3 नवंबर को सुपर पावर मुल्क अमेरिका के सबसे ताकतवर शख्स के चुनाव को लेकर दुनिया भर में सुगबुगाहट तेज है। खासकर महामारी के उस दौर में जहां नए वैश्विक समीकरण उभर रहे हैं ,चीन आक्रामक है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की विश्व मंच पर नेतृत्व को लेकर कई सवालिया निशान मौजूद हैं।
ऐसे में अमेरिकी सियासी परंपरा के अंतर्गत जब 30 सितंबर को रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी से उनके प्रतिद्वंदी और पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन पहले राष्ट्रपति डिबेट के लिए फ्लोरिडा के क्लीवलैंड में आमने-सामने हुए तो दुनिया की नजरें इन पर टिकी थी।
1856 में अब्राहम लिंकन और स्टीफन ए डगलस के बीच छोटे शहरों में हुई अहम सियासी वाद विवाद ने अमेरिकी राष्ट्रपति डिबेट्स की नींव रखी जिसकी आधिकारिक शुरुआत 1960 में रिचर्ड निक्सन और जॉन एफ केनेडी के बीच टीवी पर सीधे प्रसारित चर्चा से हुई। फिर 16 सालों के बाद 1976 में जेराल्ड फोर्ड और जिम्मी कार्टर के बीच हुई लाइव टीवी बहस को 80.6 मिलियन दर्शकों ने देखा और ये सिलसिला परंपरा में तब्दील हुआ।
हालांकि, 1976 के उस डिबेट में शुरूआत में 27 मिनट तक दोनों प्रतिद्वंद्वी पोडियम के पीछे मूक खड़े रहे क्योंकि सीधे प्रसारण के दौरान ऑडियो फेल हो गया था। शायद ऐसी तकनीकी दिक्कत अगर इस बार 30 सितंबर को होती, तो अमेरिका को कम शर्मिंदा होना पड़ता।
कोरोनाकाल के इस डिबेट में ट्रम्प और बाइडेन के बीच ना हैंड शेक की कोई गुंजाइश थी और ना कोई सभ्य चर्चा हो पाई। डिबेट के संचालक फॉक्स न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार क्रिस वॉलस जद्दोजहद करते रहे कि ट्रम्प, बाइडेन को अपनी बात पूरा करने का मौका दे। करीब 7 करोड़ 30 लाख लोगों ने टीवी पर मानो किसी कॉलेज के लड़कों को लड़ते देखा। 2016 में ट्रम्प और हिलेरी क्लिंटन के बीच डिबेट को 84 मिलियन लोगों ने देखा था जो एक नया रिकार्ड था ।
90 मिनट के इस डिबेट में 20 मिनट तक कोरोना पर चर्चा हुई, जिसने अब तक 2 लाख से ज्यादा अमेरिकियों की जान ले ली है। इस दौरान ट्रम्प ने 38 मिनट तक अपनी बात रखी, बाइडेन ने 43 मिनट तक। लेकिन जब-जब बाइडेन के बोलने की बारी थी, ट्रम्प ने उन्हें 73 बार टोका। बाइडेन की पढ़ाई से लेकर उनके बेटे को लेकर ट्रम्प ने उन पर निजी हमले किए। उन्हें झूठा बताया। वहीं झुंझलाए हुए बाइडेन ने ट्रम्प को क्लाउन करार दिया और उन्हें शट अप तक कह डाला।
अमेरिकी राजनीतिक समाजशास्त्री लैरी डायमंड ने इसे अमेरिकी इतिहास का सबसे खराब और प्रतिकारक डिबेट बताया। ब्रिटेन की मशहूर पत्रिका द टाइम्स ने लिखा डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडेन के बीच हुई राष्ट्रपति डिबेट में सबसे बड़ी हार अमेरिका की हुई। यूके के ही द गार्डियन ने अमेरिका के लिए इस डिबेट को राष्ट्रीय शर्मिंदगी वहीं फ्रांस के अखबार लिबरेशन ने इसे "अस्त-व्यस्त, बचकाना और थकाऊ" बताया ।
आलम ये है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में 1988 से टीवी पर सीधे प्रसारण किए जाने वाले इन चर्चाओं के आयोजन की ज़िम्मेदारी जिस कमीशन ऑन प्रेसिडेंशियल डिबेट्स ( सीपीडी) पर है, वो नियमों को बदलने के लिए मत्था पच्ची कर रहे हैं। मुमकिन है कि आखिरी के बाकी दो डिबेट के फॉर्मेट में फेरबदल हो और निरंतर टोका-टोकी करने वाले उम्मीदवार के माइक को बंद कर दिया जाए।
अमेरिका को ज़रूरत है कि करीब 12,500 किलोमीटर दूर स्थित न्यूजीलैंड से सबक ले, जहां 17 अक्टूबर को प्रधानमंत्री चुनाव होने वाले हैं। चुनावों के पहले हुए सीधे डिबेट में लेबर पार्टी गठबंधन सरकार की उम्मीदवार और पीएम जसिंडा आर्डन और उनको चुनौती दे रही नेशनल पार्टी की जूडिथ कोलिंस के बीच अलग ही समा बंधा।
दोनों में अहम मुद्दों पर वैचारिक मतभेद ज़रूर थे, लेकिन एक दूसरे के लिए कड़वाहट नहीं, मंच पर कोई तू-तू मैं-मैं या बदतमीजी नहीं। दोनों ने एक-दूसरे पर निजी आक्षेप नहीं लगाए। कोलिन ने तो आर्डन के संचार कौशल की भी तारीफ की।
क्रिस वॉल्स जहां हैरान परेशान थे, वहीं न्यूजीलैंड के खुशनुमा डिबेट के संचालक पैट्रिक गावर को अंत में ये पूछने का भी मौका मिला कि दोनों महिलाएं कहां छुट्टी मनाना पसंद करेंगी। ये सही है कि न्यूजीलैंड छोटा देश है और उसकी आंतरिक समस्याएं और विदेशी चुनौतियों में अमेरिकी जटिलता नहीं। लेकिन, अदब और समझदारी की न्यूजीलैंड की मौजूदा राजनीति में कमी नहीं। क्या इसकी वजह महिला नेतृत्व है?
ओआरएफ में सीनियर रिसर्च फेलो और अशोक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर माया मिर्चंदानी कहती हैं, 'मेरा मानना है कि महिलाएं सामान्य रूप से ज्यादा सिविल हैं, इसलिए ये बहस, यहां तक कि अलग-अलग प्रतिद्वंद्वी के साथ भी विवाद में नहीं बदलने वाला है जैसा कि हमने पहले देखा है।'
वैसे अमेरिकी राष्ट्रपति टीवी डिबेट के रणनीतिकार फ्रेड खान की कोशिशें 1960 से पहले शुरू हुई थीं। हालांकि, 1956 के उम्मीदवारों ने अपनी तरफ से नुमाइंदों को भेजा था। डेमोक्रेट उम्मीदवार स्टीवनसन की नुमांइदगी की थी पूर्व फर्स्ट लेडी एलिनोर रूज़वेल्ट ने और रिपब्लिकन प्रत्याशी आइजनहावर की तरफ से मोर्चा संभाला था सीनेटर मारगरेट चेज़ स्मिथ ने।
सीबीएस के फेस द नेशन शो के इतिहास में ये दोनों पहली महिला अतिथि थीं और चुनावों से दो दिन पहले दोनों के बीच जमकर बहस हुई अपने उम्मीदवारों की विदेश नीति पर। दिलचस्प है कि डिबेट की गहमागहमी में रूज़वेल्ट इतनी नाराज़ हुईं की आखिर में उन्होंने स्मिथ से हैंड शेक करने से इनकार कर दिया ।
2016 में ट्रम्प और हिलेरी क्लिंटन के बीच डिबेट्स तीखे थे। 1984 में 73 साल के सबसे उम्र दराज़ उम्मीदवार रॉनल्ड रीगन ने अपनी उम्र पर खुद ही मज़ाक कर अपने डेमोक्रेट प्रतिद्वंद्वी वॉल्टर मोंडेल को हंसने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन, ट्रम्प ने हिलेरी के उम्र का मज़ाक उड़ाते हुए मिशिगन की एक रैली में कहा कि उन्हें डिबेट के दौरान टॉयलेट ब्रेक्स की जरूरत पड़ती है।
उदारवाद अमेरिका ने आज तक किसी महिला को ओवल ऑफिस तक नहीं पहुंचाया है। लेकिन, दोनों बड़ी पार्टियों की तरफ से ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद की दौर में अगर ट्र्म्प और बाइडेन की जगह दो महिलाएं आमने सामने होतीं, तो क्या इन डिबेट्स का रूख और तेवर अलग और सकारात्मक होता?
माया मिर्चंदानी कहती हैं, "आमतौर पर पॉलिटिकल डिस्कशन थोड़ा बेअदब होता है। लोकलुभावन वाले नेता आक्रामक, वाकपटुता और प्रोपगेंडा वाले प्रचार के तरीकों और डिबेट को पसंद करते हैं। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि ठीक है अगर मुझे अपनी बात पहुंचाने के लिए चिल्लाना पड़ेगा तो ठीक है। हम ऐसा ही करेंगे। अब सवाल है कि क्या महिलाएं ऐसा करेंगी? मुझे लगता है नहीं। लेकिन, राजनीति बदल गई है, आज यह कंविक्शन से ज्यादा एक धारणा बन गई है।"
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