केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोनावायरस वैक्सीन को लेकर Q&A जारी किए हैं। इसमें उन प्रश्नों का जवाब दिया गया है, जिनके बारे में लोगों के मन में जिज्ञासा है। केंद्र सरकार का कहना है कि वैक्सीन लगवाना अनिवार्य नहीं है। यह पूरी तरह से आपकी इच्छा पर निर्भर होगा।
इसके बाद भी सरकार कह रही है कि कोरोना से बचने के लिए और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, रिश्तेदारों और को-वर्कर्स में इसका प्रसार रोकने के लिए वैक्सीन लगानी चाहिए। यह आपकी सुरक्षा के लिए है। जो कोरोनावायरस पॉजिटिव हो चुके हैं, क्या उन्हें भी वैक्सीन लगानी चाहिए? सरकार ने तो कह दिया कि लगानी चाहिए, पर क्यों? इसी तरह कई प्रश्न हैं, जिनके जवाब हम आपको यहां दे रहे हैं...
क्या बच्चों को वैक्सीन लगवानी होगी?
इस संबंध में कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है। भारत में जिन वैक्सीन के ट्रायल्स हुए हैं, उनमें बच्चों को ट्रायल्स से बाहर रखा गया है। ऐसे में वैक्सीन लगाने से उन पर क्या असर होगा, यह अब तक हमें पता नहीं है। इसी तरह बात तो यह भी हो रही है कि गर्भवती महिलाओं और ब्रेस्ट फीडिंग करा रही महिलाओं को भी ट्रायल्स से बाहर रखा गया है। इस वजह से इन्हें वैक्सीनेट करना भी सुरक्षित नहीं है।
अब तक की स्टडी कहती है कि 14 वर्ष तक की उम्र बढ़ने की उम्र होती है। इस दौरान वैक्सीन उनकी ग्रोथ पर असर डाल सकती है। इस वजह से उन्हें ट्रायल्स से बाहर रखा था और अब वैक्सीनेशन से भी बाहर रखा गया है। वैसे भी कोरोनावायरस का असर इस उम्र के बच्चों पर सबसे कम देखा गया है। पूरी दुनिया में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कोरोनावायरस के गंभीर होने या मौत होने के मामले भी बहुत ही कम हैं।
पर यहां यह बताना जरूरी है कि अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) ने गर्भवती महिलाओं और ब्रेस्ट फीडिंग करवाने वाली यानी लैक्टेटिंग मदर्स को भी वैक्सीनेट करने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि इन्हें वैक्सीन लगाना सुरक्षित है। अमेरिका में टीनेजर्स यानी 16 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को भी वैक्सीनेट किया जा रहा है। फिलहाल भारत में इसे लेकर कोई स्टडी नहीं हुई है।
अगर आपको कोरोनावायरस हो चुका है तो आपको वैक्सीन क्यों लगवानी चाहिए?
इस समय जो बातें सामने आई हैं, उनके आधार पर वैक्सीन लगवाना ही अच्छा विकल्प है। जिन्हें कोरोना हो चुका है, उन्हें दोबारा नहीं होगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है। जो एंटीबॉडी शरीर में डेवलप हुई है, वह कितने समय तक टिकेगी, कोई कुछ नहीं कह सकता।
अगर किसी पेशेंट में कम मात्रा में एंटीबॉडी बनी है तो वह धीरे-धीरे खत्म हो सकती है। इससे दोबारा कोरोनावायरस होने का खतरा बना रहता है। कुछ लोगों को तो रिपोर्ट भी हुआ है। इस वजह से कोरोना हुआ हो या नहीं, अगर आप या आपका कोई करीबी हाई-रिस्क कैटेगरी में है तो वैक्सीन लगवानी चाहिए।
वैक्सीन लगवाने के कई फायदे भी हैं। यह इम्युनिटी बूस्टर का काम करेगा। हॉस्पिटल में किसी बीमारी का इलाज करवाने या यात्रा करने की नौबत बनी तो बार-बार टेस्टिंग की प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ेगा। वैक्सीनेशन हो गया है, यह आपको कई सारे काम बिना किसी परेशानी के करने की सहूलियत देगा।
इसी तरह शुरुआत में टेस्टिंग बहुत कम थी। नतीजे भी उतने सटीक नहीं थे, जितने बाद में RTPCR या अन्य टेस्टिंग प्रोसेस से सामने आए। ऐसे में वैक्सीनेशन हो गया होगा तो मन में किसी तरह का संदेह नहीं रहेगा।
सरकार का पूरा फोकस उन लोगों को वैक्सीनेट करने पर है, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है। इसी वजह से जिन लोगों की इम्युनिटी अच्छी है, उन्हें शुरुआती फेज में वैक्सीनेशन से अलग रखा गया है। पर यह कैसे पता चलेगा कि आपकी इम्युनिटी स्ट्रॉन्ग है?
वैक्सीन को लेकर प्रायरिटी ग्रुप्स में होने का मतलब क्या है?
सरकार ने तय किया है कि देश की 30 करोड़ आबादी को 2021 में अगस्त तक वैक्सीनेट कर दिया जाएगा। इसमें हेल्थकेयर वर्कर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स (पुलिस, आर्म्ड फोर्सेस, म्युनिसिपल वर्कर्स, टीचर्स जैसे ग्रुप्स) और हाई-रिस्क में शामिल लोगों (50 वर्ष से ज्यादा उम्र के और 50 वर्ष से कम उम्र के ऐसे लोग जिन्हें डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर या अन्य परेशानियां हैं) को वैक्सीनेट किया जाएगा।
शुरुआत में वैक्सीन सबके लिए एकदम से उपलब्ध नहीं होने वाली। इसी वजह से सरकार ने प्रायरिटी ग्रुप्स बनाए हैं ताकि जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है, उनका सबसे पहले वैक्सीनेशन किया जाए। हेल्थकेयर वर्कर्स सबसे ज्यादा रिस्क में हैं। उनका इंफेक्शन और डेथ रेट भी सबसे ज्यादा है। इस वजह से उन्हें सबसे पहले वैक्सीनेशन के प्रायरिटी ग्रुप में रखा गया है। हेल्थकेयर सेक्टर अच्छी तरह काम करता रहे, इसके लिए यह जरूरी भी है।
इम्युनोकॉम्प्रमाइज्ड लोगों को वैक्सीन लगानी चाहिए या नहीं?
इम्युनोकॉम्प्रमाइज्ड लोगों का मतलब है, जिनकी इम्युनिटी उतनी स्ट्रॉन्ग नहीं है, जितनी आम लोगों की होती है। इनमें कैंसर, डाइबिटीज जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोग शामिल हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) की गाइडलाइंस के मुताबिक इन लोगों को वैक्सीन लगनी चाहिए। इससे ही डेथ रेट को काबू किया जा सकेगा।
किन लोगों को नहीं लगवानी चाहिए वैक्सीन?
विदेशों में जिन लोगों को वैक्सीनेशन प्रोसेस से बाहर रखा गया है, उनमें हेल्थ कंडीशंस और उम्र को फैक्टर बताया गया है। इन लोगों को वैक्सीन लगाने से फेफड़ों के इंफेक्शन सामने आए हैं। इस वजह से अगर किसी को फेफड़ों का इंफेक्शन हुआ है, तो उन्हें वैक्सीनेशन से बाहर रखा है।
इसी तरह एलर्जिक पेशेंट्स को भी वैक्सीनेशन से अलग रखा है। अगर किसी व्यक्ति को इससे पहले किसी वैक्सीन से एलर्जिक रिएक्शन हुआ है तो उसे इस प्रोसेस से बाहर रखा गया है। जिन्हें इंजेक्शन से एलर्जी होती है, उन्हें भी इस कैटेगरी में शामिल किया गया है। यानी उन्हें भी फिलहाल वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए।
कैंसर या किसी और क्रॉनिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों को फिलहाल वैक्सीनेशन से दूर रखा गया है। उदाहरण के लिए सिकल सेल एनीमिया के पेशेंट्स को वैक्सीन की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।
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