सूरत जिले के पुलिस सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन के नंबर पर 8 अक्टूबर को एक बुजुर्ग ने फोन किया और कहा, 'मैं जिंदगी से तंग आ गया हूं, दो टाइम का खाना तक नहीं मिल रहा। डायबिटीज और बीपी की समस्या से भी परेशान हूं, दवा खरीदने के पैसे नहीं। पैरों में सूजन आ गई है, बाथरूम नहीं जा पाता। मेरा कोई नहीं और अब दर्द सहन नहीं होता। मुझे आत्महत्या का विचार आ रहा है।' बुजुर्ग का ये कॉल हेल्पलाइन के एसीपी चंद्रराज सिंह जाडेजा ने रिसीव किया था।
चंद्रराज सिंह जाडेजा फोन पर बुजुर्ग से बातचीत करते रहे और बातों-बातों में घर का पता पूछ लिया। इसी दौरान उन्होंने डिंडोली पुलिस थाने के पीआई से संपर्क किया और एक जवान नवीन को बुजुर्ग के घर भेजकर उन्हें सुसाइड करने से रोक लिया। ASI नवीन ने खुद ही इन बुजुर्ग की देखभाल करने का फैसला किया। लगातार 14 दिनों तक नवीन ने पिता की तरह बुजुर्ग की देखभाल की। खाने और दवा का खर्च उठाया और बुजुर्ग की जान बचा ली।
बुजुर्ग के दो बेटे वल्लभ विद्यानगर आश्रम में पढ़ाई करते हैं
ASI नवीन चौधरी ने भास्कर से बातचीत में बताया कि एसीपी जाडेजा ने बुजुर्ग को अपनी बातों में लगाए रहते हुए ही मुझसे संपर्क किया। मैं टीम के साथ तुरंत ही उनके घर की ओर रवाना हो गया। घर जाकर देखा तो फोन करने वाले बुजुर्ग बहुत कमजोर नजर आ रहे थे। उन्होंने अपना नाम जयवदन पुरोहित बताया। उन्होंने बताया कि 2019 में पत्नी की मौत के बाद से वे अकेले ही रह रहे थे। दो बेटे हैं, लेकिन वे वल्लभ विद्यानगर आश्रम में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। एक बेटा टी-वाई और दूसरा 11वीं में पढ़ता है। दोनों आश्रम में रहकर कामकाज करते हुए अपना खर्च निकालते हैं।
जयवदन ने बताया, 'मुझे शुगर के साथ-साथ बीपी की भी समस्या है। पैसों की तंगी और उस पर लॉकडाउन के दौरान तो हालत खस्ताहाल हो गई। दवा की बात तो दूर, खाने तक के लिए पैसे नहीं बचे। कोई मदद करने तैयार नहीं था। बेटों की हालत भी ऐसी नहीं कि उनसे पैसे मांगे जा सकें। कई दिनों से ठीक से खाना न मिलने के चलते पैरों में सूजन आ गई, जिससे दो कदम चलने तक को मोहताज हो गया हूं।'
नवीन बताते हैं, 'उनकी हालत देखकर और उनकी बातें सुनने के बाद मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। मैंने तुरंत पास की एक होटल से उनके लिए खाना मंगवाया और फिर उनके खाना खा लेने तक इंतजार किया। उसके बाद कहा कि आप आत्महत्या का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दीजिए। अब मैं आपकी जिम्मेदारी उठाऊंगा। आपको मंजूर है? मेरी बात सुनने के बाद वे मेरी ओर देखते ही रह गए और उनके चेहरे पर खुशी के हल्के भाव दिखे। इसके बाद मैं उनकी तमाम दवाएं लेकर आया। वे काफी भावुक हो गए तो मेरी आंखों में भी आंसू आ गए।'
14 दिनों में उनके मन में फिर कभी भी सुसाइड का विचार नहीं आया
नवीन ने बताया, 'मैंने तय कर लिया था कि अब उनकी देखभाल मैं ही करूंगा। इसके बाद लगातार 14 दिनों तक एक NGO की महिला की मदद से बुजुर्ग को दोनों समय का भोजन पहुंचाता और रोजाना उनसे मिलने जाता था। खुशी की बात तो ये थी कि इन 14 दिनों में उनके मन में दोबारा कभी भी आत्महत्या का विचार नहीं आया। इसके बाद मैंने उनके बेटों से फोन पर संपर्क किया। एक बेटा उन्हें अपने साथ रखने के लिए तैयार था। मेरी बातें सुनने के बाद बेटा तुरंत सूरत चला आया और जब पिता से उसकी मुलाकात हुई तो बुजुर्ग की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि उनके लिए ये पल किसी उत्सव से कम नहीं था। मैंने खुद ये नजारा अपनी आंखों से देखा।'
बेटा पिता को अपने साथ ले गया
नवीन ने बताया कि बेटे को अपने सामने देखकर पिता चौंक उठे थे। हालांकि, बेटे ने उन्हें इस बात का जरा सा भी अहसास नहीं होने दिया कि उसे बुलाया गया है। उसने पिता से कहा कि आपकी बहुत याद आ रही थी इसीलिए आपको साथ में ले जाने आ गया। यह सुनकर पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सुनने वाले और लोगों के लिए भले ही यह एक छोटी सी घटना हो सकती है, लेकिन एक बुजुर्ग व लाचार पिता को बेटे का सहारा मिलने की खुशी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। फिलहाल जयवदन बेटे के साथ आराम से रह रहे हैं।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/36wDOWp
https://ift.tt/2Iv8xeg
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.