शनिवार, 8 अगस्त 2020

भारत को चांद और मंगल तक पहुंचाने वाली महिलाएं, फिर भी इसरो में 20% से भी कम महिलाएं; नासा में भी उनकी संख्या घटी

अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने 30 जुलाई को मंगल पर परसेवरेंस यान भेजा। इस परसेवरेंस यान में दो इक्विपमेंट हैं। पहला 1 हजार किलो का रोवर और दूसरा 2 किलो का ड्रोन जैसा छोटा हेलीकॉप्टर। ये पहली बार है जब मंगल पर हेलीकॉप्टर उड़ने जा रहा है। लेकिन, क्या पता है कि इस हेलीकॉप्टर को किसने बनाया है? इसे बनाया है कि नासा में बतौर इंजीनियर काम कर रहीं मिमी औंग ने। मिमी हैं तो म्यांमार की, लेकिन 16 साल की उम्र में अमेरिका आ गई थीं और अब नासा में लीड इंजीनियर हैं।

मिमी औंग का डिजाइन किया हेलीकॉप्टर पहला एयरक्राफ्ट होगा, जो मंगल पर उड़ेगा।

सिर्फ अमेरिका ही नहीं, दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों में महिलाओं को बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी मिल रही है और वो उन्हें बखूबी निभा रही हैं। भारत में ही मंगलयान और चंद्रयान जैसे मिशन की कमान महिलाओं को मिलीं। भारत ने नवंबर 2013 में मंगलयान मंगल ग्रह पर भेजा था, जो पूरी तरह से सफल रहा था। भारत दुनिया का इकलौता देश है, जिसका मंगल मिशन का सक्सेस रेट 100% है। जबकि, नासा का 78%।

पहली ही कोशिश में भारत को मंगल तक पहुंचाने में महिलाओं का हाथ
450 करोड़ रुपए की लागत वाला मंगलयान 5 नवंबर 2013 को छोड़ा गया था, जो 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचा। इस प्रोजेक्ट में 500 वैज्ञानिकों की टीम ने काम किया था। वैसे तो इस टीम में 25% से ज्यादा महिलाएं थीं। ऐसी ही 5 महिला साइंटिस्ट के बारे में जानिए, जो इस प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा थीं।

1. रितु करिधाल

रितु करिधाल को बचपन से ही स्पेस साइंस में इंट्रेस्ट था।


लखनऊ में जन्मीं। लखनऊ यूनिवर्सिटी से ही फिजिक्स में बीएससी की। उसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का एंट्रेंस पास किया और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। 1997 में इसरो जॉइन किया। मिशन मंगलयान में डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रहीं। बाद में चंद्रयान-2 को भी लीड किया। इन्हें 'रॉकेट वुमन' भी कहा जाता है।

2. नंदिनी हरिनाथ

पढ़ाई पूरी होने के बाद नंदिनी की पहली नौकरी इसरो में ही लगी।


इसरो में रॉकेट साइंटिस्ट हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद सबसे पहले इसरो में ही अप्लाई किया। जॉब भी मिल गई। मिशन मंगलयान में प्रोजेक्ट मैनेजर, मिशन डिजाइनर और डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर के तौर पर काम किया। इसरो में काम करते हुए नंदिनी को 20 साल से ज्यादा हो गया है। अब तक इसरो के 14 मिशन में काम कर चुकी हैं।

3. अनुराधा टीके

चांद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग से ही इंस्पायर होकर अनुराधा स्पेस साइंस में आईं।


इसी साल अप्रैल में इसरो से रिटायर्ड हुई हैं। वहां प्रोजेक्ट डायरेक्टर थीं। कर्नाटक की विश्वेश्वरैया यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की। फिर 1982 में इसरो जॉइन किया। यहां पहली महिला सैटेलाइट प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनीं। 2003 में 'स्पेस गोल्ड मेडल' जीता। 2011 में 'सुमन शर्मा' अवॉर्ड जीता। मंगलयान में प्रोजेक्ट डायरेक्ट के तौर पर काम किया।

4. मौमिता दत्ता

चंद्रयान के बारे में जब पढ़ा, सुना तो स्पेस साइंटिस्ट बनने का ठाना।


कोलकाता में जन्मीं। जब स्टूडेंट थीं, तब चंद्रयान मिशन के बारे में पढ़ा और सुना। तभी से इसरो में जाने का सपना देखने लगीं। फिजिक्स पसंद थी इसलिए कोलकाता यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एमटेक करने के बाद अहमदाबाद में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर जॉइन किया। मंगलयान में प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम किया।

5. मीनल रोहित

दो साल तक बिना छुट्टी के 18-18 घंटे काम करती थीं।


गुजरात के राजकोट में जन्म हुआ। अहमदाबाद की निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग की। इसरो में सैटेलाइट कम्युनिकेशन इंजीनियर के तौर पर करियर की शुरुआत की। मंगलयान में प्रोजेक्ट मैनेजर और सिस्टम इंजीनियर के तौर पर काम किया। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि दो साल तक दिन के 18-18 घंटे बंद कमरे में गुजारे। छुट्टी भी नहीं ली। अभी इसरो में साइंटिस्ट और सिस्टम इंजीनियर है।

चंद्रयान-2 में भी महिलाओं को ही कमान
अक्टूबर 2008 में इसरो ने चंद्रयान-1 भेजा और पिछले साल जुलाई में चंद्रयान-2 लॉन्च किया। चंद्रयान-2 भारत का पहला मिशन था, जिसमें ऑर्बिटर के साथ लैंडर और रोवर भी भेजा गया था। हालांकि, लैंडर क्रैश हो गया था, लेकिन ऑर्बिटर अभी भी काम कर रहा है।

इस मिशन में अहम भूमिका भी दो महिलाओं की ही थी। पहली थी रितु करिधाल, जो मंगलयान मिशन में भी रह चुकी थीं और दूसरी थीं मुथैया वनिता।

रितु करिधाल इस मिशन की मिशन डायरेक्टर थीं और एम. वनीता प्रोजेक्ट डायरेक्ट थीं। रितु करिधाल को 'रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया' भी कहा जाता है। 2007 में उन्हें पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से 'इसरो यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड' भी मिल चुका है।

चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट में रितु करिधाल मिशन डायरेक्टर और एम. वनीता प्रोजेक्ट डायरेक्टर थीं।

वहीं, एम वनीता को 'डेटा क्वीन' के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें चंद्रयान-2 का प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनाया गया था, जो अपने आप में अहम है। क्योंकि किसी भी मिशन में एक ही प्रोजेक्ट डायरेक्टर होता है, जबकि मिशन डायरेक्टर कई हो सकते हैं। प्रोजेक्ट डायरेक्टर पर ही किसी मिशन की जिम्मेदारी होती है। एम. वनीता पहली महिला हैं, जिन्हें इसरो के किसी मिशन में प्रोजेक्ट डायरेक्टर की जिम्मेदारी मिली है।

चेन्नई में जन्मीं वनीता ने यहीं के इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की। वो करीब तीन दशकों से इसरो से जुड़ी हैं। उन्हें 2006 में एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की तरफ से 'बेस्ट वुमन साइंटिस्ट' के अवॉर्ड से नवाजा गया था।

फिर भी, पिछले 4 साल में इसरो में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कम हुईं
इसरो की स्थापना 15 अगस्त 1969 को विक्रम साराभाई ने की थी। उस समय इसरो में काम करने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम हुआ करती थी। हालांकि, अब इसरो में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है।

इसरो की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019-20 में उसके 17 हजार से ज्यादा कर्मचारियों में से 19.5% महिलाएं हैं। पिछले 4 साल में इसरो के कर्मचारियों की संख्या 8.5% और महिला कर्मचारियों की संख्या 6.5% बढ़ी है। फिर भी पिछले 4 साल में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या कम हुई है।

2016-17 में इसरो में 19.8% महिलाएं काम करती थीं, लेकिन 2019-20 में इसरो में काम करने वाले कुल कर्मचारियों में 19.5% महिलाएं ही हैं।

सिर्फ इसरो ही नहीं, अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा में भी महिला कर्मचारियों का प्रतिशत कम हुआ है। 2016-17 में नासा में 34.5% महिलाएं थीं, जो 2019-20 में घटकर 34.3% हो गईं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
ISRO Chandrayaan 2 Vs NASA Moon Mars Mission News Updates | Know How Many Women Scientists Indian Space Research Organisation and National Aeronautics and Space Administration


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3gFOiXo
https://ift.tt/2DzvYRB

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt, please let me know.

Popular Post