बड़े व्यावसायिक घराने व्यवसाय की प्रगति के लिए ‘M-2’ रणनीतियां लागू करते हैं। मैनेजमेंट की इन्हीं रणनीतियों से सबक लेकर सिंघु बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों ने भी अपनी ‘M-2’ रणनीति बना ली है। किसानों के लिए ‘M-2’ का अर्थ है मैकेनाइजेशन और मोटिवेशन (मशीनीकरण और प्रेरणा)। इससे इनके आंदोलन को लंबी उम्र मिलती है। आंदोलन के केंद्र में मशीनों का इस्तेमाल खाना पकाने, हेल्थ, सैनिटाइजेशन के मैनेजमेंट और बिजली के लिए किया जा रहा है।
M-2 स्ट्रैटजी को 00 प्वाइंट में समझिए
1. खाना
अभी तक भोजन, खासतौर पर रोटी वॉलंटियर हाथों से पकाते थे। लेकिन, दो दिन से यहां रोटी बनाने की ढेरों मशीनें आ गई हैंं। बस सूखा आटा मशीन के मुंह में डालो और पकी हुई रोटी आपको मिल जाती है। इन मशीनों की क्षमता हर घंटे कम से कम 6,000 रोटियां तैयार करने की है और ये दिनभर काम कर रही हैं।
2. स्वास्थ्य-सफाई
धरना दे रहीं महिलाएं पीरियड्स के दौरान परेशान न हों, इसके लिए उन्हें ब्रांडेड सेनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सैकड़ों वॉलंटियर्स पीठ पर मच्छर मारने की फॉगिंग मशीन लादे एनएच-44 पर 300 से 500 मीटर की दूरी पर मौजूद हैं। सुबह के समय, सोनीपत जिले के नगरीय निकाय के कर्मचारियों के साथ वॉलंटियर्स के दल सड़कों से कचरा साफ करने में जुट जाते हैं। व्यक्तिगत साफ-सफाई को देखते हुए हाईवे पर अलग-अलग जगह वाॅशिंग मशीनें लगी हुई हैं, जहां कुछ ही घंटों में प्रदर्शनकारियों के कपड़े धोकर और प्रेस करके देने के लिए वॉलंटियर मुस्तैद हैं।
3. पावर सप्लाई
ट्यूब वाॅटर पंप का संचालन करने वाली मोबाइल सोलर वैन को मोबाइल फोन चार्ज करने और बैटरी बैंक के रूप में तब्दील कर दिया गया है और वे हाईवे पर जगह-जगह सुबह से शाम तक तैनात हैं। लंगरों, खाना पकाने के स्थानों और दूसरी जगहों पर रात में रोशनी करने के लिए बैटरियों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें ट्रैक्टरों से चार्ज किया जाता है। मैनेजमेंट के सिद्धांतों को लागू करने से प्रदर्शनकारियों को बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद मिली है, ताकि वे अनिश्चितकाल तक प्रदर्शन जारी रख सकें। वर्तमान परिस्थितियों में ये बात तर्कसंगत लगती है, लेकिन पर्याप्त मोटिवेशन यानी प्रेरणा के बगैर ये काम नहीं हो सकता। किसान किसी भी मैनेजमेंट गुरु से ज्यादा बेहतर ये बात जानते हैं।
4. देखकर प्रेरणा
जब युवा ट्रैक्टरों पर लगे डीजे पर ‘हल छड के पालेया जे असीं हथ हथियारां नू...’ (यदि किसान ने हल छोड़कर हथियार उठा लिए...) या ‘फसलां दे फैसले किसान करुगा’ (फसलों के फैसले किसान करेगा) जैसे प्रेरक गीतों को सुनते हैं, तो अचानक युवा प्रदर्शनकारियों की बॉडी लैंग्वेज में बदलाव देखा जा सकता है। ऐसे सैकड़ों गीत युवाओं को प्रेरणा देने के लिए सुनाए जा रहे हैं।
5. देखकर प्रेरणा
क्वालिटी पेपर पर छपी क्रांतिकारी भगत सिंह, लाल सिंह दिल, कवि सुरजीत पातर जैसे हस्तियों की तस्वीरें बांटी जा रही हैं। लोगों ने टी-शर्ट पर तस्वीरें छपवा रखी हैं। तो इनकी तस्वीरों वाली ताश की गड्डियां भी बांटी जा रही हैं। हाइवे के किनारे की दीवारों पर भी युवा प्रेरक पेंटिंग उकेर रहे हैं। हर शाम को ऐतिहासिक फिल्में दिखाई जा रही हैं।
6. भौतिक प्रेरणा
सूर्योदय होते ही 10वें गुरु गोबिंद सिंह की प्रिय- निहंग सेना के सैनिक ऊंचे घोड़ों पर सवार होकर एनएच-44 पर गश्त करते हैं, तो युवाओं में प्रेरणा की लहर दौड़ जाती है और वे रजाई छोड़ बाहर आ जाते हैं। दोपहर में 3 बजे यही समूह पारंपरिक हथियारों के साथ सिखों के मार्शल आर्ट ‘गतका’ का प्रदर्शन करता है। लोग बड़ी संख्या में इनके करतब देखने के लिए जमा होते हैं और युवा खुद को ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करते हैं। इस प्रदर्शन के दौरान युद्ध कहानियों की कमेंट्री भी होती रहती है, जिनमें इन हथियारों का उपयोग किया गया था।
यही वो तरीके हैं, जिनके जरिए हरियाणा के 75 वर्षीय सुक्खा सिंह जैसे किसान हफ्तों से धरने पर डटे हुए हैं। सुक्खा सिंह कहते हैं ‘ये फसलों की नहीं, नस्लों को बचाने की लड़ाई है।’
(मनीषा भल्ला और राहुल कोटियाल के इनपुट के साथ)
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3n2qDDW
https://ift.tt/37Nqi1m
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubt, please let me know.