गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

जब कोई मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करता है, तो ज्यादातर भारतीय कहते हैं- आप फालतू बातें कर रहे

भारत में जिंदगी कठिन है। आपको जन्म देते समय मां को अच्छा अस्पताल पाने से लेकर, आपके स्कूल-कॉलेज में एडमिशन लेने, नौकरी पाने, घर खरीदने और बारिश में बचने से तक आम आदमी की जिंदगी बेहद कठिन है। इस वजह से हताशा, निराशा, गुस्सा, दु:खी होना, भारतीय जिंदगी का हिस्सा है।

जब कोई मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करता है, अथवा डिप्रेशन या एंग्जायटी से जूझ रहे लोगों का ध्यान रखने की बात करता है तो अधिकांश भारतीय कहते हैं, आप फालतू बातें कर रहे हैं। इसे भारतीय ऐसे ही जिंदगी का हिस्सा समझते हैंं। फिर अगर यह समस्या भी हो तो इलाज कैसे हो? इसकी शिकायत करने वाला कमजोर, अनुपयुक्त अथवा हारने पर बहाना बनाने वाला कहलाता है।

भारत की इन भावनाओं को बिना समझे, हमारे मौजूदा मानसिक स्वास्थ्य राजदूत अपना संदेश जारी रखे हैं। वे कहते हैं, ‘मानसिक स्वास्थ्य अन्य बीमारी के ही समान हैं’ या ‘मेरे साथ दोहराओ कि डिप्रेशन हकीकत है।’ इससे भारतीय चौंक जाते हैं। उनके लिए तो बीमारी का मतलब डेंगू, टीबी, कैंसर या मधुमेह है। इसकी बड़ी वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य के भारतीय राजदूत सिर्फ अमेरिकी मॉडल की नकल कर रहे हैं।

वे उनके स्लोगन तक इस्तेमाल करते हैं। यह भारत में नहीं चलता। यही वजह है कि सुशांत सिंह राजपूत द्वारा मनो-चिकित्सीय दवाएं लेने, उसकी समस्या का इलाज कर रहे डॉक्टरों की गवाही व डॉक्टरों की कई टीमों द्वारा उसकी मौत को आत्महत्या बताने के बावजूद पूरे मामले पर चर्चा में हम मानसिक स्वास्थ्य पर बात से इनकार कर देते हैं। इस कॉलम का उद्देश्य इस मसले पर कोई ठोस राय देना नहीं है।

बेहतर होगा कि जांच पूरा होने दी जाए। क्योंकि, सुशांत की मौत की एक राष्ट्रीय प्रतिध्वनि है, इसलिए यह मानसिक स्वास्थ्य के विस्तृत मुद्दे पर चर्चा का सही समय है। पहली बात मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति को कभी न कभी मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कत होती है। देश में भी सरकार प्रायोजित निमहांस के अध्ययन के मुताबिक देश में हर 10 में से एक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य व हर 20 में एक को डिप्रेशन की शिकायत है। इसलिए भारतीयों का कहना कि हमारी दादी-नानी तो डिप्रेस नहीं होती थीं, हकीकत से मुंह चुराना है।

जिंदगी में सभी कभी न कभी परेशान, निराश या व्यग्र होते हैं। यह कोई विकार नहीं है। विकार तब होता है, जब ये भावनाएं तेज होती हैं, खत्म नहीं होतीं और जिंदगी प्रभावित होने लगती है। ऐसा तब होता है, जब ये भावनाएं हफ्तों, महीनों, सालों रहती हैं। इसकी तीव्रता और अवधि ही इसे विकार बनाती है। ऐसे लोगों पर ध्यान देने की जरूरत होती है, जिससे उन्हें मदद मिले। अधिकतर भारतीय कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य तो कुछ है ही नहीं। यह कहना भी गलत है कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्या अन्य बीमारियों जैसी है।

मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को डिसऑर्डर (विकार) कहते हैं, बीमारी नहीं। कई बार यह डिसऑर्डर ही होता है, अगर यह केवल जिंदगी की गुणवत्ता प्रभावित करे। लेकिन, अगर आप काम नहीं कर पाते, खुशी महसूस नहीं करते, घुलमिल नहीं पाते तो मदद की जरूरत हो सकती है। हालांकि अन्य बीमारियों से अलग, मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कत में मदद कई तरीकों से आ सकती है। संक्रामक रोगों में हम एंटीबायोटिक लेकर स्वस्थ हो जाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्या के लिए ध्यान एक विकल्प है।

विशेषज्ञ थेरेपिस्ट भी मदद करते हैं। वे पता लगा सकते हैं कि इस हालत की वजह क्या है: खराब नौकरी, भारी नुकसान, कोई रिश्ता या करिअर जिससे दूर होने की जरूरत है ताकि समस्या हल हो। कई बार सिर्फ थेरेपी काम नहीं करती, तो ध्यान कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक ध्यान अलग है। वह दिमाग की केमेस्ट्री पर काम करता है। इसलिए यह गहन निगरानी में ही हो। इलाज समय लेता है, दवा लक्षणों को मैनेज करती हैं, बीमारी को नहीं।

आप अचानक इन्हें लेना बंद नहीं कर सकते। कई दवाओं का दुरुपयोग हो सकता है, वहीं कई से आत्महत्या के विचार जैसे दुष्प्रभाव होते हैं। चर्चा के लिए यह विषय बहुत बड़ा है और मैं विशेषज्ञ भी नहीं हूं। मनोवैज्ञानिक इलाज कोई रामबाण नहीं है और इसमें खतरे भी हैं। यही बात मानसिक बीमारी के समर्थकों को बतानी चाहिए। दवा कई बार जरूरी होती है, लेकिन इसे अंतिम विकल्प के तौर पर बहुत सावधानी से लेना चाहिए।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मानसिक स्वास्थ्य पर एक महत्वपूर्ण चर्चा छूट गई है। कोविड-19 व आर्थिक दबाव की वजह से इससे जुड़ी समस्याओं में बढ़ोतरी होगी। जबकि हमें मानसिक स्वास्थ्य पर ऐसी स्थिति बनाने की जरूरत है, जिससे लोग खुलकर इस पर बात करें। भारत को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील बनाना सुशांत को एक बेहतर श्रद्धांजलि होगी और मुझे विश्वास है कि उन्होंने खुद इसे कभी खत्म न होने वाली साजिश की कहानियों की तुलना में ज्यादा महत्व दिया था। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार।


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