कैंसर... एक ऐसी बीमारी जिसका नाम सुनते ही लोगों के मन में खौफ पसर जाता है। वह बीमारी जिसने मनोहर पर्रीकर, ऋषि कपूर, इरफान खान, विनोद खन्ना और ना जाने ऐसी कितनी हस्तियों समेत लाखों अपनों को हमसे छीन लिया। हमारे देश में कैंसर का दर्द सहते हुए हर मिनट एक शख्स की सांसें थम जाती हैं। मगर सिक्के का दूसरा पहलू भी है। दरअसल, यह बीमारी उतनी भी बेकाबू नहीं, जितनी लगती है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉरमेशन (NCBI) के अनुसार केवल 5-10% कैंसर के मामले जेनेटिक होते हैं।
फिलहाल ऐसे मामलों को काबू करना बहुत मुश्किल है। मगर, 90-95% कैंसर के मामले आसपास के वातावरण, खान-पान और रहन-सहन के तौर-तरीकों के चलते होते हैं। यानी हमारा सही लाइफस्टाइल कैंसर से बचने का जबरदस्त मौका देता है। अगर कैंसर हो भी जाए तो सही समय पर पता चलने पर ज्यादातर मामलों में इसका इलाज मुमकिन है। बस जरूरत जागरूक होने की है। युवराज सिंह, मनीषा कोइराला, सोनाली बेंद्रे, ताहिरा कश्यप, अनुराग बासु और राकेश रोशन इसके जाने-पहचाने उदाहरण हैं।
हमारे देश में 80% लोगों को कैंसर का पता तब चलता है जब उसका इलाज तकरीबन नामुमकिन हो जाता है। ऐसे हालात में 70% लोगों की मौत कैंसर का पता चलने के एक साल के भीतर हो जाती है। भारत में दिल की बीमारियों के बाद कैंसर लोगों की मौत का दूसरा बड़ा कारण है। जबकि सिर्फ दो दशक पहले यह सातवें स्थान पर था।
मैडम क्यूरी का जन्मदिन भी आज
भारत में नेशनल कैंसर अवेयरनेस डे मशहूर फ्रेंच-पोलिश वैज्ञानिक मैडम क्यूरी के जन्मदिन पर ही मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने 2014 में इसकी शुरुआत की थी। मैडम क्यूरी ने रेडियम और पोलोनियम की खोज की थी। यह दोनों रेडियोएक्टिव तत्त्व कैंसर के इलाज के लिए रेडियो-थेरेपी में इस्तेमाल होती है।
भारत में हालात गंभीर, हर वर्ष 11 लाख नए मामले
हमारे देश में हर साल करीब 11 लाख कैंसर के नए मामले सामने आते हैं। इनमें हर तीन में दो केस कैंसर के एडवांस स्टेज में पता चल पाते हैं। इससे मरीजों की जान बचने की उम्मीद बेहद कम बचती है।
हर आठवें मिनट में सर्वाइकल कैंसर से एक महिला की जान चली जाती है।
भारत में 25% कैंसर पीड़ित पुरुषों की मौत तंबाकू के चलते मुंह और फेफड़ों के कैंसर से होती है वहीं 25% कैंसर पीड़ित महिलाओं की मौत मुंह और ब्रेस्ट कैंसर से होती
है।
इस कैंसर एनवायरनमेंट से बचें
- तम्बाकू
- आहार वजन शारीरिक निष्क्रियता
- शराब
- अल्ट्रावायलेट रेडिएशन
- वायरस और बैक्टीरिया
- आयनाजेशन रेडिएशन (जैसे एक्सरे)
- कीटनाशक
- सॉल्वैंट्स
- महीन कण और धूल
- डाइऑक्सिन (बेहद टॉक्सिक कैमिकल, यह कागज की ब्लीचिंग, कीटनाशक बनाने जैसी औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान निकलते हैं)
- कोयला, डीजल-पेट्रोल, लकड़ी आदि को जलाने से निकलने वाले पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAHs)
- फफूंद वाले टॉक्सिन
- विनाइल क्लोराइड (पीवीसी बनाने में निकलने वाली गैस)
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