दिल्ली की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक महीना हो चुका है। यहां अब बुजुर्गों की तुलना में युवा प्रदर्शनकारी अधिक हैं। टीकरी बॉर्डर और सिंघू बॉर्डर पर मीलों तक फैले ट्रालियों के काफिले के दोनों तरफ अब ट्रैफिक चलने लगा है। ट्रेक्टरों पर बैठे युवा तेज आवाज में संगीत बजाते हुए और नारेबाजी करते हुए गुजरते रहते हैं। कई बार उनके हाथों में लाठियां भी होती हैं। उनके नारे उग्र हो जाते हैं।
ऐसे ही एक ट्रेक्टर को रोकते हुए एक बुजुर्ग प्रदर्शनकारी ने कहा, 'हम यहां आंदोलन में मारे गए किसानों की मौत का गम मना रहे हैं, कोई जश्न नहीं।' ये सुनकर युवाओं ने लाउडस्पीकर पर बज रहा संगीत बंद कर दिया और ट्रैक्टर को पीछे घुमा लिया। अगले दिन एक बुजुर्ग किसान नेता मंच से ऐलान कर रहे थे, 'ट्रैक्टर पर स्पीकर बांध कर हुल्लड़बाजी ना करें। हमें गांधी और भगत सिंह के रास्ते पर चलना है। सब्र और त्याग हमारा रास्ता है। हमारे किसान मारे जा रहे हैं। ये आंदोलन है कोई जश्न नहीं।'
गुरविंदर सिंह चार युवाओं के साथ इनोवा कार से आए हैं। वो कहते हैं, 'मेरा पूरा गांव, खानदान यहीं है। मैं आज यहां पहली बार आया हूं, मेरा वापस लौटने का मन नहीं कर रहा है। हमारे गांव से और भी युवा पहुंच रहे हैं।' क्या उन्हें बुजुर्ग किसानों को ठंड में सड़क पर सोते हुए देखकर गुस्सा आता है? वे कहते हैं, 'गुस्सा होता तो हम हुल्लड़बाजी कर रहे होते, गुस्सा नहीं है, हम बुजुर्गों की तरह ही सब्र से काम ले रहे हैं।'
हरियाणा के सिरसा से आए राकेश कुमार अपने ग्रुप के साथ दो सप्ताह से टीकरी बॉर्डर पर प्रोटेस्ट में शामिल हैं। वो कहते हैं, 'बुजुर्गों को ठंड में कांपते देखकर बहुत बुरा लगता है। गुस्सा भी आता है। यहां बहुत परेशानियां हैं, लेकिन अपने हक के लिए इतना तो करना ही होगा।'
राकेश कहते हैं, 'किसान पीछे हटने वाले नहीं हैं, सरकार को ही इस बारे में सोचना होगा। सरकार को देखना चाहिए कि दो युवा घर जा रहे हैं, तो उनके बदले दस आ रहे हैं।' राकेश के समूह में दिन भर आंदोलन की ही बात चलती है। वे सब एक दूसरे से यही पूछते रहते हैं कि सरकार कब मानेगी और वे कब घर लौटेंगे। कभी-कभी उन्हें इसे लेकर झुंझलाहट भी होती है, लेकिन बुजुर्ग किसानों को देखकर वे अपने मन को शांत कर लेते हैं।
रोहतास भी दो सप्ताह पहले प्रोटेस्ट में शामिल हुए थे। वो कहते हैं, 'टीवी पर आंदोलन की खबरें देखकर मेरा खून उबल रहा था। मुझसे घर में रहा नहीं गया और मैं यहां चला आया।' वे कहते हैं, 'किसानों को इस हालत में देखकर बहुत गुस्सा आता है। सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर आता है कि सरकार हमारे बारे में कुछ कर नहीं रही। अभी दिल में क्या चल रहा है, ये बताया नहीं जा सकता।' रोहतास को लगता है कि वे देश के लिए और किसानों के लिए लड़ रहे हैं और इस लड़ाई में अगर उनकी जान भी चली जाए, तो इसकी परवाह नहीं हैं। परिवार को उनकी चिंता होती है तो समझा देते हैं कि 'देश से बढ़कर कुछ नहीं है।'
किसान 29 दिसंबर को सरकार से मिलने को राजी; शर्त- कानून वापसी पर विचार, MSP की गारंटी पर बात हो
टीकरी बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के मंच के बीच हुई बैरिकेडिंग से एक घेरा बन गया है जिसमें दर्जनों युवा हाथ में लाठी लिए खड़े रहते हैं। ये यहां किसान आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच खड़े हैं और व्यवस्था संभाल रहे हैं। प्रदीप सिंह रोजाना सुबह 11 बजे यहां पहुंचते हैं और फिर रात 4 बजे तक यहीं रहते हैं। वे कहते हैं, 'हम सबसे आगे हैं, अगर कुछ हुआ तो सबसे पहले हम ही सामने आएंगे।' पंजाब के मोगा से आए प्रदीप कहते हैं, 'अभी तक धरना शांतिपूर्ण है, इसलिए डर की कोई बात नहीं है। ये बैरिकेड हमने अपने आप लगाए हैं ताकि कोई पुलिस पर पत्थर ना फेंक दे, शरारत ना कर दे या हुल्लड़बाजी से हंगामा ना हो जाए।'
आखिर वे कब तक यहां यूं ही हाथ में लाठी लिए खड़े रहेंगे? प्रदीप कहते हैं, 'हमारे नेता जो फैसला लेंगे हम वही करेंगे, अगर वो कहेंगे कि आगे बढ़ना है तो आगे बढ़ेंगे, कहेंगे यहीं रुकना हैं तो यहीं रुकेंगे।' कबड्डी खिलाड़ी फरियाद अली और उनके कोच रिंकू पटवारी भी किसानों के बीच खड़े हैं। वो युवाओं को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। फरियाद कहते हैं, 'हम कबड्डी खिलाड़ी बाद में हैं, किसान के बेटे पहले, हम यहां युवाओं में जोश भरने आए हैं। सिर्फ मैं ही नहीं दूसरे पंजाबी कबड्डी खिलाड़ी भी यहां हैं। हमने अपने टूर्नामेंट रद्द कर दिए हैं।'
डॉ. अमित एक लोकगायक हैं और म्यूजिक वीडियो बनाकर यूट्यूब पर डालते हैं। वे भी आंदोलन में शामिल होने के लिए आए हैं। अमित कहते हैं, 'युवा होने के नाते ये देखकर निराशा होती है कि सरकार इतनी बड़ी तादाद में बैठे किसानों की बात नहीं सुन रही है।'
क्या उन्हें ये डर नहीं है कि आंदोलन में शामिल होने पर उन्हें निशाना भी बनाया जा सकता है। वो कहते हैं, 'अगर सरकार ऐसा करती है तो गलत करेगी। मेरे लिए तो ये अच्छा ही होगा क्योंकि इससे आंदोलन को और मजबूती मिलेगी।' टीकरी बॉर्डर पर बड़ी तादाद में शामिल युवा प्रदर्शनकारियों में अभी एक अनुशासन दिखता है। उन्होंने अपने गुस्से को थामा हुआ है। अनौपचारिक बातचीत में वो जरूर गुस्से का इजहार करते हैं, लेकिन कैमरे के सामने नपी-तुली भाषा में बोलते हैं।
ऐसे में एक सवाल मन में कौंधता है कि यदि ये युवा आंदोलनकारी बेकाबू हुए तो क्या होगा? इस सवाल पर किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, 'शुरू में हमें युवाओं के बेकाबू होने का डर था। लेकिन हम उन्हें ये समझाने में कामयाब रहे हैं कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन ही आंदोलन की ताकत है। हिंसा इस आंदोलन को हरा देगी।'
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/38GMevL
https://ift.tt/3roSJvw
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.