बुधवार, 24 जून 2020

पुरुषों के शरीर में 14% ज्यादा एंटीबॉडी बन रहीं, इन्हें महिलाओं के मुकाबले खतरा ज्यादा, लेकिन इम्युनिटी में आगे हैं

पुरुषों में कोरोना से मौत का खतरा भले ही महिलाओं से ज्यादा हो लेकिन शरीर में एंटीबॉडी बनने के मामले में ये आगे हैं। ब्रिटेन की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी एनएचएस के मुताबिक, कोरोना से संक्रमित पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले एंटीबॉडी अधिक बनती है।

हाल ही में इस पर रिसर्च की गई। शोध का लक्ष्य यह पता लगाना था कि कोरोना सर्वाइर के ब्लड प्लाज्मा को संक्रमित मरीजों में चढ़ाया जाए तो एंटीबॉडी वायरस से लड़ने में कितनी मददगार साबित होती है। उनमें इम्युनिटी का स्तर कितना बढ़ता है।

एनएचएस नेशुरू किया था थैरेपी प्रोग्राम
एनएचएस ने हाल ही में कोरोना के मरीजों के लिए ब्लड एंड ट्रांसप्लांट प्रोग्राम शुरू किया था। ट्रायल के दौरान सामने आया कि संक्रमित पुरुषों में 43 फीसदी और महिलाओं में 29 फीसदी एंटीबॉडी विकसित हुईं।

एनएचएस कोरोना सर्वाइवर से ब्लड प्लाज्मा डोनेट करने की अपील कर रहा है ताकि इन्हें कोरोना के मरीजों में चढ़ाकर इम्यून रेस्पॉन्स को समझा जा सके।

अधिक जानें बचाई जा सकेंगी
ब्लड एंड ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के एसोसिएट डायरेक्टर प्रो. डेविड रॉबर्ट्स के मुताबिक, इस समय में प्लाज्मा डोनर्स की जरूरत है। हम प्लाज्मा डोनेट करने वालों की जांच करते हैं।

पुरुषों में एंटीबॉडी का स्तर अधिक मिला है, इसका मतलब है कि हम ज्यादालोगों को जान बचा सकते हैं।

ज्यादा बीमार होने पर इम्यून सिस्टम को अधिक एंटीबॉडी पैदा करने की जरूरत पड़ती है।

एंटीबॉडी इसलिए है जरूरी
प्रो. डेविड के मुताबिक, संक्रमण की शुरुआत में आपका इम्यून सिस्टम श्वेत रक्त कोशिकाओं के साथ मिलकर वायरस को मारने की कोशिश करता है। लेकिन जब आप अधिक बीमार हो जाते हैं तो इम्यून सिस्टम को अधिक एंटीबॉडी पैदा करने की जरूरत पड़ती है ताकि वायरस को खत्म किया जा सके। इसलिए यह प्रोग्राम बेहद अहम है।

कोरोना मरीजों कोप्लाज्मा थैरेपी दी जा सकेगी

प्रो. डेविड के मुताबिक, हमारी और दुनियाभर में हुई स्टडी के मुताबिक, कोविड-19 का संक्रमण पुरुषों में अधिक हो रहा है। इसलिए अगर पुरुष प्लाज्मा डोनेट करते हैं तो इनके रिकवर होने की सम्भावना भी ज्यादा है।

पिछले हफ्ते कोरोना पॉजिटिव मरीजों को इस ब्लड प्लाज्मा ट्रायल प्रोग्राम में शामिल होने के लिए कहा गया था। अगर यह ट्रायल पूरी तरह से सफल होता है तो ब्रिटेन के अस्पतालों में प्लाज्मा थैरेपी शुरू दी जा सकेगी।



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कोरोना मरीजों में जितनी ज्यादा एंटीबॉडी विकसित होंगी वायरस से लड़ना उतना आसान होगा।


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