गुरुवार, 17 सितंबर 2020

कोरोना के मामले में भारत की तुलना यूरोपियन देशों से करना ठीक नहीं; यहां कुछ राज्यों में संक्रमण से ज्यादा बढ़ती मृत्यु दर चिंता की बात

हमें ध्यान रखना होगा कि दुनिया में कहीं भी वायरस अभी खत्म नहीं हुआ है। कुछ देशों में सिर्फ इंफेक्शन रेट कम हुआ था। लेकिन यह बहुत दिनों तक कम नहीं रह सकता है। यही कारण है कि इटली, फ्रांस सहित अधिकांश यूरोप में सेकंड वेव का खतरा पैदा हो गया है।

इस बार यह इंफेक्शन पहले से भी ज्यादा हो सकता है। लेकिन अच्छी बात ये है कि अब हम इंफेक्शन को ज्यादा बेहतर तरह से समझ चुके हैं। हमें पता है कि पहले से जिन लोगों को बीमारियां हैं, उन्हें कैसे इलाज देना है, किस उम्र के लोगों को खतरा है, ऑक्सीजन कई बार वेंटिलेटर से ज्यादा जरूरी है आदि।

ऐसे में इस बार मृत्यु दर कम रहने की उम्मीद है। दुनिया ने इसके लिए प्रोटोकॉल डेवलप कर लिए हैं। हमें पता है कि कौन सा ट्रीटमेंट ज्यादा असरदार है, कौन सी दवाएं बेहतर हैं। यह बात भारत पर भी लागू होती है। रोजाना केस बढ़ रहे हैं। अगले माह में हो सकता है कि हम दुनिया के सर्वाधिक प्रभावित देश हों, लेकिन एक बात सकारात्मक है कि हम इस संक्रमण को काफी हद तक समझ चुके हैं। लेकिन देश के कुछ हिस्सों में अभी भी मृत्युदर बढ़ रही है।

भारत, ब्राजील और अमेरिका को अलग तरह से देखना चाहिए। यहां बहुत बड़ी फेडरल डेमोक्रेसी है। हम इनकी तुलना किसी यूरोपियन देश से नहीं कर सकते। हमें तुलना पूरी यूरोपियन यूनियन से करनी चाहिए। अगर भारत की बात करें, तो जब तक महाराष्ट्र में केस नहीं घटेंगे, राष्ट्रीय स्तर पर नंबर्स ठीक नहीं हो सकते हैं।

आज देश के संक्रमण के टॉप यानी हॉटस्पॉट 10 जिलों में से 5 महाराष्ट्र में है। पुणे, मुंबई, नासिक, ठाणे और अब नागपुर भी हॉट स्पॉट हो गया है। ऐसा भी नहीं है कि मुंबई, पुणे जैसे पुराने हॉटस्पॉट में संक्रमण की दर कम हुई हो, यह पहले की ही तरह बने हुए हैं। महाराष्ट्र में आज रोजाना 20 हजार केस आ रहे हैं।

ऐसे ही आंध्र प्रदेश में रोज 9 हजार केस निकल रहे हैं। अब देखिए कि तमिलनाडु में रोज 6 हजार केस आ रहे हैं, लेकिन एक महीने से 6 हजार ही आ रहे हैं। आंकड़ा महाराष्ट्र में रोज बढ़ता ही जा रहा है। जब तक हम बड़े हॉटस्पॉट राज्यों की स्थिति नहीं सुधारेंगे, तब तक स्थिति नहीं सुधरेगी।

हम इन राज्यों के इंटरनल मैनेजमेंट लेवल के निर्णयों को नहीं देख पाते हैं, लेकिन अगर टेस्टिंग की बात करें, तो यहां पॉजिटिविटी रेट हमेशा से ही ज्यादा रहा है। यहां अप्रैल-मई से ही ऐसी स्थिति है। आज भी यहां 100 में से करीब 20 केस पॉजिटिव निकल रहे हैं। समय पर टेस्टिंग करना भी बहुत जरूरी है। जो टेस्टिंग हो, वो जल्दी हो। जितनी आप टेस्टिंग देर से करेंगे इंफेक्शन अंदर-अंदर फैलता रहेगा। महाराष्ट्र में टेस्टिंग बढ़ी ही नहीं शुरू से।

हमें ज्यादा चिंता अब मृत्युदर की करनी चाहिए। अच्छी बात यह है कि देश में यह रोजाना घट रही है, लेकिन कुछ प्रदेश या शहर हैं जहां यह बढ़ रही है। देश में आज भी कोरोना के मामले में मृत्यु दर 1.6% है। लेकिन मुंबई, पुणे आदि में यह दर 2% से ऊपर है। मुंबई में तो यह करीब 5% के आसपास है। सबसे ज्यादा चिंता पंजाब की है, क्योंकि यह डेथ रेट देश की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा है। और ये बढ़ रही है।

असम में भी डेथ रेट कम है। लेकिन वो घट नहीं रही है, बल्कि बढ़ रहा है। महाराष्ट्र के कुछ शहरों में चिंता की स्थिति है। इसलिए अब हमें इंफेक्शन से आगे बढ़कर मृत्यु के आंकड़े देखने होंगे। जैसे दिल्ली में आज 4 हजार से ज्यादा केस रोज आ रहे हैं। पहले पीक से ज्यादा बुरी स्थिति है, लेकिन मौत कम हो रही है। क्योंकि यहां टेस्टिंग बढ़ी है।

पंजाब में मौत की दर ज्यादा है, क्योंकि यहां टेस्टिंग देर से हो रही है। लोगों के केस बिगड़ जाते हैं। ऐसे में स्थानीय हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी दबाव पड़ता है। वहीं आंध्रप्रदेश में भी केस बहुत ज्यादा हैं, लेकिन डेथ रेट कम है क्योंकि उन्होंने अपने हेल्थ इंफ्रा को भी बेहतर किया है।

हालांकि ओवरऑल महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश आदि में डेथ रेट घट रही है। अच्छी बात यह है कि मिजोरम में किसी की मौत हुई नहीं, यानी उन्होंने बहुत अच्छा मैनेज किया है। एक जरूरी बात ये भी है कि आम लोगों को भी समझना होगा कि अब लॉकडाउन नहीं है। अच्छी बात है कि डेथ रेट कम है, लेकिन ये बढ़ भी सकती है। इसलिए हमें सावधानी में कोई कमी नहीं करनी है। हमारे पास सीमित अस्पताल, सीमित डॉक्टर-नर्स हैं। इसलिए सतर्कता कम नहीं होनी चाहिए। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)



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शमिका रवि, प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की पूर्व सदस्य


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