यह पटना का राजीव नगर इलाका है। चुपचाप खड़े हैं कई मजदूर। पहले यहां रेल लाइन हुआ करती थी। तब भी ये लोग यहीं खड़े रहते थे, हर सुबह। कामकाज की तलाश में। अब रेल लाइन उखाड़ कर सड़क बना दी गई है। फोर लेन वाली। यही नहीं, अब तो ओवरब्रिज भी बन गया है।
दो मजदूर आपस में बातचीत कर रहे हैं। इसमें एक जवान है और दूसरा अधेड़। युवा खैनी रगड़ते हुए कहता है- ‘बाबा ई इलाका चकाचक हो गया, लेकिन हम सब का जिनगी वहीं का वहीं काहे है हो।’
बाबा ने कहा ‘कोरोना में जिंदे हो, यही खैरियत मनाओ’।
काहे ऐसे कहते हैं बाबा, देख रहे हैं न रोज हेलीकॉप्टर से नेता सब उड़ रहे हैं। पानी के तरह पैसा बह रहा है। ई कोरोना में भी चुनाव हो रहा है।
बाबा बोले, ‘देखो समरथ को नहीं दोष गुसाई। यह लिखा हुआ है धर्मग्रंथ में। फिर ई सब में दिमाग काहे लगाते हो’।
दिमाग काहे नहीं लगाएं बाबा, चुनाव के समय ही तो हम सब को दिमाग लगाने का समय है। भुला गए कितना दिक्कत हुआ मजदूर सब को। कैसे रेल पटरी पर मजदूर थक कर सो गए थे और सब कट गए थे।
बाबा बोले- ‘काहे दुख का बात एतना याद रखते हो रे’।
‘एतना जल्दी भूल भी कैसे जाएं बाबा। हमको तो ऊ सब भी याद है कि कैसे बिहार के मुख्यमंत्री ने एक दिन में भाजपा के सारे मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था। कैसे नरेंद्र मोदी के साथ एक ठो विज्ञापन अखबार में छपा था तो नीतीश कुमार ने भूकंप ला दिया था। उस हिसाब से तो चिराग कुछो नहीं कर रहा है। नरेंद्र मोदी पीएम पद के दावेदार थे और नीतीश कुमार को पचिए नहीं रहे थे। मिट्टी में मिल जाएंगे पर भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। भाजपा का क्या मतलब बताया था याद है न आपको- ‘भारत जलाओ पार्टी’। नरेंद्र मोदी कम थोड़े हैं। ऊ तो डीएनए पर ही सवाल उठा दिए थे।’
बाबा चकराने लगे, बोले- ‘अरे बाप रे बाप, तू नेता काहे नहीं बन गया रे’। जवान मजदूर ई सब से कब रुकने-थमने वाला था, उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, बाबा आपको याद है- ‘गांधी मैदान में स्टॉल लगाया गया था। वहां कैंची और नोहरनी (नेल कटर) भी रखा गया था। स्टॉल लगाकर लोगों का नाखून काटा गया, बाल काटा गया और उसको छोटकिनिया पैकेट में भर कर ‘डीएनए टेस्ट’ खातिर भेजा गया था दिल्ली...। बिहारी स्वाभिमान का सवाल उठा दिया था सब, इसलिए हमहू जाकर बाल, नाखून कटवाकर भेजे थे। बाप रे बाप.... गजबे तमाशा हुआ था। फिर बाद में क्या हुआ। ऊहे नीतीश बाबू, नरेंद्र मोदी के साथ चले गए। भाजपो ऐसी निकली कि स्वीकार कर ली हाथ बढ़ा के।’
बाबा बोले- ‘इतना सब होने के बादो तोहर तीसरा नेत्र नहीं खुला है का’। जवान बोला- ‘खुल भी गया त हम किसका क्या बिगाड़ लेंगे। वोट देना है हमको तो एक ठो दे आएंगे। चिराग, तेजस्वी से भिड़ रहे हैं नीतीश कुमार। सोचिए तो क्या मुकाबला है। किसी पार्टी का दम है बिहार में अकेले चुनाव लड़ ले। चारों तरफ गठबंधने दिख रहा है।
नीतीश कुमार से लेकर उपेन्द्र कुशवाहा, मुकेश सहनी, पप्पू यादव सब का गठबंधन। चिराग अकेले चल रहे हैं। उनका भितरिया गठबंधन है। चुनाव के बाद समझ में आएगा। बीच-बीच में भाजपा के बड़का नेता सब कुछ-कुछ बोल कर गड़बड़ा दे रहे हैं।
बाबा बोले- ‘गजबे है भाई, बिहार का हर आदमी कउनो उम्मीदवार से कम नहीं है। लेकिन, जानते हो इस बार कउनो नेता के भाषण में मजा नहीं आ रहा है। लालू थे तो गरमाइल रखते थे। हप-हप बोलते थे। अब त घिसल-पिटल भाषण है। कवनो क्रिएटिविटी नय है। मजा त खाली चिरागे दिला रहा है। बिहार में राजनीति का चिराग जलइले है। अब त आपदा घोटाला का आरोप शुरू हो गया है। देखते जाओ आगे... आगे...।’
मेरा मन उस युवा की बातों में ही लगा हुआ था कि मजदूरी करने वाले की इतनी राजनीतिक समझ... मैंने उसे रोककर उसके बारे में जानना चाहा। धीरे से नाम बताया- राकेश। सब उसे बबलुआ कहते हैं। ‘बबलुआ’ बीटेक पास बेरोजगार है...अपने कुछ और साथियों की तरह। मैंने कुछ और पूछा तो दर्द भरी टीस और मुस्कराहट के बीच निकली आवाज में बस इतना ही कहा- ‘बिहार में बहार बा...’।
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