मेरे घर में मुझे, मेरी मां और भाई को कोरोना हुआ था। मेरी मां 45 दिनों में कोरोना से रिकवर हुईं। मेरा भाई 24 दिनों तक एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट रहा। हॉस्पिटल ने साढ़े बारह लाख रुपए का बिल बना दिया। इतना पैसा देने के बाद भी भाई की हालत खराब ही थी। वो एकदम सूख गया था। अस्पताल में उसके साथ व्यवहार भी ऐसा हुआ जैसे फ्री में इलाज करवाने आए हों। इस घटना के बाद मेरे मन में आया कि हमने पैसों का इंतजाम कर लिया लेकिन उन गरीबों का क्या हाल हो रहा होगा, जिनके पास इलाज के पैसे ही नहीं। बस तभी सोच लिया था कि कोरोना मरीजों के लिए एक अस्पताल बनाना है, जहां फ्री में सबको इलाज मिले।
यह कहानी सूरज में प्रॉपर्टी का काम करने वाले कादर शेख की है। उन्होंने कोरोना मरीजों के लिए 84 बेड वाला अस्पताल तैयार किया है। महज 20 दिनों में तैयार किए गए इस अस्पताल में 10 आईसीयू बेड हैं। सभी बेड पर ऑक्सीजन की सुविधा है। यहां इलाज, खाना-पीना और दवाइयां तक मुफ्त में दी जा रही हैं। हालांकि अब इसका संचालन सूरत नगर निगम कर रहा है। कादर शेख कहते हैं, साढ़े बारह लाख रुपए का बिल बना तो हमने हॉस्पिटल से पूछा कि इतना बड़ा बिल कैसे बन गया। सांसद तक से बात करवा दी, तब कहीं जाकर एक लाख रुपए कम हुए। भाई की कोरोना रिपोर्ट तो नेगेटिव आ गई थी लेकिन उसकी हालत देखकर ऐसा लग रहा था कि अस्पताल ने इसे अच्छा नहीं बल्कि पहले से और ज्यादा कमजोर कर दिया है। कोविड नेगेटिव आने के बाद भी उन्होंने भाई को पॉजिटिव मरीजों वाले वार्ड में ही रखा था। हर तीसरे दिन किसी न किसी चार्ज के नाम पर वसूली की जाती थी।
भाई के डिस्चार्ज वाले दिन ही मैंने सोच लिया था कि गरीबों के लिए कुछ करना है। सूरत के अडाजण में श्रेयम कॉम्पलेक्स में मेरे पास तीन फ्लोर हैं। मैं वहां से प्रॉपर्टी का कामकाज करता हूं। फिर मैंने सांसद से बात की और उन्हें कहा कि, मैं अपनी तीन फ्लोर पर कोरोना मरीजों के लिए अस्पताल तैयार करके देना चाहता हूं लेकिन शर्त यही है कि जो भी उसे चलाए, इलाज पूरी तरह से फ्री दे और खाना-पीना, दवाइयां भी फ्री में मिले। उन्होंने तुरंत निगम अधिकारियों से बातचीत की और हमें अस्पताल तैयार करने की परमिशन मिल गई। हमने महज 20 दिन में अस्पताल तैयार कर दिया। दो फ्लोर पर 42-42 बेड रखे हैं और एक फ्लोर को मेडिकल स्टाफ के रुकने के हिसाब से बनाया। इसके बाद निगम ने वहां कोरोना मरीजों का इलाज शुरू कर दिया।
हॉस्पिटल तैयार करके देने के एवज में क्या आप सरकार से कोई मदद ले रहे हैं? इस पर शेख बोले, साहब हमने पहले ही अधिकारियों को कह दिया कि, हमें कुछ नहीं चाहिए। जिंदगी में पहली दफा इतनी शांति महसूस कर रहा हूं। ऐसा लग रहा है कि हम किसी के काम आ रहे हैं। किसी भी कौम का कोई भी व्यक्ति यहां आकर फ्री में इलाज करवा सकता है। खाना-पीना, दवाइयां भी फ्री में ले सकता है। हालांकि हमारी पहली प्रायोरिटी गरीबों के लिए ही है। हंसते हुए शेख कहते हैं, यहां आने वाले मरीजों को सिर्फ चार चीजें टूथपेस्ट, ब्रश, साबुन और कोरोना लेकर आना है, बाकी सबकुछ यहीं मिलेगा।
क्या अब आपने खुद के काम के लिए कोई नया ऑफिस लिया है? इस पर बोले, अभी कामधंधा बंद जैसा ही है। बाहर ऐसे हालात नहीं हैं कि काम करें। जब सब ठीक होगा तो कहीं किराया का ऑफिस लेंगे। हालांकि हॉस्पिटल तब तक नहीं हटाया जाएगा, जब तक कोरोना चल रहा है। फिर भले ही इसमें दो साल लगें या तीन साल लग जाएं। रिटायर्ड डीएसपी सिराज जाबा यहां का मैनेजमेंट संभालते हैं। जाबा कहते हैं, हम आर्थिक तौर पर मदद नहीं कर सकते लेकिन शारीरिक तौर पर जरूर कर सकते हैं। इसलिए मुफ्त में यहां की व्यवस्थाओं का सही तरीके से संचालन करवाने में मदद करते हैं।
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