जीडीपी में गिरावट के आंकड़े आ गए: जहां जीडीपी धीरे-धीरे बढ़ रही थी, इस बार वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में लगभग 24% घट गई। कोरोना झेल रहे देश को अब बड़ी आर्थिक चुनौती से भी जूूझना होगा। इस संकट में सरकार, सरकारी खर्च बढ़ाने से नहीं मुकर सकती। इससे लोगों के हाथों में पैसा आएगा, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
आज जो स्थिति है उसमें डर है कि मंदी के कारण और नौकरियां जाएंगी, जिससे लोगों की खर्च करने की क्षमता और घटेगी, जिसके चलते मंदी और बढ़ेगी, फिर और नौकरियां जाएंगी।
इस दुष्चक्र से बचने सरकारी खर्च में बढ़ोतरी एक जांचा-परखा उपाय है। आज जब शहरों से मजदूर घर-गांव पहुंच चुके हैं तो सबको शायद लग रहा है कि उनकी पीड़ा खत्म हो चुकी है। वास्तव में उनकी कठिनाईयां बढ़ी हैं। कम खाना या भूखे सोना, कर्ज, बर्तन-गहने गिरवी रखना या बेच देना, उन्हें इन सबका सहारा लेना पड़ रहा है।
सरकार को नरेगा का बजट बढ़ाने की जरूरत है। इसे रु.60 हजार करोड़ से बढ़ाकर, करीब एक लाख करोड़ किया गया था, लेकिन कई राज्यों में बजट खत्म हो गया है। देश के लगभग 14 करोड़ जॉब कार्डधारकों को 100 दिन का रोजगार रु.200 प्रतिदिन की मज़दूरी के हिसाब से भी दें तो हमें रु. 2.8 लाख की जरूरत है।
जन वितरण प्रणाली में और लोगों को शामिल करने की जरूरत भी है। आज, 40 करोड़ से ज्यादा लोग को केंद्र सरकार से राशन नहीं मिल रहा। गोदामों में जरूरत से ज्यादा अनाज है इसलिए दोगुने राशन के साथ-साथ जन वितरण प्रणाली में छूटे लोगों को बड़ी मात्रा में शामिल कर सकते हैं। साथ ही सरकार को वृद्धावस्था, विधवा और विकलांगता पेंशन बढ़ानी चाहिए।
सरकार दोहरा रही है कि आर्थिक मंदी से राजस्व में कमी आई है। वास्तव में, राजस्व बढ़ाने के कई विकल्प हैं। एक रास्ता है ‘वेतन कम्प्रेशन’, यानी सबसे ज्यादा वेतन पानेवाले और सबसे कम वेतन पानेवाले के बीच का फासला कम करना। वेतन खर्च कम करने के दो तरीके हैं: नौकरियां खत्म कर देना या नौकरियां कायम रखना लेकिन सबसे ज्यादा कमाने वालों के वेतन कुछ हद तक घटा देना। आज दूसरा रास्ता अपनाने की जरूरत है।
देश में आर्थिक असमानता हद पार कर चुकी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के सबसे अमीर 953 लोगों की नेट वर्थ औसतन रु. 5000 करोड़ है। यानी देश की जीडीपी का लगभग एक चौथाई हिस्सा इन लोगों के हाथों में है। इस पर ‘संपत्ति कर’ लगाया जाए। केवल 4% कर लगाएं तो भी सरकार जीडीपी का एक प्रतिशत राजस्व पा सकती है।
पहले भारत में संपत्ति कर था लेकिन कुछ साल पहले इसे रद्द कर दिया गया। जब तक इसे लागू नहीं करते तब तक इसके एवज में सरकार ऋण उठा सकती है। जब देश संकट से गुज़र रहा है, सबसे संपन्न लोगों को देश को देने का समय है। ‘प्रॉपर्टी टैक्स’ का सुझाव काफी समय से दिया जाता रहा है।
कई राज्यों में इसे पूरी तरह या कड़े रूप से लागू नहीं किया गया है और जहां है भी, वहां दरें कम हैं। जो बेस है उसे और व्यापक किया जा सकता है और दरों को भी कुछ हद तक बढ़ाया जा सकता है।
तीसरा सुझाव है ‘नॉन मेरिट’ सब्सिडी घटाना। मेरिट सब्सिडी यानी जिनसे जन कल्याण (स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई, इत्यादि) बढ़े। नॉन मेरिट में बिजली, तेल, आदि पर रियायतें शामिल हैं। मंडल और सिकदर के अनुमानों के अनुसार नॉन मेरिट सब्सिडी जीडीपी का लगभग 5% हैं।
चौथा, कर माफी से हो रहे राजस्व नुकसान को घटाना। यदि भिन्न-भिन्न रूप से जो कर माफ़ी देते हैं उन्हें रद्द करें तो सरकारी राजस्व (ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू) 30% तक बढ़ा सकते हैं। पिछले वित्त वर्ष में कर माफी से सरकारी राजस्व का लगभग 6 लाख करोड़ रु. का नुकसान हुआ। इसमें कस्टम्स ड्यूटी पर छूट का बड़ा हिस्सा था।
कॉर्पोरेट टैक्स और निजी आयकर का मिलाकर हिस्सा 40% था। देश के पास सोना और डॉलर भी काफी हैं, जिन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार, 5% घटाने से, सरकार के राहत पैकेज जितना राजस्व उत्पन्न होगा।
देश की बड़ी आबादी है जिन्हें तालाबंदी ने बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया है। यदि हम वास्तव में देशप्रेमी हैं, तो इस संकट से उबरने के लिए सक्षम वर्ग को कमर कसनी ही होगी। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/35gyBmz
https://ift.tt/35dTu1Z
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.