लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से हुई हिंसक सैन्य झड़प के बाद राखी और उससे जुड़े आइटम्स का आयात भी प्रभावित हुआ है। कारोबारियों ने विवाद से पहले करीब 70% आयात कर लिया था, लेकिन इसके बाद से नए आर्डर रोक दिए गए हैं। इसके चलते चीन काे करीब 400 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया टेडर्स के अध्यक्ष बीसी भरतिया का कहना है कि दूसरे त्योहारों पर भी चीन से आयात कम होगा। दीपावली पर इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा। पिछले साल दिवाली पर 3200 करोड़ रुपए का सामान आयात किया गया था, जबकि साल 2018 में 8000 करोड़ रुपए का सामान मंगवाया गया था।
देशी धागे वाली राखियों की मांग ज्यादा
3 अगस्त को आने वाले रक्षाबंधन पर इस बार देसी धागे वाली राखियों की मांग ज्यादा है। इस वजह से चीन से आने वाली फैंसी राखियाें की पूछ परख कम हो गई है। बदलते ट्रेंड के बीच ग्राहक भी अब चीन में बने सामान से परहेज करने लगे हैं। राखियों में इस्तेमाल होने वाला सजावटी सामान फोम, स्टोन, पन्नी आदि चीन से आयात होते हैं।
इसकी कीमत करीब 1,200 करोड़ रुपए तक होती है। देश में राखी का कारोबार 5 से 6 हजार करोड़ रुपए का है, जो इस साल घटकर ढाई हजार करोड़ रुपए रह सकता है। देश में सबसे ज्यादा राखियां प. बंगाल में बनती हैं। इसके अलावा दिल्ली, मुंबई और गुजरात में भी बड़े पैमाने पर राखियां बनती हैं।
पिछले साल के मुकाबले 50% ऑर्डर कम हुआ
बंगाल के राखी निर्माता रोहित गुप्ता ने बताया कि राखी के ऑर्डर पिछले साल से 50% तक कम हैं, लेकिन कारीगरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। उन्हें बीते साल जितना ही काम मिल रहा है। कोरोना के बाद मांग बढ़ेगी तो स्थानीय कारीगरों को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा। कोलकाता के व्यापारी केसी मुखर्जी बताते हैं कि डिमांड घटी है, लेकिन आयात भी कम हुआ है। डिमांड कम होने का असर राखी कारीगरों पर बहुत कम देखने को मिल रहा है।
फोन पर ऑर्डर बुकिंग, पबजी और एवेंजर राखी की कीमत 5 से 15 रुपए
लॉकडाउन और भाड़े में बढ़ोतरी से राखी की कीमतों में 10-15% का उछाल आया है। दिल्ली के सदर बाजार में राखी एक रुपए से लेकर 70 रुपए तक बिक रही है। बच्चों के लिए पबजी, अवेंजर राखी 5 से 15 रुपए नग है। कार्टून ब्रांड मोटू-पतलू राखी 3 से 10 रुपए, मैटेलिक राखी 180 से 300 रुपए दर्जन व एंटिक राखी 600 से 750 रुपए दर्जन बिक रही है। ऑर्डर फोन पर लिए जा रहे हैं।
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