अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने विदेशी कामगारों को जारी होने वाले नए एच-1बी और एल-1 वीजा पर 31 दिसंबर तक प्रतिबंध लगा दिया है। इसका सीधा-सीधा मतलब यही है कि 31 दिसंबर तक किसी भी विदेशी कामगार को अमेरिका में नौकरी के लिए नए एच-1बी वीजा जारी नहीं होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के लिए 2 लाख 75 हजार लोगों ने एच-1बी वीजा के लिए एप्लाय किया है, जिसमें से 67.7% भारतीय और 13.2% चीनी नागरिक हैं।
एच-1बी वीजा क्या है? ट्रम्प के इस फैसले के पीछे क्या मकसद है? इससे भारत पर क्या असर पड़ेगा? इस पूरे मसले को समझते हैं:
1. क्या होता है एच-1बी वीजा?
- ये एक गैर-प्रवासी वीजा होता है, जो किसी विदेशी नागरिक या कामगार को अमेरिका में काम करने के लिए 6 साल के लिए जारी किया जाता है। जो कंपनियां अमेरिका में हैं, उन्हें ये वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है, जिनकी अमेरिका में कमी हो। इस वीजा को पाने की कुछ शर्तें भी होती हैं। जैसे- कर्मचारी को ग्रेजुएशन होने के साथ-साथ किसी एक क्षेत्र में स्पेशियलिटी भी होनी चाहिए।
- इसके अलावा इसे पाने वाले कर्मचारी की सालाना तनख्वाह 40 हजार डॉलर यानी 45 लाख रुपए से ज्यादा होनी चाहिए। ये वीजा अमेरिका में बसने की राह भी आसान करता है। एच-1बी वीजा धारक 5 साल बाद अमेरिका की स्थाई नागरिकता या ग्रीन कार्ड के लिए भी अप्लाय कर सकते हैं। टीसीएस, विप्रो, इन्फोसिस जैसी 50 से ज्यादा भारतीय आईटी कंपनियों के अलावा गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियां इस वीजा का इस्तेमाल करती हैं।
2. क्या है ट्रम्प का फैसला?
- अमेरिकी राष्ट्रपति के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं, जिसका इस्तेमाल करते हुए ही उन्होंने मंगलवार को अमेरिका में वैध रूप से काम करने वाले अप्रवासी कुशल कामगारों के नए दाखिलों पर इस साल के आखिर तक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। ये फैसला 24 जून से लागू हो गया है। फैसले के लागू होते ही 31 दिसंबर तक किसी भी विदेशी कामगार को एच-1बी वीजा या अमेरिका में काम करने के लिए मिलने वाले दूसरे वीजा जारी नहीं होंगे।
- ट्रम्प के फैसले के ऑर्डर का जो टाइटल है, उसमें लिखा है 'कोरोनावायरस महामारी के बाद अमेरिका के लेबर मार्केट में एलियंस की एंट्री को रोकने की घोषणा'। इस फैसले के पीछे ट्रम्प का तर्क है किवीजा देने से अमेरिकी कामगारों के रोजगार पर खतरा पैदा होता है।ऐसा फैसला कर ट्रम्प ने उन तमाम वीजा की श्रेणियों को फिलहाल दिसंबर 2020 तक सस्पेंड कर दिया है, जिसमें फायदा मिलने वालों में सबसे बड़ा तबका भारतीयों का है। हो सकता है कि ये सस्पेंशन और आगे बढ़ जाए।
3. किन श्रेणी के वीजा पर रोक लगाई गई है?
- ट्रम्प ने फिलहाल नए एच-1बी और एल-1 वीजा पर रोक लगाई है। एच-1बी वीजा उन कुशल विदेशी कामगारों के लिए है, जो अमेरिका में नौकरी के लिए जा रहे हैं। जबकि, एल-1 वीजा उन कुशल विदेशी कर्मचारियों और मैनेजर की रैंक के लोगों के लिए होता है, जिनका अमेरिका में किसी कंपनी के अंदर ट्रांसफर हो रहा है। इस कदम से कोई मल्टीनेशनल कंपनी विदेश में काम कर रहे किसी कर्मचारी को अमेरिका स्थित अपनी कंपनी में फिलहाल ट्रांसफर नहीं कर पाएगी।
- इसके अलावा नॉन-एग्रीकल्चर इंडस्ट्रीज में कम समय के लिए लाए जाने वाले सीजनल वर्कर्स के लिए जारी होने वाले एच-2 वीजा पर भी रोक लगाई गई है। एच-4 वीजा पर भी रोक है, जिसके आधार पर एच-1बी वीजा धारक के पति-पत्नी अमरिका में रह पाते हैं। जे-1 वीजा भी सस्पेंड कर दिया गया है। ये वीजा सांस्कृतिक और शिक्षा के एक्सचेंज कार्यक्रम के तहत इमिग्रेशन के लिए जरूरी है।
ट्रम्प के फैसले का भारतीयों पर क्या असर होगा?
- मौजूदा लॉटरी सिस्टम के जरिए सालाना 85 हजार नए एच-1बी वीजा जारी किए जाते हैं। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने संसद में बताया था कि पिछले 5 साल में जारी किए एच-1बी वीजा में 70 फीसदी से ज्यादा भारतीयों को मिले हैं।
- वीजा पर रोक का असर उन लाखों भारतीयों पर पड़ेगा, जो काम के लिए अमेरिका जाने वाले थे। ये फैसला भले ही अस्थाई हो, लेकिन भारतीयों के एक बड़े तबके लिए बुरी खबर है। जिन वीजा श्रेणियों में नए दाखिलों पर प्रतिबंध का ऐलान किया गया है, उनमें तय कोटे में आधे से ज्यादा वीजा भारतीयों को ही हासिल होते हैं।
- 2015 में भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोगों की तादाद ने 10 लाख का आंकड़ा पार कर लिया था। इन लोगों से भारत को भारी रेमिंटंस का फायदा मिलता है और अमेरिकी सियासी गलियारों से लेकर व्हाइट हाउस की टीम में भी आज कई भारतीय-अमेरिकी हैं।इसके साथ ही अमेरिका में रहने के लिए इस साल 8 लाख लोगों को ग्रीन कार्ड मिलने का इंतजार था, लेकिन अब उनके भविष्य पर भी तलवार लटक गई है।
5. जो भारतीय अमेरिका में काम कर रहे हैं, क्या उन्हें वापस लौटना होगा?
- नहीं। ट्रम्प का फैसला 24 जून से लागू है। यानी, जो विदेशी कामगार या कर्मचारी पहले से ही अमेरिका में काम कर रहे हैं, उन पर कोई असर नहीं होगा। हालांकि, महामारी और आर्थिक मंदी के इस दौर में किसी की नौकरी चली गई है, तो उन्हें दिक्कत हो सकती है। एच-1बी वीजा में प्रावधान है कि अगर किसी नौकरी चली जाती है और 60 दिन के अंदर उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलती, तो ऐसे में उसे घर लौटना होता है।
- हालांकि, इस साल अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों से STEM इंडस्ट्रीज यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स से ग्रैजुएट होने वाले छात्र ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत इन बिना किसी वीजा के 1 से 3 साल तक अमेरिका में नौकरी कर सकते हैं।
- 2020-21 के लिए एच-1बी वीजा आवेदकों का लॉटरी ड्रॉ पूरा कर लिया गया था और अक्टूबर से काम शुरू होने की उम्मीद थी। लेकिन इसे भी फिलहाल अगले साल की शुरुआत तक टाल दिया गया है।
6. ट्रम्प के इस फैसले के पीछे क्या मकसद है?
- इस साल नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव हैं। अभी जो सर्वे आए हैं, उसें रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प, डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेन से पीछे चल रहे हैं। बाइडेन, बराक ओबामा के कार्यकाल में उप राष्ट्रपति भी रह चुके हैं।
- ट्रम्प की गिरती लोकप्रियता के पीछे कोरोना महामारी से निपटन में नाकाम होना, डामाडोल आर्थिक स्थिती और ब्लैक लाइव्स मैटर जैसे राष्ट्रव्यापी विरोध आंदोलन अहम वजहें हैं।
- महामारी की वजह से पैदा हुए आर्थिक मंदी के हालात में कुछ ही हफ्तों में अमेरिका में बेरोजगारी दर 0% से 10% तक पहुंच गई है। मागा यानी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन और अमेरिका फर्स्ट जैसे नारों के साथ 2016 में चुनाव जीतकर आए ट्रम्प का सबसे बड़ा वादा था- अमेरिकियों के लिए नौकरियां लाना। इसमें फिलहाल उनकी हालत सवालों के घेरे में हैं।
- अब तक अवैध इमिग्रेशन, असाइलम स्पीकर और मुस्लिम इमिग्रेंट्स को लेकर विवादित फैसले करने वाले ट्रम्प की नजरें अब स्किल्ड इमिग्रेशन पर है। तर्क है कि कम तनख्वाह में भारत जैसे देशों से लाए जा रहे विदेशी कामगार अमेरिकियों की नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं।
- अमेरिकी सरकार के आंकड़े बताते हैं कि इस साल फरवरी से अप्रैल के बीच 2 करोड़ अमेरिकियों की नौकरी गई है। इनकी भरपाई एच-1बी और एल-1 वीजा के अप्रवासी कर्मचारियों से की जाने की कोशिशें हो रही हैं। ट्रम्प की टीम का दावा है कि वीजा सस्पेंशन से कम से कम 5.25 लाख अमेरिकियों को नौकरी मिलेगी।
- एंटी ग्लोबलाइजेशन और नेशनलिज्म यानी राष्ट्रवाद के इस दौर में ट्रम्प खुद को अमेरिकी कामगारों के मसीहा के तौर पर भुनाने की कोशिशों में जुटे हैं और इमिग्रेशन पर हमले को अपना हथियार बनाया है।
7. इस पर भारत सरकार की क्या राय है?
- फिलहाल भारत सरकार की इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। विदेश मंत्रालय इस पर चुप्पी साधे हुए है। हालांकि, पिछले कुछ वक्त से वैध इमिग्रेशन को लेकर ट्रम्प की तल्ख टिप्पणियों पर भारत सरकार चिंतित रही है। इस मसले को अलग-अलग कूटनीतिक और राजनीतिक स्तर पर भारत उठाता रहा है।
- इस फैसले से तुरंत भारत की अर्थनीति पर तो कोई गहरा असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन अगर ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति चुने जाते हैं और इमिग्रेशन पर उनका यही रवैया रहा तो निश्चित रूप से भारत-अमेरिका के रिश्तों पर असर पड़ेगा।
- गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताई है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि, इमिग्रेशन की वजह से अमेरिका को बहुत फायदा हुआ है। इसकी वजह से ही वो वर्ल्ड लीडर बना है। पिचाई ने कहा है कि वो प्रवासियों के साथ खड़े हैं और उन्हें हर तरीके के मौके दिलाने का काम करते रहेंगेे।
- वहीं यूएस-इंडिया स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप फोरम के प्रेसिडेंट और सीईओ मुकेश आघी ने भी इस फैसले को खुद अमेरिकी इंडस्ट्री के लिए बड़ा झटका करार दिया है और अपील की है कि लॉटरी सिस्टम में मौजूद खामियों को दूर की जाए बजाए प्रतिबंध लगाने के।
Immigration has contributed immensely to America’s economic success, making it a global leader in tech, and also Google the company it is today. Disappointed by today’s proclamation - we’ll continue to stand with immigrants and work to expand opportunity for all.
— Sundar Pichai (@sundarpichai) June 22, 2020
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