पिछले हफ्ते किसानों द्वारा किए गए भारत बंद में एक विडंबनापूर्ण तस्वीर नजर आई। यह तस्वीर थी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की, जिन्होंने किसानों की मांगों के समर्थन में एक दिन का अनशन किया था। गिने-चुने समर्थकों के साथ अन्ना ने अपने गांव रालेगण सिद्धि से एक रिकॉर्डेड संदेश टीवी चैनलों को भेजा। ज्यादातर ने इसे नजरअंदाज किया, जबकि एक समय था जब यही लोग इन गांधी टोपी वाले नेता का उत्साह से पीछा करते थे और उन्हें आधुनिक महात्मा बताते थे।
भारतीय राजनीति के ‘अन्ना आंदोलन’ को बहुत समय बीत गया, पर सवाल यह है कि क्या इसे सरकार के खिलाफ राजनीति का झंडा लिए नए आंदोलनकर्ता दोहरा पाएंगे? यानी क्या 2020 किसान आंदोलन मोदी 2.0 के साथ वह कर पाएगा, जो 2011 के अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने मनमोहन सरकार के साथ किया था?
इसमें शक नहीं कि यूपीए-2 के पतन में अन्ना आंदोलन का योगदान था। इसने भ्रष्टाचार को राजनीतिक मंच का केंद्र बना दिया था, सरकार के खिलाफ लोगों की राय को सामने ला दिया था और नरेंद्र मोदी जैसे नेता को रास्ता दिया था कि वे खुद को कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के ‘दबंग’ विकल्प के रूप में पेश कर सकें। ‘इंडिया अंगेस्ट करप्शन’ समूह ने वामपंथी से लेकर दक्षिणपंथी तक, सभी तरह की शख्सियतों को एक मंच पर ला दिया था।
योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण जैसे लोग, बाबा रामदेव व श्रीश्री रवि शंकर के साथ चल रहे थे, वहीं RTI कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल को RSS प्रोत्साहित कर रहा था। सबसे जरूरी, इसने शहरी मध्यम वर्ग का झुकाव ‘सब नेता चोर हैं’ जैसे भड़काऊ नारे की ओर कर दिया था, जो बदलाव के मूड को गति देने के लिए काफी था।
अब, किसान सड़कों पर उतरे हैं। इसमें कोई अन्ना जैसी शख्सियत नहीं है, जो पूरे आंदोलन का चेहरा बने। इसकी जगह विभिन्न आवाजें हैं, मुख्यत: किसान संघ समुदाय की, लेकिन इसमें वे मतविरोधी समूह भी हैं, जिन्हें मोदी सरकार से शिकायतें हैं। अगर 2011 टीम अन्ना बनाम मनमोहन सरकार था, तो 2020 को ‘विपक्ष बनाम नरेंद्र मोदी’ की जंग बताया जा रहा है जिसमें किसान, संघर्ष को एक नैतिक आधार दे रहे हैं।
लेकिन एक मुख्य अंतर है। अब तक इसका कोई प्रमाण नहीं है कि किसान मुद्दे को मध्यमवर्ग का समर्थन है।
अन्ना आंदोलन के दौरान, मध्यमवर्ग तुरंत भ्रष्टाचार-विरोधी नारे से जुड़ गया था क्योंकि तब घोटालों की शृंखला सामने आई थी। इससे आंदोलन और नागरिकों में गुस्से व राजनीतिक वर्ग के प्रति अलगाव की एक कड़ी बनी थी। यह कड़ी इस बार गायब है। भारत का शहरी मध्यमवर्ग शायद ‘मुक्त बाजार’ सुधार के लिए सबसे मुखर चुनाव क्षेत्र है। प्रतिस्पर्धी बाजार में किसानों को वैसी सुरक्षा जरूरी है, जैसी वेतनभोगी कर्मचारियों को तय भत्तों से मिलती है, शायद यह विचार सुपरमार्केट-ऑनलाइन उपभोक्तावादी निर्वाण में रहने वाले लोगों को समझ नहीं आती।
‘अन्नदाता’ कहने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन मोबाइल शहरियों की कल्पना में ‘किसान’ किसी विशेष सुरक्षा का हकदार नहीं है। व्यापक जनवादी लहर के लिए जाना-पहचाना दुश्मन चाहिए। अन्ना आंदोलन में यह भ्रष्टाचार के दोषी केंद्रीय मंत्रियों की छवि थी। किसान आंदोलन बिखरा हुआ है। एक कानून को खत्म करने की मांग से दुश्मन की छवि नहीं बनती। किसान नेताओं ने ‘अडाणी-अंबानी’ के खिलाफ गुस्से को हवा देने का प्रयास किया, लेकिन क्या पक्षपात के आरोप व्यापक रूप से स्वीकार होंगे, यह अनिश्चित है।
किसान और अन्ना आंदोलन में एक और अंतर है। 2011 में सरकार विरोधी कथानक बनाने और टीम अन्ना के नेताओं को राष्ट्रीय नायक बनाने, दोनों में ही मीडिया तंत्र आंदोलनों का सक्रिय हिस्सा था। अब डरपोक और समझौते वाली मुख्यधारा की मीडिया सरकार की बातों को चुनौती नहीं देना चाहती और विपक्षी ताकतों को दरकिनार करती रहती है। शायद मूलभूत अंतर मोदी और मनमोहन सिंह की शख्सियत में है। जहां मनमोहन गठबंधन की राजनीति की मशक्कत से कमजोर हो गए और उनकी छवि सौम्य थी, वहीं मोदी की छवि बहुमत वाली सरकार के सख्त नेता की है।
जहां मनमोहन सरकार ने एंटी-करप्शन लोकपाल बिल पर चर्चा के लिए आधिकारिक समिति बनाकर अन्ना आंदोलन को वैध बना दिया था, वहीं मोदी सरकार ने जानबूझकर किसान आंदोलन को बांटने और बुरा बताने का प्रयास किया, जहां केंद्रीय मंत्री दावा कर रहे हैं कि ‘अर्बन माओवादियों’ के तथाकथित ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ आंदोलन में घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं। खालिस्तान का नाम लेकर नागरिकों को समझाने की कोशिश की जा रही है कि आंदोलन कृषि सुधार के खिलाफ नहीं है बल्कि भारत को अस्थिर करने के लिए है। एक केंद्रीय मंत्री ने तो यहां तक कहा कि आंदोलनकर्ता पाकिस्तान और चीन की इशारों पर काम कर रहे हैं।
किसान भले ही मोदी सरकार को बातचीत करने पर मजबूर कर पहला राउंड जीत गए हों, लेकिन वे यह उम्मीद न रखें कि दुराग्रही केंद्र इतनी आसानी से हार मानेगा। यह वह सरकार नहीं है जो अपने मंत्रियों को किसानों से मिलने के लिए धरनास्थल पर भेजेगी। अभी आगे अंसतोष का लंबा सर्द मौसम बाकी है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2KeNIVI
https://ift.tt/2WodvwX
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.