भारत में नए कोरोना मरीज मिलने की रोजाना औसत दर 3.6% हो गई है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। यानी भारत में अब नए मरीज सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने लगे हैं। सबसे ज्यादा 39 लाख मरीजों वाले अमेरिका में यह दर भारत से आधी 1.8% बनी हुई है। इसी के साथ भारत में अब मरीज दोगुने होने में सिर्फ 19 दिन लग रहे हैं। एक महीने पहले तक 25 दिन लग रहे थे।
अभी देश में 11 लाख से ज्यादा मरीज हैं। इस हिसाब से देखें तो 8 अगस्त तक देश में 22 लाख मरीज हो सकते हैं। आगे भी यह रफ्तार कम नहीं पड़ी तो अगस्त के अंत तक देश में कुल 44 लाख कोरोना मरीज हो सकते हैं। भारत में 1 जुलाई से 19 जुलाई के बीच कुल 5.37 लाख नए मरीज मिले।
करीब इतने ही मरीज 30 जनवरी से 30 जून तक चार महीने में मिले थे। देश में 8 जुलाई तक एक बार भी नए मरीजों का आंकड़ा 25 हजार से ऊपर नहीं गया था। लेकिन, अब रोज 40 हजार से ज्यादा नए मरीज मिलने लगे हैं।
पीक से हम कितने दूर?
देश में सक्रिय मरीजों की वृद्धि दर 1 जुलाई को सिर्फ 2.41% रह गई थी, अब 4.1% हो गई है
18 जून को सक्रिय मरीजों की बढ़ने की दर 2.1% तक गिर गई थी। जबकि, लॉकडाउन-1 में यह दर 25% के करीब थी।
दिल्ली एक मात्र राज्य, जो बढ़ोतरी की दर को माइनस में लाने में कामयाब
सिर्फ 6 राज्यों में बढ़ोतरीदर राष्ट्रीय दर से कम
राज्य | 1 जुलाई | 10 जुलाई | 19 जुलाई |
दिल्ली | 0.21% | -2.17% | -2.14% |
हिमाचल | 1.25% | -1.69% | 1.33% |
तमिलनाडु | 2.87% | 1.59% | 1.38% |
तेलंगाना | 4.51% | 3.79% | 2.19% |
हरियाणा | 0.84% | 1.28% | 2.28% |
गुजरात | 4.87% | 3.42% | 2.82% |
महाराष्ट्र | 2.34% | 2.13% | 3.32% |
देश | 2.50% | 2.71% | 4.1% |
दिल्ली एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने दावा किया-दिल्ली में कोरोना का पीक आ चुका।
बिहार व झारखंड समेत 10 राज्यों में सक्रिय मरीजों की वृद्धि दर सबसे तेज
राज्य | 1 जुलाई | 10 जुलाई | 19 जुलाई |
कर्नाटक | 10.54% | 14.29% | 21.18% |
झारखंड | 3.57% | 7.51% | 18.61% |
बिहार | 5.07% | 8.11% | 17.8% |
आंध्रप्रदेश | 2.04% | 4.79% | 11.77% |
प. बंगाल | 4.01% | 4.90% | 9.3% |
यूपी | 4.41% | 6.43% | 9.06% |
छत्तीसगढ़ | 1.04% | 2.22% | 8.32% |
मध्यप्रदेश | 0.27% | 3.48% | 7.91% |
राजस्थान | 2.07% | 4.95% | 6.26% |
पंजाब | 14.29% | 4.07% | 6.13% |
चेतावनी: एम्स डायरेक्टर बोले-बिना लक्षण वाले मरीजों का होम आइसोलेशन खतरनाक
भास्कर से खास बातचीत में एम्स डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा किदेश में कोरोना के नए मरीजों के मिलने की रफ्तार बढ़ती जा रही है। ऐसे में कई राज्य अधिक प्रभावित इलाकों में दोबारा लॉकडाउन तो कर रहे हैं, मगर साथ ही नए मरीजों को संस्थागत क्वारैंटाइन के बजाय होम आइसोलेशन में रख रहे हैं। बिना लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन में रखना खतरनाक है। एम्स डायरेक्टर से बातचीत के अंश...
सवाल: कई राज्यों में हल्के या बिना लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन में रखा जाता है, क्या सही तरीका है?
जवाब : मेरा मानना है कि ए-सिम्टोमैटिक ही नहीं प्री-सिम्टोमैटिक मरीजाें काे भी संस्थागत क्वारेंटाइन या आइसोलेशन सेंटर में रखना चाहिए। घर में अक्सर मरीज अपना ध्यान नहीं रखते और ज्यादातर घरों में इसकी सुविधा भी नहीं है। ऐसे मरीजों को कई बार लगता है कि वे पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। फीवर की दवा लेकर मार्केट भी चले जाते हैं। इससे न सिर्फ उनकी स्थिति गंभीर हो सकती है, बल्कि संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। यदि आप डेटा देखें तो कंटेनमेंट जोन से बाहर जो कलस्टर बन रहे हैं ये उन्हीं स्थानों पर ज्यादा बन रहे हैं जहां होम आइसोलेशन में लोगों को ज्यादा रखा जा रहा है।
सवाल: कई जगह मरीजों की संख्या कम हुई, फिर अचानक दोबारा बढ़ी, क्यों?
जवाब: लोगों को जब लगता है कि केस कम हो रहे हैं तो वे लापरवाही शुरू कर देते हैं। अमेरिका में केस कम होने लगे थे लोगों ने पार्टी शुरू कर दी, बीच पर जाना शुरू कर दिया। नतीजा, वहां दोबारा से हर दिन आने वाले मरीजों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ जबकि यूरोप में ऐसी स्थिति नहीं है।
सवाल: रेमडेसिविर व टॉसिलिजुमैब जैसी दवा मरीजों के इलाज में कितनी कारगर है?
जवाब: रेमडेसिविर जैसी दवाओं का बहुत सीमित उपयोग है। लेकिन यह देखा गया है कि कुछ डॉक्टर कोरोना मरीज को पहले ही दिन, यहां तक कि ए-सिम्टोमैटिक मरीजों को भी रेमडेसिविर दे देते हैं। उन्हें लगता है कि इससे बहुत फायदा हो जाएगा। यह बहुत गलत है। इससे फायदा कितना होता यह अभी पता नहीं है लेकिन ऐसे मरीजों को नुकसान ज्यादा हो जाएगा। इन दवाओं से मरीज का लीवर और किडनी भी खराब होने का खतरा रहता है। इसी वजह से गंभीर मरीजों में आपात इस्तेमाल की इजाजत है।
सवाल: प्लाज्मा थेरेपी कितनी कारगर है, हर जगह प्लाज्मा बैंक बनाया जा रहा है?
जवाब: यह भी आपात स्थितिमें इस्तेमाल की इजाजत है। अभी तक इसके पक्ष में भी कोई मजबूत डेटा नहीं है। लेकिन कोई ट्रीटमेंट अभी उपलब्ध नहीं है तो इसका इस्तेमाल हो रहा है, क्योंकि इससे कोई नुकसान तो नहीं है। यह माना जाता है कि कोई मरीज जब इस बीमारी से ठीक हो गया है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनी होगी।
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