 सितंबर को सुबह-सुबह पीड़िता, उसका बड़ा भाई और मां गांव के जंगल में घास काटने गए थे। जब घास की एक गठरी बंध गई तो बड़ा भाई उसे लेकर घर चला आया। मां और बेटी खेत में अकेले रह गए। मां आगे घास काट रही थी। बेटी पीछे कुछ दूर उसे इकट्ठा कर रही थी। इसी दौरान चारों अभियुक्तों ने पीड़िता के गले में पड़े दुपट्टे से उसे बाजरे के खेत में खींच कर उसका गैंगरेप किया।
उस दिन की घटना के बारे में पीड़िता का भाई बताता है, "मां ने बहन को आवाज़ें दी तो उसका कोई जवाब नहीं आया। पहले उन्हें पानी देने के लिए बनाई गई मेढ़ में उसके चप्पल दिखे, फिर बाजरे के टूटे पौधे दिखे तो वो खेत में अंदर गईं जहां बीस मीटर भीतर वो बहुत ही बुरी हालत में बेहोश पड़ी हुई थी। मां चिल्लाई तो कुछ बच्चे आए, उन्होंने उन्हें तुरंत लोगों को बुलाने और पानी लाने भेजा। बच्चे मेढ़ में भरा पानी पॉलीथीन में भरकर लाए। वो उसके मुंह पर डाला लेकिन उसे होश नहीं आया।"
वो बताते हैं, "मेरी मां और भाई उसे तुरंत थाने गए और तहरीर दी। तब तक ये नहीं पता था कि किसने हमला किया है। कितने लोग थे और उसके साथ क्या हुआ है।" पीड़िता के पिता बताते हैं, 'वो दरिंदे खेत के चक्कर लगा रहे थे। लेकिन मेरी बेटी और पत्नी उनके इरादे को भांप नहीं पाए। उन्होंने मेरी बेटी को घात लगाकर शिकार बनाया। उन्हें किसी का डर नहीं था।'
पुलिस की भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल
हाथरस पुलिस ने अब तक इस मामले में संदीप, रामकुमार, लवकुश और रवि नाम के चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है। चारों ही तथाकथित उच्च जाति के है। हालांकि दलित संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने इस मामले में लीपापोती करने की कोशिश की।
पहले सिर्फ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया। एक ही व्यक्ति को अभियुक्त बनाया गया। दस दिनों तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया। जब दलित नेता चंद्रशेखर ने ट्वीट किया और अलीगढ़ जाने का ऐलान किया तब अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया। गैंगरेप की धारा भी बाद में जोड़ी गई। हालांकि पुलिस का कहना है कि परिवार ने जो शिकायत दी थी उसी के आधार पर पहला मुकदमा दर्ज किया गया था और बाद में पीड़िता के बयान के आधार पर गैंगरेप का मुकदमा दर्ज किया गया।
पीड़िता को अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। जहां पुलिस 19 सितंबर को उसका बयान लेने के लिए पहुंची थी। यानी घटना के पांच दिन बाद। उस दिन पीड़िता की हालत गंभीर थी और वो अपना बयान दर्ज नहीं करा सकी थी। फिर 21 और 22 सितंबर को सर्किल ऑफिसर और महिला पुलिस कर्मी पीड़िता का बयान लेने पहुंचे थे।
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