मंगलवार, 3 नवंबर 2020

मोदी के भाषणों में पांच साल पहले भी जंगलराज-पलायन-भ्रष्टाचार ही मुद्दा था, फिर आखिर बदला क्या?

पिछले पांच साल में बिहार की राजनीति में बहुत कुछ बदला। सत्ता के साथी बदले, गठबंधन के साथी बदले, जो तब सरकार में थे आज खिलाफ हैं और जो सरकार के खिलाफ थे आज वही सरकार की खूबियां गिनाते नहीं थक रहे हैं। लेकिन, इन सब के बाद भी कुछ नहीं बदला तो वो हैं चुनावी मुद्दे। खासकर के पीएम मोदी के मुद्दें। जिन मुद्दों को पीएम पांच साल पहले अपनी सभाओं में उठाए थे आज भी उन्हीं मुद्दों के सहारे वो एनडीए को सत्ता के सिंहासन पर बैठने की भरपूर कोशिश में जुटे हैं।

जंगलराज : आज 15 साल के जंगलराज की बात हो रही है तब 25 साल का मुद्दा था

जंगलराज ये एक ऐसा चुनावी मुद्दा है जिसके बिना बिहार में चुनाव का होना मुमकिन ही नहीं है। पांच साल पहले पीएम मोदी ने लगभग हर सभा में इस मुद्दे को उठाया था। मजेदार बात यह रही कि तब सिर्फ राजद और कांग्रेस ही नहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी निशाने पर थे।

मुंगेर की सभा में पीएम ने कहा था कि जंगलराज में इन लोगों ने सबसे बड़ा जो उद्योग लगाया था वो था अपहरण उद्योग। सूरज ढलने से पहले मां अपने बच्चों को कहीं जाने नहीं देती थी कि अपहरण हो जाएगा। लोग नई गाड़ी खरीदने के बाद तत्काल पुरानी कर देते। क्योंकि, शोरूम से बाहर निकलते ही नई गाड़ी देखकर कोई लूट ले जाता था।

इस चुनाव में भी मोदी जंगलराज को मुद्दा बना रहे हैं। अंतर बस इतना है कि आज 15 साल के जंगलराज की बात हो रही है तब 25 साल का मुद्दा था। उन्होंने कहा था कि 25 साल में इन लोगों ने दो-दो पीढ़ियों को तबाह कर दिया। हाल ही में मुजफ्फरपुर में मोदी ने कहा कि जंगलराज में किडनैपिंग इंडस्ट्री का कॉपी राइट इन्हीं लोगों के पास है। वहीं छपरा में मोदी ने कहा कि पहले फिरौती का कारोबार होता था। जिस राज्‍य में हर मां पहले कहती थी कि घर के भीतर ही रहो, बाहर मत निकलो, बाहर लकड़सूंघवा घूम रहा है। इस बार तो मोदी तेजस्वी को जंगलराज का युवराज कह रहे हैं।

पलायन और रोजगार: बिहार की पानी और जवानी दोनों इन लोगों ने बर्बाद कर दिया

पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार मंच पर एक सभा के दौरान।

2015 के चुनाव में बिहारी की बदहाली और युवाओं के पलायन के मुद्दे को लेकर मोदी महागठबंधन को टारगेट करने से नहीं चूकते थे। तब एक सभा में उन्होंने कहा था कि बिहार की पानी और जवानी दोनों इन लोगों ने बर्बाद कर दिया। युवा पीढ़ी को पलायन के लिए मजबूर कर दिया। इस चुनाव में भी पलायन और रोजगार मोदी के लिए मुद्दा है। उन्होंने पटना में एक सभा में कहा कि सरकारी नौकरी की तो बात छोड़िए इनके आने के बाद प्राइवेट कंपनियां भी यहां आने से डर जाएंगी। हालांकि पिछले 15 साल के दौरान पलायन की रफ्तार कितनी बढ़ी इसपर उन्होंने कुछ नहीं कहा। इस बार कोरोनाकाल में बिहारी प्रवासी मजदूरों के पलायन की सबसे ज्यादा चर्चा हुई है।

परिवारवाद : निशाने पर तब भी लालू थे, आज भी लालू का ही परिवार है

लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार और बिहार चुनाव में लालू परिवार पर परिवारवाद का आरोप लगाने से मोदी नहीं चूकते। पिछले चुनाव में भी उन्होंने इसे मुद्दा बनाया था और इस चुनाव में भी लालू का परिवार उनके निशाने पर हैं। समस्तीपुर में मोदी ने कहा कि सिर्फ और सिर्फ अपने-अपने परिवार के लिए काम कर रही इन पारिवारिक पार्टियों ने आपको क्या दिया? बड़े-बड़े बंगले बने, तो किसके बने? महल बने, तो किसके बने? बड़ी-बड़ी करोड़ों की गाड़ियां आईं, गाड़ियों का काफिला बना, तो किसका बना। उनके बच्चे ही हर जगह जाएंगे तो आप कहां जाएंगे?

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भ्रष्टाचार : लालू और कांग्रेस के साथ-साथ नीतीश भी निशाने पर थे
इस मुद्दे को 2015 के चुनाव में मोदी ने जोर शोर से उठाया था। चारा घोटाला सहित तमाम घोटालों का जिक्र किया था। इस चुनाव में भी ये मुद्दा हावी है। दरभंगा की सभा में पीएम ने कहा कि इनके राज में कमीशनखोरी का बोलबाला था। जो लाेग नौकरी को भी करोड़ों रुपए कमाने का जरिया बना लें, उससे लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। पहले सरकार में रहने वालों का मंत्र रहा है कि पैसा हजम, परियोजना खत्म। उन्हें कमीशनखोरी शब्द के साथ इतना प्रेम था कि कनेक्टिविटी पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।

आरक्षण : तब बैकफुट पर थे आज फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं

तब नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे। अभी वे एनडीए में हैं।

2015 के चुनाव में आरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा बना था। संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान के बाद विपक्ष ने इसे सियासी हथियार बना लिया। मोदी को सामने आकर बचाव करना पड़ा था। छपरा में उन्होंने कहा था कि आरक्षण कोई छीन नहीं सकता है। इस बार भी पीएम ने दरभंगा से छपरा तक की रैली में आरक्षण के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने सवर्ण गरीबों के लिए जो 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है, उसका लाभ समाज के युवाओं को मिलना तय है. इसके साथ ही सरकार ने दलित, पिछड़े, अति-पिछड़े भाई बहनों के लिए आरक्षण को जो अगले 10 साल तक के लिए बढ़ा दिया है।

गाली : ये तब भी मुद्दा था अब भी है

पिछले चुनाव में मोदी ने कहा था कि ये लोग मोदी को गाली देने से थकते नहीं हैं। हर सुबह वे उठते हैं। डिक्शनरी में एक नई गाली ढूंढ़ते हैं और मुझ पर फेंक देते हैं। और अब जब डिक्शनरी की गलियां खत्म हो गई तो इनलोगों ने अब फैक्ट्री खोल ली है। इस बार भी छपरा में एक सभा के दौरान पीएम ने कहा कि वे इतने बौखला गए हैं कि अब उन्‍होंने मोदी को भी गाली देने लगे हैं। ठीक है मुझे गाली दे दीजिए, जो मन आए बोलिए, ल‍ेकिन अपना गुस्‍सा बिहार के लोगों पर मत उतारिए।

बिजली : तब नीतीश निशाने पर थे, आज उनकी ही वाहवाही होती है
पिछले चुनाव में मोदी लगभग हर सभा में बिजली का जिक्र करते थे। तब उनके टारगेट पर लालू से ज्यादा नीतीश थे। तब मोदी कहते थे कि नीतीश कुमार ने सबको बिजली देने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि सबको बिजली नहीं दिया तो वोट मांगने नहीं आऊंगा। वे भीड़ से पूछते थे क्या इन्होंने बिजली दिया, क्या इन्हें वोट मांगने का हक है। इसबार भी बिजली चुनावी मुद्दा है लेकिन नीतीश की जगह महागठबंधन और लालू परिवार निशाने पर हैं। मुजफ्फरपुर में मोदी ने कहा कि अब लालटेन काल का अंधेरा छट चुका है। गरीबों को बिजली मिल रही है। लोग एलईडी बल्ब की ओर बढ़ रहे हैं और जंगलराज वाले अभी भी लालटेन ही जलाना चाहते हैं।



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जिन मुद्दों को मोदी 5 साल पहले भुना रहे थे, इस बार चुनावी रैलियों में भी उन्हीं का जिक्र कर रहे हैं।


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