बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

बाराबंकी के सरकारी टीचर ने छुट्टी लेकर, फल-सब्जियों की खेती शुरू की, सालाना एक करोड़ हो रही है कमाई

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के दौलतपुर के रहने वाले अमरेंद्र प्रताप सिंह इन दिनों अपने क्षेत्र में चर्चा में हैं। इसके पीछे वजह है उनकी नई तकनीक से खेती। अभी वो 60 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। एक दर्जन से ज्यादा फसलें वे उगा रहे हैं। इससे सालाना एक करोड़ रुपए की कमाई हो रही है।

35 साल के अमरेंद्र एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे, अभी अवैतनिक अवकाश (लीव विदाउट पे) पर हैं। खेती के लिए ही उन्होंने छुट्टी ली है। कहते हैं, 'मेरे गांव में लोग खेती से ऊब गए थे, हर कोई खेती से भाग रहा था। मेरे भाई गेहूं, गन्ना जैसी पारंपरिक फसलें उगाते थे। इससे कमाई काफी कम होती थी। ऊपर से पैसा भी देर से मिलता था।

वो बताते हैं, ' 2014 में मैंने खेती करने का प्लान किया और लखनऊ से वापस गांव आ गया। कई लोगों ने मेरे फैसले का विरोध किया। रिश्तेदारों ने कहा कि अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हो। सब खेती छोड़कर नौकरी करने जाना चाहते हैं और तुम सरकारी नौकरी छोड़कर खेती करने आ रहे हो। कोई फायदा नहीं है इसमें।'

अमरेंद्र अभी 60 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। इनमें 30 एकड़ जमीन पर पारंपरिक फसल और बाकी 30 एकड़ जमीन पर केला, तरबूज, मशरूम, खरबूजा, हल्दी, समेत एक दर्जन से ज्यादा फल और सब्जियां उगा रहे हैं।

अमरेंद्र कहते हैं कि मैंने तय कर लिया था कि अब जो भी हो खेती ही करना है। मैंने गूगल और यूट्यूब पर थोड़ा खेती के बारे में सर्च किया। फिर केले की खेती का आइडिया मिला। जो किसान पहले से इसकी खेती करते थे, उनके पास जाकर इसके बारे जानकारी जुटाई। खेती की बारीकियों को समझा।

इसके बाद दो एकड़ जमीन पर मैंने केले की खेती शुरू की। पहले ही साल रिस्पॉन्स अच्छा मिला। अगले साल से खेती का दायरा बढ़ा दिया। केले के साथ ही दूसरे फल और सब्जियां उगाने लगा।

अमरेंद्र कहते हैं कि कई बार मौसम की वजह से फसल मार खा जाती है। इससे बचने के लिए हमने अल्टरनेटिव प्लान तैयार किया। हम एक फसल के साथ दूसरी भी फसल लगा देते हैं। जैसे केले के साथ हल्दी या मशरूम लगा दिया, तरबूज लगा दिया ताकि अगर एक फसल खराब भी हो तो दूसरी से उस नुकसान की भरपाई हो जाएगी।

अमरेंद्र कहते हैं कि नई तकनीक से खेती की जाए तो इसमें काफी स्कोप है। सिर्फ पारंपरिक खेती के भरोसे नहीं रहा जा सकता है।

शुरुआत में तो हम खुद ही मंडी जाकर सब्जियां और फल बेचते थे। धीरे-धीरे लोगों को हमारे बारे में जानकारी हुई, तो अब लोग खुद ही हमारे खेत पर आते हैं। हमारे यहां से ट्रक भर-भर के लखनऊ, वाराणसी, दिल्ली जैसे शहरों में जाते हैं।

अमरेंद्र अभी 60 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। इनमें 30 एकड़ जमीन पर पारंपरिक फसल और बाकी 30 एकड़ जमीन पर केला, तरबूज, मशरूम, खरबूजा, हल्दी, स्ट्रॉबेरी और खीरा समेत करीब एक दर्जन से ज्यादा फल और सब्जियां उगा रहे हैं। उनके साथ 35 लोग काम करते हैं। इसके साथ कई किसान अमरेंद्र से खेती सीख रहे हैं।

वो बताते हैं कि हमने लाइसेंस ले लिया है। अब हम फूड प्रोसेसिंग और जूस भी तैयार करने वाले हैं। इस पर काम भी शुरू हो गया है। कुछ दिनों बाद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी हमारे प्रोडक्ट उपलब्ध होंगे।

अमरेंद्र 2014 से खेती कर रहे हैं। इनके साथ 35 लोग जुड़े हुए हैं।

अमरेंद्र कहते हैं कि नई तकनीक से खेती की जाए तो इसमें काफी स्कोप है। सिर्फ पारंपरिक खेती के भरोसे नहीं रहा जा सकता है। उन्होंने खेती के लिए नई तकनीक नहीं ली है, गूगल और यूट्यूब पर ही वे खेती के बारे में नई-नई चीजें सीखते रहते हैं। अब उन्हें बहुत कुछ जानकारी हो गई है। वे जिले के दूसरे किसानों को भी खेती सिखा रहे हैं।



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Leaving a government job, the youth of Barabanki started cultivating fruits and vegetables 6 years ago, today the turnover reached Rs 1 crore annually


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