रविवार, 27 दिसंबर 2020

तेजी से बढ़ रहा है बुजुर्ग मां-बाप की देखरेख का खर्च, आसान नहीं है इसकी तैयारी

कुछ दशक पहले ज्यादातर लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे। बड़े सदस्य बच्चों की और बच्चे बड़े सदस्यों की आसानी से देखभाल कर पाते थे। लेकिन, बढ़ते शहरीकरण और एकल परिवारों ने कई बदलाव किए हैं। अब बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल न सिर्फ मुश्किल है, बल्कि काफी खर्चीली भी हो गई है।

खासकर जब बात बुजुर्गों की देखभाल की हो, तो मामला और पेचीदा हो जाता है। क्योंकि, बुजुर्गों की प्रतिरक्षा शक्ति और घाव भरने की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ काफी कम हो जाती है। पहले जब लोगों के कई बच्चे होते थे, तब बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल का काम अपेक्षाकृत आसान होता था, लेकिन अब सिर्फ एक या दो बच्चों पर ही मां-बाप की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी होती है।

भारत में तेजी से बढ़ रही बुजुर्गों की आबादी
नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2003 तक भारत में हर महिला के औसतन 3 बच्चे होते थे। लेकिन, 2017 में लैंसेट में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की रिपोर्ट के मुताबिक यह आंकड़ा प्रति महिला करीब 2.2 तक पहुंच गया है। यानी जनसंख्या वृद्धि दर मंद पड़ चुकी है। अगर यह दर 2.1 हो गई तो यह रिप्लेसमेंट रेट पर पहुंच जाएगी। यानी जन्म दर 2.1 होने पर जनसंख्या नहीं बढ़ेगी। उतने ही लोग पैदा होंगे, जितनों की मौत होगी।

संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक भारत में जन्मदर में 2040 तक धीमी गिरावट जारी रहेगी, फिर जनसंख्या में स्थिरता आ जाएगी। भारत सरकार ने भी 2018-19 की नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी के तहत 2045 तक जनसंख्या में स्थिरता लाने का लक्ष्य रखा है। इसका मतलब होगा कि बच्चे कम पैदा होंगे। मेडिकल सुविधाएं बढ़ने से औसत आय बढ़ेगी और इससे बुजुर्गों की संख्या भी तेजी से बढ़ेगी। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र का अनुमान कहता है कि 2050 तक भारत की कुल जनसंख्या में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या 19% हो जाएगी। इसके साथ ही बढ़ जाएगी बुजुर्गों के स्वास्थ्य की चिंता।

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, BHU के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ इंद्रजीत सिंह गंभीर इस उभरती समस्या पर कहते हैं, 'फिलहाल स्थिति बहुत गंभीर नहीं है। भारत को 'डबल हम्प' कहा जाता है। यानी यहां बूढ़ों और बच्चों दोनों की बड़ी आबादी रहेगी। अगले 20-30 साल तक चिंता की जरूरत नहीं है।' वे यह भी कहते हैं कि 2050 तक देश का हर पांचवां नागरिक बुजुर्ग होगा, इसलिए हमें तैयार रहना चाहिए।

60 पार के ज्यादातर बुजुर्गों को गंभीर बीमारियां
बुजुर्गों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी चिंता का विषय है। ऐसा इसलिए, क्योंकि WHO के अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारत में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च का 45% बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर किया जाएगा। भारत में 60 की उम्र के पार के 40% से ज्यादा बुजुर्ग हाई ब्लडप्रेशर और 30% से ज्यादा टाइप-2 डायबिटीज जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं।

वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों की हालत सबसे गंभीर
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) के एक सर्वे के मुताबिक उन बुजुर्गों के लिए खतरा सबसे ज्यादा है जो वृद्धाश्रमों में रहते हैं। करीब आधे डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। एक बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर पढ़े-लिखे नहीं है। उन्होंने सारा जीवन असंगठित क्षेत्र में काम करते हुए बिताया है। इससे उनका सामाजिक सुरक्षा का ताना-बाना काफी कमजोर था। भोपाल में 'अपना घर' नाम का वृद्धाश्रम चलाने वाली माधुरी मिश्रा बताती हैं कि उनके वृद्धाश्रम में फिलहाल 24 बुजुर्ग हैं। जिनमें से 6 चल-फिर नहीं सकते। यह आंकड़ा आम बुजुर्गों के मुकाबले बहुत ज्यादा था।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज के प्रोफेसर एसके सिंह कहते हैं, 'यह बात सच है कि कुल आबादी में बुजुर्ग सबसे ज्यादा खतरे में हैं।' वे इसके लिए मुंबई में कोरोना से हो चुकी रिकॉर्ड 11 हजार से ज्यादा मौतों का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं, 'जान गंवाने वाले लोगों में 50% से ज्यादा की उम्र 60 से ऊपर थी।' इसी डर के चलते पिछले महीनों में हेल्थ इंश्योरेंस लेने वालों की संख्या में भारी उछाल देखा गया।

तेजी से बढ़े हेल्थ इंश्योरेंस लेने वाले लोग
द मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020-21 के शुरुआती 6 महीनों में हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में 16% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों से लगातार बुजुर्ग माता-पिता और संबंधियों के स्वास्थ्य संबंधी खर्च आसानी से उठाने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेने का चलन बढ़ रहा था। यहां कुछ ऐसी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का जिक्र है, जो ग्राहकों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय रही हैं...

हेल्थ इंश्योरेंस बढ़ने के बावजूद इंवेस्टमेंट कंपनी सिक्योर इंवेस्टमेंट में सेल्स एक्जीक्यूटिव मुकेश कुमार कहते हैं, 'यह आसान नहीं होता। इंश्योरेंस से पहले होने वाले मेडिकल टेस्ट में अगर किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की जानकारी मिलती है, तो कई बार कंपनियां इंश्योरेंस देने से मना कर देती हैं। ऐसी हालत में अगर वे इंश्योरेंस देने को तैयार भी होती हैं तो वे प्रीमियम को कई गुना बढ़ा देती हैं।'

इंश्योरेंस तो बढ़े लेकिन स्वास्थ्य पर खर्च नहीं घटा
मुकेश बताते हैं, 'कई बार इंश्योरेंस का फायदा हॉस्पिटलों को होता है और लोगों को नुकसान। हॉस्पिटल हल्की-फुल्की बीमारी में ही मरीज को भर्ती कर लेते हैं ताकि कमाई कर सकें। वे बिल बनाकर इंश्योरेंस कंपनी से पैसे पा जाते हैं, लेकिन मरीज को जब गंभीर जरूरत होती है, तो इंश्योरेंस कंपनियां कई छिपी शर्तों के जरिए क्लेम देने से मना कर देती हैं।' इस बात पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज में प्रोफेसर डॉ संजय मोहंती कहते हैं कि यही वजह है कि हेल्थ इंश्योरेंस के तेजी से बढ़ने के बावजूद खर्च में कमी नहीं आई है। इसके लिए वे ओडिशा सरकार की बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना का उदाहरण देते हैं। जिसके तहत गंभीर बीमारियों का इलाज देने से मना करने के मामले सामने आए हैं।

एसोसिएशन ऑफ जेरेन्टोलॉजी इंडिया के अध्यक्ष और BHU के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ शुक्ला प्रसाद कहते हैं, 'इंश्योरेंस दिलाना एक माध्यम हो सकता है, लेकिन बुजुर्गों को एश्योरेंस की ज्यादा जरूरत है। इसके लिए सरकारों को उन्हें ध्यान में रखकर योजनाएं बनानी होंगी और प्राइवेट इंश्योरेंस पॉलिसी को रेगुलेट करना होगा। ताकि वे क्लेम देने से मना न करें।' बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर खर्चों में होने वाली बढ़ोतरी से निपटने के लिए सबसे जरूरी इन पर सरकार के फोकस को बढ़ाना है।

बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियों पर बढ़ाना होगा फोकस
स्वास्थ्य पत्रकार बनजोत कौर कहती हैं, '2019 में सरकार ने जीडीपी का 1.2% स्वास्थ्य पर खर्च किया। हमेशा की तरह इसमें से ज्यादातर खर्च नेशनल हेल्थ मिशन के तहत गर्भवती महिलाओं और शिशुओं पर हुआ। बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए सरकार को इसके लिए खर्च को बढ़ाने की जरूरत है।'

डॉ मोहंती कहते हैं, 'बच्चे और मां के सामने आगे 50 से 70 साल की जिंदगी होती है। ऐसे में यह खर्च सही भी है।' उन्होंने कहा, 'सामाजिक न्याय विभाग बुजुर्गों की समस्याओं के लिए सहायता देता है। केंद्र सरकार भी आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम के तहत इनकी बीमारियों पर फोकस कर रही है। लेकिन, अभी ऐसी योजनाएं बहुत शुरुआती अवस्था में हैं। ऐसे में प्रभाव का सही आकलन नहीं हो सकता। लेकिन, यह तय है कि ऐसी योजनाओं के तहत इन गंभीर बीमारियों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।'

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉ गंभीर बुजुर्गों की बढ़ती आबादी को देखते हुए बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियों के लिए तैयारी को समर्पित एक संस्थान की जरूरत बताते हुए कहते हैं, 'बुढ़ापे से संबंधित रोगों के प्रति गंभीरता बढ़ी है। कई मेडिकल कॉलेजों में इससे संबंधित विभाग खुले हैं और इसकी पढ़ाई शुरू हुई है, लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद भी अब तक बुढ़ापे से जुड़े रोगों को समर्पित कोई केंद्रीय संस्थान नहीं खुल सका है।'



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Senior Citizen Health Plan | Middle-Aged Percentage In India Update; Medical Expenditure For Senior Citizens And Common Elderly Illnesses?


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3poN9aB
https://ift.tt/3hiEKmx

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt, please let me know.

Popular Post