राजस्थान में सियासी घमासान जारी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के आमने-सामने की जंग में अब ऑडियो टेप के जरिए भाजपा की भी एंट्री हो गई है। हाल ही में एक ऑडियो सामने आया था, जिसमें सरकार गिराने को लेकर सौदे की बात सामने आई थी।
जिसमें कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और कांग्रेस के विधायक भंवरलाल शर्मा का नाम सामने आया था। कांग्रेस नेसरकार गिराने व विधायकों की खरीद फरोख्त की साजिश का आरोप भाजपा पर लगाया तो भाजपा ने भी पलटवार करते हुए फोन टैपिंग पर सवाल खड़े कर दिए और सीबीआई जांच की मांग कर दी।
राज्य सरकार की तरफ से जांच भी गठित कर दी गई है और इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी राजस्थान के मुख्य सचिव सेरिपोर्ट तलब कर ली है। फोन टैपिंग भारतीयराजनीति में कोई पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले भी कई फोन टैपिंग के मामले सामने आ चुके हैं।
1. जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री को देना पड़ा था इस्तीफा
बात 1988 की है। जनता पार्टी के नेता रामकृष्ण हेगड़े कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। वे लगातार दो बार 1983 और 1985 में चुनाव जीत चुके थे। उन्हें गैर कांग्रेसी खेमे से पीएम पदके संभावित उम्मीदवार के रूप में देख जा रहा था। तभी कर्नाटक की सियासत में फोन टैपिंग का मामला सामने आया। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी जो पहले से ही बोफोर्स मामले को लेकर घिरी हुई थी। उसके लिए यह मामला एक मौके की तरह था।
केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों को जांच के लिए आदेश दे दिया। सघन जांच हुई, जिसमें सामने आया कि कर्नाटक पुलिस के डीआईजी ने कम से कम 50 नेताओं और बिजनेसमैन के फोन टेप करने के ऑर्डर दिए थे। इनमें हेगड़े के विरोधी भी शामिल थे। ऐसे में कर्नाटक के सीएम सवालों के घेरे में आ गए। वे अपना बचाव करते उससे पहले ही सुब्रहमण्यम स्वामी ने एक लेटर प्रेस में जारी कर दिया।
जिसमें एक पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारी ने टेलिकॉम विभाग से कर्नाटक के नेताओं, व्यापारियों और पत्रकारों के फोन टेप करने की बात कही थी। एक अखबार ने तो केंद्र में मंत्री रहे अजीत सिंह की कॉल ट्रांस्क्रिप्ट (पूरी बातचीत) छाप दी।
इस दौरान सीएम बार-बार दोहराते रहे कि मैं मूल्यों की राजनीति करता हूं, लेकिन तब तक मामला सदन तक पहुंच गया था। वे चौतरफा घिर गए थे। इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा और आखिरकार 10 अगस्त 1988 को हेगड़े को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
2. अंतागढ़ टेप कांड : जब नाम वापसी के आखिरी दिन कांग्रेस प्रत्याशी ने वापस ले ली थी उम्मीदवारी
छत्तीसगढ़ की राजनीति में अंतागढ़ टेपकांड खासाचर्चा में रहा। इसका खुलासा होने के बाद प्रदेश की राजनीति सियासी भूचाल आ गया था। बात शुरू होती है 2014 के लोकसभा चुनाव से। भाजपा ने अंतागढ़ के विधायक विक्रम उसंडी को कांकेर से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया। वे चुनाव में जीत गए, इसके बाद अंतागढ़ की सीट खाली हो गई।
कांग्रेस ने उपचुनाव के लिए इस सीट से मंतूराम पवार को टिकट दिया और भाजपा से भोजराम नाग को। इस चुनाव में नाटकीय मोड़ तब आया जब नाम वापसी के आखिरी दिन रणनीति के तहत कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नाम वापस ले लिया। इससे भाजपा के प्रत्याशी को एक तरह से वॉक ओवर मिल गया और यह सीट भाजपा के खाते में चली गई।
बाद में इस पूरे मामले को लेकर एक टेप वायरल हुआ। जिसमें मंतूराम पवार को नाम वापस लेने के लिए 7 करोड़ के लेनदेन की बात सामने आई। टेप में पूर्व सीएम अजीत जोगी, उनके बेटे अमित जोगी, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता की आवाज होने का दावा किया गया था।
इसको लेकर कांग्रेस ने शिकायत दर्ज कराई। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इसके लिए एसआईटी का गठन किया गया। एसआईटी ने सभी आरोपियों से वॉइस सैंपल दर्ज कराने की बात कही, लेकिन इन लोगों ने सैंपल देने से इंकार कर दिया। फिलहाल मामला कोर्ट में है।
3. नीरा राडिया टेप कांडः पॉलिटिकल लॉबिंग और कॉरपोरेट लॉबिंग का आरोप
2009-10 में नीरा राडिया टेप कांड खासाचर्चा में रहा था। आयकर विभाग ने 2008 से 2009 के बीच नीरा राडिया के साथ कुछ वरिष्ठ पत्रकारों, राजनेताओं व कॉरपोरेट घरानों के अधिकारियों की बातचीत को रिकॉर्ड किया था। इसमें बड़े लेवल पर भ्रष्टाचार और पैसों के लेन-देन की बात सामने आई थी।
साथ ही कंपनियों को ठेका दिलाने के नाम पर वसूली की भी बात कही गई थी। इसके साथ ही नीरा राडिया पर पॉलिटिकल लॉबिंग का भी आरोप लगा था कि वह किस नेता को कौन सा मंत्री पद मिले इसके लिए लॉबिंग करती थी।
तब राडिया के 300 से ज्यादा फोन टेप किए गए थे। इसमें देश के कई नेताओं व बड़े कारोबारियों का नाम सामने आया था। इसमें तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा का भी नाम सामने आया था। बाद में उन्हें टू जी स्पेक्ट्रम मामले में इस्तीफा देना पड़ा था।
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