शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

बाइडेन प्रशासन को वहां संभलकर काम करना होगा, जहां ट्रम्प जल्दबाजी करते नजर आए

बीते हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन की जीत का जश्न दुनियाभर में मना। इसके पीछे ज्यादातर यह राहत थी कि आत्ममुग्ध और अस्थिर डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस से चले जाएंगे। लेकिन अब पूरी दुनिया बड़ी उम्मीदें लगाए बैठी है। बाइडेन खुद कह चुके हैं कि यह समय उनके देश में हो चुके बड़े विभाजन को ठीक करने, राजनीति से जहरीले ध्रुवीकरण को खत्म करने का है।

वास्तव में अमेरिकी भी अब उस सामान्य जीवन की ओर लौटना चाहते हैं, जहां हमेशा राजनीति के बारे में न सोचना पड़े या गुस्से में ट्वीट करने वाले राष्ट्रपति को लेकर चिंता न हो। लेकिन भारत सहित, दुनिया के तमाम देशों में सवाल है कि बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के उनके देश के लिए क्या मायने हैं।

सबसे स्वाभाविक बदलाव ट्रम्प के तहत शुरू हुए अमेरिकी अलगाववाद के दौर के खत्म होने की उम्मीद है, जिसने कई सहयोगियों को किनारे कर दिया। ज्यादातर मुद्दों पर अमेरिका के वैश्विक रुख में अन्य देशों की सलाह या चिंताओं को शामिल नहीं किया गया और अमेरिका पुराने अंतरराष्ट्रीयवादी राष्ट्रपतियों की सुरक्षा संबंधी प्रतिबद्धताओं से पीछे हट गया।

अब वाशिंगटन से उम्मीद है कि वह सहयोगात्मक वैश्विक नेतृत्व की अमेरिका की पारंपरिक इच्छा को फिर अपनाएगा। इसी से सीमाओं के परे से आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए जरूरी बहुपक्षवाद की पुन: पुष्टि भी जुड़ी है।

ट्रम्प पैरिस जलयवायु समझौते से, ईरान परमाणु समझौते से पीछे हट गए और महामारी के चरम पर विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर हो गए। बाइडेन ने इशारा किया है कि वे इन तीनों स्थितियों को बदलेंगे।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने दोस्तों व विरोधियों के साथ व्यापार युद्ध शुरू किए थे, पर अब आर्थिक कूटनीति की ज्यादा सहयोगी शैली को उनकी जगह लेनी चाहिए।

अभी वैश्विक अर्थव्यवस्था को इसकी जरूरत है और उम्मीद है कि बाइडेन इसे पूरा करेंगे। भारत भी इन बदलावों का स्वागत करेगा, भले ही ट्रम्प और प्रधानमंत्री मोदी के बीच ‘ब्रोमांस’ ने भारत-अमेरिका संबंधों को अनावश्यक रूप से निजी रंग दे दिया। हालांकि कई कारणों से भारत-अमेरिका संबंध मजबूत हैं और सरकारें बदलने से ये अप्रभावित ही रहते हैं। दोनों देशों में रणनीतिक या आर्थिक मुद्दों पर खास मतभेद नहीं हैं।

भारतीयों से संबंधित चिंता का एक क्षेत्र यह है कि क्या भारतीय टेकीज को अमेरिका में काम का मौका देने वाले एच1-बी वर्क वीजा पर ट्रम्प का प्रतिरोधी रवैया बाइडेन-हैरिस प्रशासन में बदलेगा। दोनों डेमोक्रेट्स उम्मीदवार ज्यादा खुली प्रवासी नीति के समर्थक रहे हैं। करीब 40 लाख भारतीय अमेरिकियों के समुदाय का अमेरिका की राजनीतिक में प्रभाव बढ़ा है।

लेकिन कुछ मोदी समर्थक इसे लेकर चिंतित हैं कि डेमोक्रेट्स पारंपरिक रूप से लोकतंत्र व मानव अधिकारों के समर्थक रहे हैं और इसका मौजूदा भारत सरकार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। कमला मोदी सरकार के कुछ कार्यों से असहमत हो सकती हैं। वे ऐसे मुद्दों पर कड़ा रुख अपना सकती हैं, जिससे समुदाय नाराज होते हैं।

बाइडेन प्रशासन के लिए विदेश नीति में चीन मुख्य चुनौती बना रहेगा। डेमोक्रेट्स को भी लगता है कि उसके ‘शांतिपूर्ण उदय’ के प्रति क्षेत्र में कड़ा रुख जरूरी है। अब अमेरिका उत्पादन व सप्लाई चेन के लिए चीन पर निर्भरता कम करना चाहता है। भारत को इसका लाभ मिल सकता है। अमेरिका-भारत के सैन्य संबंध भी लगातार मजबूत हुए हैं।

भारत अमेरिका की ‘इंडो-पैसिफिक’ धारणा का मर्थन करता रहा है और क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का समूह) को लेकर भी अपने संकोच लगातार दूर कर रहा है। क्वाड भारत की चीन से जुड़ी सभी सुरक्षा संबंधी चिंताओं की दवा है। हालांकि, अमेरिका का उद्देश्य उसके वैश्विक प्रभुत्व को चीन से मिल रही भूराजनैतिक चुनौती का सामना करना है।

बाइडेन प्रशासन को वहां संभलकर काम करना होगा, जहां ट्रम्प जल्दबाजी करते नजर आए। उसे मध्य पूर्व में सावधान रहना होगा, जहां ट्रम्प ने ऐसे कदम उठाए, जिन्हें वापस लेना मुश्किल होगा। यूएई और बहरीन ने सऊदी के समर्थन के साथ हाल ही में जिस ‘अब्राहम समझौता’ के तहत इजराइल को मान्यता दी है, उसे अब बदला नहीं जा सकता।

फिर भले ही बाइडेन नेतन्याहू द्वारा इजराइल के विस्तार के प्रति कम सहानुभूति रखें। नया उभरता हुआ खाड़ी अरब गठबंधन भी बाइडेन द्वारा ईरान पर ओबामा वाली नीति फिर अपनाने का शायद ही स्वागत करे। इसीलिए पश्चिम एशिया में सीधे ट्रम्पवाद से हट जाना संभव नहीं होगा।

हालांकि भौगोलिक स्थितियों से परे विचारधाराएं होती हैं। जो बाइडेन ने बतौर उम्मीदवार अपने कार्यकाल के शुरुआती महीनों में ही वैश्विक लोकतंत्र समिट रखने की बात कही थी। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत की निश्चित रूप से इसमें बड़ी भूमिका होगी। आने वाले वर्षों में बाइडेन के तत्वाधान में भारत, ऑस्ट्रेलिया और साऊथ कोरिया समेत जी-7 देश लोकतंत्रों के एक उभरते हुए समूह के रूप में एक बड़ी लोकतांत्रिक ताकत बनकर उभर सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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What will the world and India expect from Joe Biden?


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