रविवार, 5 जुलाई 2020

विवाद का इतिहास, चीन की विस्तारवादी नीतियां, मोदी सरकार के सच्चे-झूठे दावों समेत भारत-चीन विवाद पर भास्कर की 10 खास रिपोर्ट्स...

साल 2020 भारत-चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों का 70वां साल था। दोनों देशों में इस मौके पर 70 इवेंट होने वाले थे। लेकिन 5 मई को पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील के किनारे भारत-चीन सैनिकों के बीच हुई झड़प ने सबकुछ बदल दिया। 9 मई को सिक्किम के नाकू ला सेक्टर की झड़प और फिर 15 जून को गलवान की झड़प ने माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया।

एलएसी पर तनाव के 9 हफ्ते पूरे हो चुके हैं और इस दौरान दैनिक भास्कर ने एलएसी की हर अपडेट पूरे एनालिसिस के साथ आप तक पहुंचाई है। यहां हम इन्हीं 9 हफ्तों की कुछ चुनिदां और खास रिपोर्ट एक बार फिर आपके लिए लेकर आए हैं…

1. भारत-चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों के 70 साल पूरे होने और ताजा विवाद के बाद इन रिश्तों में आई खटास पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

भारत-चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों की बुनियाद 1 अप्रैल 1950 को रखी गई थी, इस साल इसके 70 साल पूरे हुए। विदेश मामलों के जानकार हर्ष वी. पंत कहते हैं कि दोनों देशों ने इस खास मौके पर जश्न मनाने की काफी तैयारियां की थीं। अल्टरनेटिव एक इवेंट इंडिया में तो दूसरा चीन में होने की प्लानिंग थी, लेकिन एक के बाद एक सीमा पर हुई झड़पों ने साझेदारी बढ़ाने की इन कोशिशों को लंबे वक्त के लिए थाम दिया है।

पूर्व डिप्लोमेट, रक्षा मामलों के जानकार और पाकिस्तान समेत कई देशों में राजदूत रह चुके जी. पार्थसारथी कहते हैं कि भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव जरूर है लेकिन बातचीत के जरिए ये मसला सुलझ जाएगा। हकीकत यह है कि आज चीन के साथ कोई भी देश संघर्ष नहीं चाहेगा। आर्थिक क्षेत्र में चीन हमसे पांच गुना आगे है। सैन्य क्षेत्र में वह हमसे चार गुना आगे है। यदि उनसे लड़ना है, तो हमें मजबूरी में ही लड़ना होगा… (पूरी खबर के लिएयहांक्लिक करें)

2. 58 साल में चौथी बार एलएसी पर भारतीय जवान शहीद हुए, चीन के साथ सीमा विवाद की पूरी कहानी कुछ इस तरह है..

भारत और चीन के बीच विवाद का इतिहास जमे हुए पानी की तरह है, जिस पर बस उम्मीद फिसलती है, नतीजे नहीं। चीन ने 58 साल में चौथी बार भारत के साथ बड़ा विश्वासघात किया है। इसकी वजह 4056 किमी लंबी बॉर्डर ही है। यह दुनिया की ऐसी सबसे बड़ी सीमा भी मानी जाती है, जिसकी पूरी तरह से मैपिंग नहीं हो सकी है। भारत मैकमोहन लाइन को वास्तविक सीमा मानता है, जबकि चीन इसे सीमा नहीं मानता। इसी लाइन को लेकर 1962 में भारत और चीन के बीच जंग भी हुई थी… (पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

3. चीन अपने नक्शों में भारतीय इलाकों को अपना दिखाता रहा, भारत ने पूछा तो बोला- नया नक्शा बनाने का टाइम नहीं

1954 में चीन की एक किताब 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मॉडर्न चाइना' में छपे नक्शे में चीन ने लद्दाख को अपना हिस्सा बताया। बाद में जुलाई 1958 में भी चीन से निकलने वालीं दो मैगजीन 'चाइना पिक्टोरियल' और 'सोवियत वीकली' में भी चीन ने अपना जो नक्शा छापा, उसमें भारतीय इलाकों को भी शामिल किया गया। भारत ने दोनों ही बार इस पर आपत्ति जताई। लेकिन, चीन ने ये कह दिया कि ये नक्शे पुराने हैं और उनकी सरकार के पास नक्शे ठीक करने का समय नहीं है…(पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के पहले राष्ट्रपति झोऊ इन-लाई। अप्रैल 1960 में झोऊ भारत दौरे पर आए थे।

4. एक्सपर्ट्स का एक पक्ष यह भी-सरकार सच को छिपा रही, मई की शुरुआत में ही चीन ने लद्दाख के कई सीमाई इलाकों पर कब्जा कर लिया था

लद्दाख की गलवान घाटी में क्या हुआ था, क्या हो रहा है? यह सब पिछले कुछ हफ्तों से हम लगातार सुन और पढ़ रहे हैं। इस सबके बावजूद अभी कई सवाल अधूरे हैं। रिटायर्ड आर्मी अफसर, पूर्व राजनयिक और सीनियर जर्नलिस्ट इस पूरे मामले पर अलग-अलग मत रख रहे हैं। कोई भारत को विजेता बता रहा है तो किसी को चीनी सैनिकों के मारे जाने पर यकीन नहीं है। ये दावे भी सामने आ रहे हैं कि गलवान घाटी का एक बड़ा हिस्सा भारत खो चुका है और सरकार जनता से सच छिपा रही है। इस तरह की कई और बातें भी हैं, जो एक्सपर्ट्स लगातार ट्विटरपर लिख रहे हैं। आइए पढ़ते हैं कि वे क्या लिख रहे हैं…(पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

5. गलवान में 15 जून की रात की कहानी: जब भारतीय कर्नल को चीन के जवान ने मारा तो 16 बिहार रेजिमेंट के 40 जवान उस पर टूट पड़े थे

गलवान घाटी में चीन और भारत के सैनिकों में झड़प की वजह पड़ोसी देश की एक ऑब्जर्वेशनल पोस्ट थी। चीन ने ठीक एलएसी पर एक ऑब्जर्वेशन पोस्ट बना ली थी। भारतीय सेना को इस स्ट्रक्चर पर आपत्ति थी। 16 बिहार इंफैन्ट्री रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू इसे लेकर कई बार चीनी कमांडर को आपत्ति दर्ज करवा चुके थे। एक बार उनके कहने पर चीन ने इस कैम्प को हटा भी दिया, लेकिन 14 जून को अचानक फिर से ये कैम्प खड़ा कर दिया गया। 15 जून की शाम 4 बजे कर्नल संतोष बाबू अपने 40 जवानों के जवानों को लेकर पैदल उस कैम्प तक गए थे…(पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

15 जून की रात गलवान घाटी में झड़प के वक्त चीन के लगभग 300 सैनिक थे और इनका सामना करने के लिए भारतीय जवानों की संख्या महज 45 से 50 थी।

6. 6 देशों की 41.13 लाख स्क्वायर किमी जमीन पर चीन का कब्जा, ये उसकी कुल जमीन का 43%, भारत की भी 43 हजार वर्ग किमी जमीन उसके पास

1949 में कम्युनिस्ट शासन आते ही चीन ने तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान और इनर मंगोलिया पर कब्जा कर लिया। हॉन्गकॉन्ग 1997 और मकाउ 1999 से कब्जे में हैं। जमीन के अलावा समंदर पर भी चीन की दावेदारी है। 35 लाख स्क्वायर किमी में फैले दक्षिणी चीन सागर पर वह हक जताता है। चीन यहां आर्टिफिशियल आइलैंड भी बना चुका है…(पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

7. कहां-कहां से बायकॉट करेंगे: दवाओं के कच्चे माल के लिए हम चीन पर निर्भर,देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में 4 चीन के

सोशल मीडिया पर लगातार #boycottchineseproduct जैसे हैशटैग ट्रेंड हो रहे हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2019 से लेकर फरवरी 2020 के बीच भारत-चीन के बीच 5 लाख 50 हजार करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। इसमें से भारत ने तो सिर्फ 1.09 लाख करोड़ का सामान चीन को बेचा, लेकिन इससे चार गुना यानी 4.40 लाख करोड़ रुपए का सामान चीन से खरीदा। अमेरिका के बाद चीन हमारा दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी देश है। ये आंकड़े मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के हैं…(पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

8. कूटनीति या मूकनीति : एलएसी पर चीन से विवाद के 44 दिन तक पीएम मोदी कुछ नहीं बोले,विदेश मंत्री जयशंकर ने 75 से ज्यादा ट्वीट किए, परचीन का नाम नहीं लिया

भारत-चीन के बीच 5 मई को हुई पहली झड़प के 44 दिन बाद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विवाद पर एक शब्द नहीं बोला था। 45वें दिन भी बस इतना कहा कि देश को गर्व है कि हमारे जवान मारते-मारते शहीद हुए। भारत किसी भी उकसावे का जवाब देने में सक्षम है। यही नहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर भी अब तक इस पूरे मुद्दे पर खामोश रहे थे। उन्होंने पांच मई से 16 जून तक ट्विटर पर 75 से ज्यादा ट्वीट किए, लेकिन एक बार भी चीन का जिक्र तक नहीं किया.. (पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

9. लेह मेंप्रधानमंत्री का पहुंचना हौसले का हाईडोज, इससे उन्हें असल हालात पता चलेंगे, ताकि तुरंत एक्शन ले सकें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 जुलाई को अचानक लेह पहुंचे। रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा बताते हैं कि पीएम का जाना वहां तैनात सैनिकों के हौसले के लिए बहुत बड़ी बात है। ये सिग्नल है कि देश आपके साथ है और सरकार सेना के साथ रहेगी हर चीज में, हर एक्शन के लिए। पीएम का जाना ये भी दर्शाता है कि मोदी ने आर्मी कमांडर को आजादी दे दी है और ऑनग्राउंड कुछ होता है तो भारत सरकार और देश का प्रधानमंत्री उनके साथ हैं...(पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)

मोदी ने 3 जुलाई को लद्दाख का दौरा किया था।

10. मोदी ने लद्दाख पहुंचकर चीन और दुनिया को बताया कि यह पूरा इलाका भारत का;यहां न सिर्फ सेना, बल्कि देश का प्रधानमंत्री भी मौजूद है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह अचानक लेह पहुंचकर हर किसी को चौंका दिया। उनके इस दौरे को चीन और दुनिया को संदेश देने के तौर पर देखा जा रहा है। इस दौरे के कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक मायने क्या हैं? इससे क्या चीन सीमा पर तनाव और बढ़ेगा? चीन और दुनिया को इससे क्या मैसेज जाएगा? मोदी की कूटनीतिक स्ट्रेजी के मायने क्या हैं? दौरे से जुड़े ऐसे सभी मसलों पर हमने पूर्व डिप्लोमेट, रक्षा मामलों के जानकार जी. पार्थसारथी और विदेश मामलों के एक्सपर्ट्स हर्ष वी पंत से बातचीत की… (पूरी खबर के लिएयहां क्लिक करें)



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भारत-चीन के बीच एलएसी पर 23 डिफरिंग परसेप्शन एरिया हैं। यहां दोनों देश एक-दूसरे को अपने दावे की सीमा तक पेट्रोलिंग करने की इजाजत देते हैं। ज्यादातर इन्हीं इलाकों में ही दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने आती हैं।


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