शनिवार, 5 सितंबर 2020

क्या हो अगर ट्रम्प बैलट वोटिंग से धोखाधड़ी का बहाना बनाकर राष्ट्रपति पद छोड़ने से मना कर दें? कितनी डरावनी होगी इलेक्शन वाली रात और आने वाले दिन

यह 3 नवंबर की शाम है और अमेरिका में सभी लोग घबराए हुए स्क्रीन पर नजरें टिकाए हैं। सभी को चुनाव परिणामों का इंतजार है। शुरुआती रुझानों से लग रहा है कि यह रात डोनाल्ड ट्रम्प के लिए शानदार होने वाली है। पोलिंग स्टेशनों के वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। ट्रम्प पेंसिलवेनिया, विस्कॉन्सिन और मिशिगन से जीत हासिल करते दिख रहे हैं।

हालांकि, अभी तक इन राज्यों में मेल इन बैलट की गिनती शुरू नहीं हुई है। इसके बावजूद ट्रम्प जल्दबाजी में अपनी जीत का ऐलान कर देते हैं। ऐसा ही कुछ दूसरे रिपब्लिकन कैंडिडेट भी करते हैं। मीडिया शिकायत करता है कि सबकुछ जल्दबाजी में हो रहा है, लेकिन ट्रम्प तो अपनी खुशियों में सराबोर हैं।

ट्रम्प धोखाधड़ी की बात कहेंगे
डेमोक्रेट्स को पता है कि मेल इन बैलट के जरिए डाले गए 40% वोटों की गिनती होनी बाकी है। ये वोट जो बाइडेन के लिए अहम साबित होने वाले हैं। इन सबसे अनजान ट्रम्प समर्थक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पा रहे हैं। उनका उतावलापन बढ़ गया है। जैसे ही मेल इन बैलट की गिनती शुरू होती है, ट्रम्प पिछड़ने लगते हैं।

हालांकि, अभी भी नतीजों को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं हैं। ट्रम्प ने अब दूसरा रास्ता अपना लिया है। उन्होंने धोखाधड़ी होने की बात कहकर नाराजगी जाहिर करना शुरू कर दिया है।

इसके बाद पूरे देश में बवाल
कुछ हफ्तों में ही मेल इन बैलट को लेकर कई केस दायर किए जा चुके हैं। हर जगह इसे चुनौती दी जा रही है। कुछ ऐसे हालात बन रहे हैं, जैसे 2000 में फ्लोरिडा में बने थे। लेकिन अब बात केवल एक राज्य की नहीं है, यह सबकुछ पूरे देश में हो रहा है। इस बार एक साथ कई राज्यों में आवाज उठ रही है। बैलट पर साइन में गड़बड़ी होने को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। देशभर में इसे लेकर बवाल हो रहे हैं।

तब ट्रम्प खुद की जीत घोषित करेंगे
इस बीच, ट्रम्प कहते हैं कि वे डेमोक्रेट्स को चुनाव के नतीजों में हेराफेरी नहीं करने देंगे। वे खुद की जीत घोषित कर देते हैं। अब सवाल उठता है कि जब वे अपने कैम्पेन के लिए व्हाइट हाउस का इस्तेमाल कर सकते हैं तो अब उन्हें कौन रोकेगा? रिपब्लिकंस का एक वर्ग भी सड़कों पर उतर कर ट्रम्प की बातों को जायज ठहराने में जुट गया है।

अब लेफ्टिस्ट भी सड़कों पर
इन सबके बीच लेफ्टिस्ट भी सड़कों पर उतर चुके हैं। इनमें ऐसे लोग भी हैं जो नस्लवादियों और विद्रोहियों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहते हैं। इन लोगों को देश में अशांति पैदा करने का मौका मिल गया है। वे हिंसक हो चुके हैं। मॉडरेट्स और लिबरल्स अपने सिर झुका चुके हैं, ताकि वे हिंसक भीड़ का शिकार न हो जाएं। लेकिन, अब देश का गणतंत्र खतरे में हैं। लेकिन, इस हिंसा से कोई हल नहीं निकलेगा।

हॉन्गकॉन्ग और बेलारूस जैसे प्रदर्शन होंगे
अगर ट्रम्प एक ऐसी जीत पर दावा करते हैं जो वाकई उनकी नहीं है तो सड़कों पर उतरकर कुछ रैलियां भर कर लेने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए लोगों को कार्रवाई करनी होगी। ठीक उसी तरह से जैसा हॉन्गकॉन्ग और बेलारूस में किया गया। लोकतंत्र को बचाने के इच्छुक लोगों को इसे तबाह करने वालों के खिलाफ एकजुट होना होगा।

इस तरह दो तरीके से विरोध किया जा सकता है। पहला तो यह कि कट्टर देशभक्ति से काम किया जाए। दूसरा यह हो कि पूरे अनुशासन में रहकर संविधान को बचाने की कोशिश हो। 1960 का सिविल राइट मूवमेंट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अश्वेतों ने दशकों तक शांतिपूर्ण आंदोलन किया। बिना हिंसा के उस आंदोलन ने पूरे देश के दिलो दिमाग पर जीत हासिल की थी।

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