लेह का चोगलमसार घर है उन तमाम रिफ्यूजियों का जो किसी वक्त तिब्बत से भारत आए थे। रिफ्यूजी कैम्प नंबर एक में रहता था नीमा तेनजिन का परिवार। जिनके हिस्से ऐसी शहादत आई जो इन तमाम रिफ्यूजियों का गर्व बन गई। पहली बार स्पेशल फोर्स, टूटू रेजिमेंट या विकास रेजिमेंट कहलाने वाली भारतीय सेना की इस खास हिस्से की शहादत को यूं आम लोगों के बीच पहचान मिली है।
नेशनल हाईवे से जो रास्ता चुशूल को जाता है, लेह एयरपोर्ट से उसी रास्ते पर बस 3 किमी की दूरी पर है नीमा तेनजिन का घर। छोटी गलियों से होकर जब एक मोड़ पर हम उनके घर का रास्ता पूछने रुके तो वहां गली के मुहाने पर बैठीं दो महिलाओं के मुंह पर बस मुस्कुराहट थी। और आंखों में गर्व।
घर पर सफेद टेंट लगा है। आने-जाने वाले लोग भी बहुत हैं। रिश्तेदार, पड़ोसी वहां एक खास पूजा कर रहे हैं। एक कमरे में नीमा की तस्वीर रखी है, सामने एक बौद्ध मठ में दीया जल रहा है। दीये की लौ उस तस्वीर की फ्रेम को बार-बार छूने की कोशिश कर रही है, जिसमें एक शहीद का चेहरा चमक रहा है। सामने कुछ फल और एक पूजा के बर्तन में पानी रखा था। एक दूसरे कमरे में तीन महिलाएं बैठकर दीपक के लिए बत्तियां बना रही थीं। कुछ मंत्र गुनगुना रही थीं। उनके सामने अनगिनत छोटे-छोटे दीये जल रहे थे। बेखौफ से ऐसे ही दीये एक तीसरे कमरे में भी जल रहे थे, जिसके सामने बैठे कुछ बुजुर्ग और कुछ बौद्ध भिक्षु मंत्र पढ़ रहे थे।
इसी तीसरे कमरे में नीमा की मां भी बैठी थीं। हाथ में प्रेयर व्हील लिए। वो उसे घुमाती हैं और फिर मंत्र बोलने लगती हैं। वहां पूजा में खलल न पड़े तो हम वहां मौजूद रिश्तेदारों से बात करने उस कमरे में लौट आए जहां नीमा तेनजिन का शव रखा था और अब उसकी जगह उनकी फोटो। उनका सबसे छोटा बेटा उसी दिन से चुप है। बात करने की कोशिश की तो बोला, ‘सब कितने दुखी हैं, कुछ पूछूंगा तो रोने लगेंगे।’ फिर कहने लगा, ‘उस दिन रात को तीन बजे पड़ोसियों ने हमें दरवाजा खटखटाकर उठाया। कहने लगे फौजी लोग आए हैं। वो बोल रहे हैं तुम्हारे पिता की मौत हो गई है। हमें भरोसा ही नहीं हुआ। एक दिन पहले ही पापा ने फोन किया था। वो बोल रहे थे मेरी जिंदगी को खतरा है। तुम लोग मेरे लिए पूजा करना।’
तेनजिन का बड़ा बेटा भी उसी फोर्स का हिस्सा है, जिसके लिए पिता ने शहादत दी। कुछ दिन पहले ही वो देहरादून के पास चकराता आर्मी कैम्प से लद्दाख आया है। पोस्टिंग हुई थी उनकी चीन बॉर्डर पर। चाचा का बेटा भी उनकी यूनिट में है। उसी टूटू रेजिमेंट में। रिफ्यूजियों की इस कॉलोनी के हर घर से कम से कम 2 लोग फौज में हैं।
नीमा के भाई पास ही के कैम्प से आए हैं, कहते हैं ‘2 साल बाद भाई को रिटायर होना था। पिछले एक साल से वो घर नहीं आ पाए थे। छुट्टी ही नहीं मिली थी।’ आखिर क्या वजह होगी कि इस कॉलोनी के तमाम तिब्बती उस रेजिमेंट का हिस्सा बनना चाहते हैं, जिसकी पहचान छिपाना जरूरी है? इस सवाल पर वो कहने लगे, ‘हम लोग दो देशों के हैं। तिब्बत और भारत। मेरा भाई नीमा कहता था वो चीन के खिलाफ लड़ना चाहता है ताकि तिब्बत आजाद हो जाए और वो अपनी जमीन एक बार देख पाए।’
हम नीमा की बातें कर ही रहे थे कि उनकी बूढ़ी मां भी उस कमरे में आकर बैठ गईं। वो हिंदी न बोल सकती हैं न समझ। वो बार-बार अपने बेटे की तस्वीर को देखती हैं और फिर हाथ जोड़ती हैं। फिर थोड़ी देर चुप बैठी रहती हैं। और दोबारा हाथ जोड़कर कुछ बुदबुदाती हैं। पास बैठे उनके रिश्तेदार कहते हैं, ‘30 अगस्त को खबर आई तब से वो रोए जा रही हैं, रोते-रोते ही कहती हैं कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है, उसके शव को शहादत के बाद दो देशों के झंडे जो नसीब हुए।’ वो हमें तिब्बती भाषा में कुछ बताने की कोशिश करती हैं। कहती हैं, ‘बेटा हमेशा से चाहता था कि वो फौज में जाए और अपने देश को आजाद करवाए।’
नीमा अकेले नहीं हैं, जो अपने देश तिब्बत को देखना चाहते थे और इस खातिर उन्होंने भारतीय सेना की इस सीक्रेट फोर्स का हिस्सा बनना तय किया। जो अब उतनी खुफिया नहीं रही। हालांकि, उस घर में उस वक्त इसी स्पेशल फोर्स के 6 लोग मौजूद थे। जिनकी मौजूदगी के बारे में किसी तो पता तक नहीं था।
पिछले सोमवार नीमा की पत्नी की तिरंगा संभाले आई तस्वीरें शायद इस साल की सबसे भावुक करने वाली तस्वीर थी। पति की शहादत के बाद से अब तक उन्होंने किसी बाहरी से कोई बात नहीं की है। रिश्तेदार कहते हैं, उनसे नीमा ने ही कहा था कि फोर्स और ड्यूटी के बारे में कभी किसी से कुछ कहना नहीं है। और वो इसे उनके चले जाने के बाद भी मान रही हैं। उनके तीन बेटे और एक बेटी है। बड़ा बेटा स्पेशल फोर्स में है, छोटा मॉडल बनना चाहता है।
30 अगस्त को खबर आई। 31 अगस्त को पोस्टमॉर्टम के बाद उनका शव घर पहुंचा। फिर पांच दिनों तक पूजा चली और सोमवार को पूरे सैन्य सम्मान के साथ नीमा तेनजिन को विदाई दी गई। आस-पड़ोस वाले कहते हैं वहां चीन की सीमा पर बहुत टेंशन है। उन्हें सेना वालों ने बताया कि नीमा अपने साथियों के साथ पैट्रोलिंग पर गए थे, जब उनका पैर लैंडमाइन पर पड़ गया। उन्हें गर्व है कि उनके अपने की कुर्बानी को ये पहचान मिली है। वो भी पहली बार।
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