आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागार्नो-काराबाख पर नियंत्रण को लेकर भीषण लड़ाई चल रही है। दुनिया की नजर इन दोनों देशों पर है। सीजफायर के कई प्रयास अब तक नाकाम रहे हैं। इसी बीच भास्कर से बात करते हुए अजरबैजान के एंबेसडर और फर्स्ट वाइस प्रेसिडेंट के असिस्टेंट एल्चिन आमिरबायोफ ने कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत ने इस संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौते के पालन का समर्थन किया है।
उन्होंने कहा, 'भारत हमारे बॉर्डर का सम्मान करता है और हम इसके लिए शुक्रगुजार हैं। हमें विश्वास है कि भारत आगे भी तटस्थ रहेगा और इस संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं का समर्थन करेगा। अजरबैजान और भारत दोनों ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं और भारत इसका फाउंडर मेंबर है। एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान ही इसका आधार है।'
वो कहते हैं, 'भारत अगले साल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनने जा रहा है। भारत की भूमिका विश्व में और भी अहम होगी। इसी परिषद में नागार्नो-काराबाख पर अजरबैजान के प्रभुत्व को लेकर चार प्रस्ताव पारित किए गए हैं। हमें विश्वास है भारत इनका समर्थन करेगा।'
अजरबैजान युद्ध में वहां रह रहे भारतीय की भूमिका के सवाल पर उन्होंने कहा, 'अजरबैजान में रह रहे भारतीय व्यापार में सक्रिय हैं। कोविड महामारी का उन पर भी असर हुआ है। वो अपनी तरह से प्रयास कर रहे हैं।' एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान के टूरिस्ट अब भारत आ रहे हैं और भारत के लोग भी अजरबैजान घूमने अधिक जा रहे हैं। लोगों के आपसी संपर्क से दोनों देश करीब आए हैं और भविष्य में और भी करीब आएंगे।'
क्या अजरबैजान कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन करता है और यदि भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को छुड़ाने का प्रयास किया तो क्या वो भारत का समर्थन करेगा इस सवाल पर उन्होंने कहा, 'मैं इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं कहूंगा लेकिन अजरबैजान का पक्ष इस बारे में स्पष्ट है। हम मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों और कानूनों का सम्मान होना चाहिए। दोनों पक्षों के हितों का ख्याल इसी दायरे में रहकर रखा जाना चाहिए।'
अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच युद्ध अब 41वें दिन में पहुंच गया है। दोनों ओर से हजारों लोग अब तक मारे जा चुके हैं। नागार्नो-काराबाख से बड़ी तादाद में आर्मेनियाई मूल के लोगों ने पलायन किया है। युद्ध की ताजा स्थिति क्या है? ये बताते हुए एल्चिन आमिरबायोफ ने कहा, 'आर्मेनिया न सिर्फ दो तरफ हमारे सैन्य ठिकानों पर बमबारी कर रहा बल्कि बॉर्डर के पास की रिहायशी बस्तियों को भी निशाना बना रहा है।
अजरबैजान ये कहता रहा है कि वह आर्मेनिया के नियंत्रण से अपने इलाके को छुड़ा रहा है। एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान के बीस फीसदी हिस्से पर आर्मेनिया का कब्जा है। हमने आर्मेनिया के कब्जे वाले सात जिलों में से चार को अब तक छुड़ा लिया है। करीब दस लाख अजरबैजानी लोग आंतरिक प्रवासी थे। अब छुड़ाए गए इलाकों में इन्हें फिर से बसाया जाएगा। जब तक समूचा नागार्नो-काराबाख मुक्त नहीं करा लिया जाएगा ये लड़ाई जा रहेगी।'
अब तक आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तीन बार सीजफायर हो चुका है। एक बार रूस ने, एक बार फ्रांस ने और एक बार यूरोपीय संघ ने सीजफायर करवाया है। लेकिन हर बार ये सीजफायर कुछ घंटों भी नहीं चल सका। अजरबैजान इसके लिए आर्मेनिया को जिम्मेदार बताता है।
एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान के राष्ट्रपति ने एक बार फिर वार्ता और सीजफायर की पेशकश की है लेकिन आर्मेनिया के प्रधानमंत्री की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। आर्मेनिया अभी अपने कब्जे वाले क्षेत्र से अपनी सेना हटाने और युद्ध समाप्त करने के लिए तैयार नहीं है।'
क्या कुछ मुद्दों पर अजरबैजान समझौता करने या पीछे हटने के लिए तैयार है। इस सवाल पर एल्चिन आमिरबायोफ ने कहा, 'हमारी सेनाएं मजबूत स्थिति में हैं और अधिक से अधिक इलाके में आगे बढ़ रही हैं, बावजूद इसके हम अभी जंग रोकने को तैयार हैं। लेकिन आर्मेनिया को सार्वजनिक तौर पर ये बोलना होगा कि वो अब इन इलाकों पर फिर से कब्जे का कोई प्रयास नहीं करेगा। हम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने के लिये तैयार हैं।'
अजरबैजान का आरोप है कि ये युद्ध आर्मेनिया ने शुरू किया है। 27 सितंबर को आर्मेनिया की ओर से बमबारी की गई जिसमें अजरबैजान के नागरिक और सैनिक मारे गए। एल्चिन कहते हैं, 'इसके जवाब में हमें बड़ा सैन्य ऑपरेशन शुरू करना पड़ा। हमें लगा ये वक्त है आर्मेनिया को ये बताने का कि अब अजरबैजान अपने नागरिकों पर कोई हमला बर्दाश्त नहीं करेगा।'
आर्मेनियाई लोगों ने डर जाहिर किया है कि यदि वो नागार्नो-काराबाख को हार जाते हैं तो आर्मेनियाई लोगों को एक और नरसंहार का सामना करना पड़ सकता है। एल्चिन ऐसे आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं, 'अजरबैजान एक बहुसांस्कृतिक क्षेत्र है। अजरबैजान के नियंत्रण वाले इलाकों में आर्मेनियाई लोगों को बराबर अधिकार होंगे और उनकी पूरी सुरक्षा की जाएगी।'
युद्ध में अजरबैजानी महिलाओं की भूमिका के सवाल पर एल्चिन कहते हैं, 'अजरबैजान की महिलाएं सीधे तौर पर सीमा पर युद्ध में शामिल नहीं हैं। लेकिन वो मां, बहन और पत्नी के रूप में युद्ध में शामिल हैं। वो समाज का सबसे अहम अंग है। वो दुआएं कर रही हैं और जो भी उनसे हो रहा है, कर रही हैं। हम चाहते हैं उनकी दुआएं पूरी हों।'
अजरबैजान पर आरोप हैं वह लड़ाई में सीरियाई चरमपंथियों और भाड़े के सैनिकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन आरोपों को खारिज करते हुए एल्चिन कहते हैं कि इसके उलट दुनिया भर से आर्मेनियाई मूल के लोग नागार्ने-काराबाख आ रहे हैं और लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं। असल में चरमपंथी वो हैं।
दुनियाभर में बहुत से लोग मानते हैं कि नागार्नो-काराबाख में चल रही लड़ाई इस्लाम और ईसाइयत के बीच टकराव भी है। इस पर एल्चिन कहते हैं, 'आर्मेनिया अब युद्ध में धर्म का कार्ड खेल रहा है। वो पश्चिमी देशों की सहानुभूति हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है। ये बहुत ही खतरनाक है। लेकिन सच ये है कि इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। जो लोग इस जमीन का इतिहास जानते हैं वो ये मानते हैं कि ये पूरी तरह जमीन की लड़ाई है जिस पर आर्मेनिया दशकों से कब्जा किए बैठा है।'
अजरबैजान युद्ध में तुर्की की भूमिका के सवाल पर एल्चिन कहते हैं कि तुर्की की भूमिका सिर्फ कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन तक ही है। वो कहते हैं, 'तुर्की हमारा सबसे करीबी देश है। सबसे मजबूत सहयोगी है। ये सच है कि हम एक-दूसरे के इतने करीब हैं कि हम कहते हैं कि हम एक महान राष्ट्र के दो प्रांत हैं। और हमें इस रिश्ते पर गर्व है।
तुर्की ऐसा अकेला देश है जो हर समय हमारे साथ खड़ा रहा है। तुर्की हमारे साथ नहीं होता तो हम अकेले पड़ जाते। लेकिन इस लड़ाई में तुर्की की भूमिका सिर्फ राजनयिक और कूटनीतिक समर्थन तक ही है। तुर्की का कोई सैनिक अजरबैजान की ओर से नहीं लड़ रहा है।'
सोवियत संघ के टूटने से पहले तक अजरबैजान और आर्मेनिया दोनों ही सोवियत संघ का हिस्सा थे। रूस के दोनों ही देशों से रिश्ते हैं लेकिन वो आर्मेनिया के अधिक करीब है। इस लड़ाई में रूस की क्या भूमिका हो सकती है इस सवाल पर एल्चिन कहते हैं, 'इस संघर्ष में रूस सबसे अहम मध्यस्थ है। वह ओएससीई मिंस्क समूह का चेयरमैन है। रूस इस इस लड़ाई को समाप्त करने का हर संभव प्रयास कर रहा है। राष्ट्रपति पुतिन ने अजरबैजान के राष्ट्रपति और आर्मेनिया के प्रधानमंत्री से फोन पर बात की है। अजरबैजान सीजफायर में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है बशर्ते आर्मेनिया इसका इस्तेमाल अपने सेना को मजबूत करने के लिए ना करे।'
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