गुरुवार, 10 सितंबर 2020

देश के हालातों के बीच सुशांत, रिया, राउत और रानाउत ...!

देश की अर्थ व्यवस्था भली-चंगी है और कोरोना की स्थिति भी सुधार पर है। इसलिए हम सुशांत राजपूत की मौत को लेकर रिया की गिरफ्तारी, संजय राउत और कंगना रानाउत की तीखी और बेहूदा बहस में रुचि ले रहे हैं। केंद्र सरकार कोरोना से पार पा चुकी है, इसलिए कंगना को वाय श्रेणी की सुरक्षा देने के सिवाय उसके पास कोई काम नहीं है।

कितनी हैरत की बात है- एक टीवी एक्ट्रेस उस मुंबई के बारे में ग़लत टिप्पणी करती है जिसने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया और चूंकि केंद्र में बैठी सरकार या पार्टी उस एक्ट्रेस के पक्ष में है इसलिए उसे किसी को, कुछ भी कहने का अधिकार मिल गया है। सुशांत की आत्महत्या से जुड़ी आवाज दिल्ली, मुंबई से बिहार के कोने-कोने तक इसलिए जंगल की आग की तरह फैल रही है क्योंकि होने वाले बिहार चुनाव में इस आग का कुछ ताप कुछ वोटों को इकट्ठा कर सकता है।

तय है और सोलह आने सच भी, कि बाबू राजेंद्र प्रसाद और जय प्रकाश नारायण का बिहार इस राजनीतिक आग को अच्छी तरह जानता है और समझता भी है। यही वजह है कि पिछले चुनाव में गोमांस का मुद्दा फ़िस्स हो गया था। दरअसल, जब तक हम अपने वोट की क़ीमत नहीं जानेंगे, गोमांस, सुशांत जैसे मुद्दों पर पार्टियां चुनाव लड़ती रहेंगी और असल मुद्दे जिस तरह वर्षों से नेपथ्य में हैं, वहीं पड़े सड़ते रहेंगे।

जहां तक राउत और रानाउत की विशेष बहस का मामला है, यह बड़ी दिलचस्प है। वैसे तो राउत और रानाउत में सिर्फ एक ना का ही फ़र्क़ है लेकिन इस बहस के पीछे एक तरह से महाराष्ट्र और केंद्र सरकार आमने-सामने आ गई हैं। दोनों हार नहीं मानना चाहतीं और दोनों ही एक-दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहती। केंद्र ने कंगना को सुरक्षा दी तो महाराष्ट्र सरकार ने कंगना का ऑफिस तोड़ डाला। कुल मिलाकर बात यह है कि आजकल सरकारें भी इतनी जल्दी में, इतने ग़ुस्से में रहती हैं कि जिसको मारने दौड़ती हैं उससे भी आगे निकल जाती हैं।

सरकारें यह समझने को भी तैयार नहीं रहतीं कि बदले की इस त्वरित कार्रवाई से साफ़ समझ में आ जाएगा कि बदला लिया जा रहा है। दूसरी पार्टी के विधायक, सांसद जिस होटल या रिसोर्ट में रुके हों वहां छापे मारना, जो ख़िलाफ़ बोले उसका घर- ऑफिस तोड़ना, यह कौन सी राजनीतिक समझ है? यह कौन सी कूटनीति है? जिस पर न कोई लगाम लगाना चाहता, न कोई कुछ समझना चाहता।

अभी तो बिहार में चुनाव और मध्यप्रदेश के उपचुनावों में बहुत कुछ नया, बहुत कुछ अजीब देखने को मिलने वाला है। मास्क जो हम छह महीनों से मुंह पर लटकाए घूम रहे हैं, उन पर भी राजनीति होने वाली है। पार्टियां इसकी तैयारी में जुट गई हैं। जल्द ही कमल, पंजे और अन्य पार्टियों के चिह्न लगे मास्क बाज़ार में आने वाले हैं।

`बहरहाल, कोरोना की चिंता, उससे सुरक्षा हम आम लोगों को ही करना है। सरकारों को जो कुछ करना था, वह कर चुकीं। झूठे वादे। खोखली दलीलें। नक़ली वेंटिलेटर, फ़र्ज़ी सैनिटाइजर ... और भी बहुत कुछ...।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
नवनीत गुर्जर दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3m0Fi2a
https://ift.tt/3ig5Gmh

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you have any doubt, please let me know.

Popular Post