राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव। मधेपुरा के पूर्व सांसद। बाहुबली नेता माने जाते हैं। तमन्ना है कि मुख्यमंत्री बन जाएं। इन्होंने जो गठबंधन (पीडीए) बनाया है, उसने इन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पप्पू सीएम बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। बिहार के कई इलाकों में घूमते तो नजर आते हैं, लेकिन अपने इलाके के ही लोगों से कट गए हैं।
वो बिहार के विकास की बात करते हैं, लेकिन उनके गांव में ही आज तक कोई काम नहीं हुआ है। कोरोना और राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर भी हाल के दिनों में कई बार बोलते दिखे, पर उनके अपने ही गांव में स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। आज भी उनके गांव के मरीजों को इलाज के लिए 70 किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है।
25 सितंबर को ही पटना में पप्पू यादव किसान बिल का विरोध करते दिखे थे। ट्रैक्टर चलाकर घर से डाकबंगला चौराहा पहुंचे थे। लेकिन, अपने इलाके में एक मंडी तक नहीं खुलवा पाए, जहां किसान अपनी उपज बेच सकें और उन्हें उचित दाम मिल सके।
भास्कर की टीम मधेपुरा जिला के मुरलीगंज के पास स्थित खुर्दा पहुंची थी। इसी गांव में पप्पू यादव का घर है। ऐसा लगता है कि बिहार में बदलाव और विकास की बात करने वाले पप्पू यादव को अपने इलाके की समस्याओं की जानकारी नहीं है। तभी तो वो अपने इलाके की परेशानियों को दरकिनार कर दूसरे इलाकों में घूम रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के मकसद से ही पप्पू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल छोड़ा था। लालू यादव से बगावत की थी। जून 2015 में खुद की जन अधिकार पार्टी (जाप) बनाई।
सड़क ऐसी की 10 से ज्यादा स्पीड पर गाड़ी नहीं चला सकते
पप्पू यादव दो बार मधेपुरा से सांसद रह चुके हैं। लेकिन, सहरसा से लेकर मधेपुरा और मुरलीगंज तक सड़क के नाम पर कुछ भी नहीं है। उस पर सिर्फ गड्ढे ही गड्ढे हैं। सड़क का अधिकांश हिस्सा ऐसा है कि वहां पर सिर्फ पत्थर और धूल है। गाड़ी की स्पीड 10 किमी/घंटा से ज्यादा तेज नहीं की जा सकती। एक घंटे के सफर को पूरा करने में तीन घंटे लग जा रहे हैं।
हमारी टीम सबसे पहले मेन रोड से 4 किलोमीटर अंदर खुर्दा में स्थित पप्पू यादव के घर पहुंची। मेन रोड से घर तक का सफर भी आरामदायक नहीं था। गांव जाने के लिए पीसीसी रोड बनी हुई है, लेकिन बीच-बीच में कई जगहों पर हाल बहुत ही बुरा है। घर के कैंपस के अंदर जाने पर पता चला कि इनके खुद की शान और शौकत में कहीं से कोई कमी नहीं है। 5 बीघा (2 एकड़) की जमीन पर उनका घर बना हुआ है। कैंपस में घर की बिल्डिंग अलग है। स्टाफ के रहने के लिए अलग बिल्डिंग है। एक बड़े हिस्से में करीब 40 फीट गहरा तालाब बना हुआ है। तीन घोड़े, दो कुत्ते, 25 बत्तख, दो शुतुरमुर्ग और दो खरगोश घर के ही एक हिस्से में पाले जा रहे हैं।
'नेता रहने से थोड़े कुछ होता है, काम करना पड़ता है'
नेता रहने से थोड़े कुछ होता है, काम करना पड़ता है, हमारे इलाके में विकास का कोई काम नहीं हुआ है। ये बात उस नौजवान ने कही है, जो रहने वाला खुर्दा गांव का ही है। इसका नाम कुलदीप कुमार है। पटना में रहकर पढ़ाई करता है। लेकिन, लंबे वक्त से अपने घर पर ही रह रहा है। कहता है कि उसके इलाके में रोड सही होनी चाहिए थी, जो है नहीं। अगर सड़क अच्छी होती तो ट्रांस्पोर्टेशन में समस्या नहीं होती।
उसने कहा- शिक्षा तो चौपट हो रही है। इस इलाके में ढंग के स्कूल नहीं हैं। सरकारी स्कूलों का हाल बेहाल है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कोई काम नहीं हुआ। आज भी बीमार पड़ने पर लोगों को 40 किलोमीटर दूर मधेपुरा या फिर 70 किलोमीटर दूर पूर्णिया जाना पड़ता है। किसान खेती करते हैं, लेकिन अनाज बेचने के लिए नजदीक में कोई मंडी नहीं है। इससे उन्हें बहुत परेशानी होती है। उचित दाम नहीं मिल पाने की वजह से किसान बर्बाद हो गए। लेकिन, यह सब हमारे नेता पप्पू यादव जी को दिखता कहां है?
'पहले आते थे खूब मिलते थे'
पप्पू यादव अब सांसद नहीं हैं। फिर भी गांव में उन्हें लोग आज भी एमपी साहब ही कहते हैं। खेती करने वाले मदन यादव कहते हैं, 'एमपी साहब पहले आते थे तो खूब मिलते थे। मुलाकात करते थे, बात करते थे। लेकिन, एमपी वाला चुनाव जब से हारे, नहीं आए हैं। पिछले एक साल एकदमे नहीं आए। हम लोगों को मुखिया के तरफ से जो सुविधा मिलता है सिर्फ वही है, एमपी साहब के तरफ से कोई सुविधा नहीं मिला है।'
हम लोगों के पास अब तक कोई अइवे नहीं किया
उपेंद्र प्रसाद यादव खुर्दा के बुजुर्ग हैं। बिहार में चुनाव का माहौल है। जब उनसे पूछा गया कि क्या किसी पार्टी का कोई नेता उनके गांव में मिलने या प्रचार-प्रसार करने आया है, इस पर उनका दो टूक जवाब था- हम लोगों के पास अब तक कोई अइवे नहीं किया है। जब पप्पू यादव एमपी थे तो बहुत मदद करते थे। लेकिन, अब पहले जैसा नहीं है। उनके पार्टी का उम्मीदवार कौन है? ई भी हमको नहीं पता है।
'गांव में स्वास्थ्य केंद्र रहता तो अच्छा रहता'
पप्पू यादव के घर से पूर्व की ओर चंद कदम बढ़ने पर छोटी-छोटी कुछ दुकानें हैं। इनमें से एक दुकान के मालिक डब्लू कुमार यादव हैं। डब्लू ने बताया कि गांव में स्वास्थ्य केंद्र बहुत जरूरी है। इसके नहीं होने से लोगों को बहुत परेशानी होती है। चुनाव का यहां कोई तैयारी नहीं देख रहे हैं। चुनाव हारने के बाद दो बार आए पर घर पर रुके नहीं, बाहर से ही चले गए। लोकसभा चुनाव से पहले वो आते थे। हारने के बाद से मिले नहीं।
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