साल 2100 तक देश का औसत तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। लू चलने की घटनाएं तीन से चार गुना बढ़ जाएंगी।समुद्र का जलस्तर भी 1 फुट बढ़ जाएगा। तूफानों की तीव्रता व संख्या भी बढ़ जाएगी। इन सब बातों का खुलासा क्लाइमेट चेंज की भारत की पहली रिपोर्ट में किया गया है।
‘असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन’शीर्षक से बनी यह रिपोर्ट मंगलवार को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन जारी करेंगे। पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरोलॉजी ने इसे तैयार किया है। रिपोर्ट की हर चार से पांच साल में समीक्षा होगी।
सदी के अंत तक न्यूनतम और अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी की संभावना
रिपोर्ट के मुताबिक, 1986 से लेकर 2015 के बीच सबसे गर्म दिन (अधिकतम) और सबसे ठंडे दिन (न्यूनतम) के तापमान में क्रमश: 0.63 डिग्री और 0.4 डिग्री बढ़ोतरी हुई है। अगर यही परिस्थिति जस की तस रहती है, तो 1976 से 2005 की तुलना में वर्ष 2100 तक इनमें 55 से 70% बढ़ जाएगा। यानी सदी के अंत तक इन दोनों तापमान में क्रमश: 4.7 और 5.5 डिग्री बढ़ोतरी होने की संभावना है।
परिस्थितियों के जस के तस रहने का मतलब यह है कि क्लाइमेट चेंज की वजह और ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 1951 से 2015 के बीच मानसूनी बारिश में में 6% की कमी आई है।
मध्य भारत में बेतहाशा बारिश की घटनाओं में 75% का इजाफा हुआ
खासकर गंगा पट्टी के मैदानी और पश्चिमी घाट के इलाकों में बारिश में ज्यादा कमी हुई है। जबकि इस दौरान मध्य भारत में बेतहाशा बारिश की घटनाओं में 75% का इजाफा हुआ है। 1951 से 1980 की तुलना में 1981 से 2011 के बीच सूखे की घटनाएं 27% बढ़ी हैं।
रिपोर्ट में मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में हाल के वर्षों में आई बाढ़ के लिए क्लाइमेट शिफ्ट, शहरीकरण, समुद्री जलस्तर के चढ़ने को जिम्मेदार बताया गया है। मध्य भारत का जो क्षेत्र नम रहता था, वह अब सूखा-संभावित क्षेत्र में तब्दील हो चुका है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्वी तट, प. बंगाल, गुजरात, मुंबई, कोलकाता व चेन्नई जैसे प्रमुख शहरी इलाकों में बाढ़ का जोखिम ज्यादा हो गया है।
बदलाव का असर इकोसिस्टम, खेती और पानी के स्रोत पर ज्यादा पड़ेगा
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के वातावरण में तेजी से हो रहे बदलाव का असर इकोसिस्टम, खेती की उपज, ताजा पानी के स्रोतों पर ज्यादा पड़ेगा। साथ ही बुनियादी ढांचा भी नष्ट होगा। इसके परिणाम स्वरूप देश की जैव-विविधता, खाना, पानी, ऊर्जा सुरक्षा और स्वास्थ्य पर बुरा असर होगा। चरम की मौसमी घटनाओं (बहुत अधिक तापमान) बार-बार बदलते मौसम के चलते हीट स्ट्रोक, हृदय व तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियां और मानसिक विकारों के मामले बढ़ेंगे।
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