नेपाल की रहने वाली शीबा काला एक हाउस वाइफ हैं। कभी शाम का खाना खाती हैं तो सुबह का नहीं और सुबह का खाती हैं तो शाम का नहीं। वह हर रोज एक वक्त का खाना छोड़ देती हैं ताकि उनकी पांच साल की बच्ची भूखी न रहे। शीबा के पति गल्फ कंट्री कतर में जॉब करते थे। कोरोनाकाल में उनकी नौकरी चली गई। इसलिए वे अब घर पर पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। शीबा बताती हैं कि उनके पति पहले हर महीने करीब 12 हजार रुपए भेजते थे जिससे फ्लैट का किराया और घर की जरूरतें पूरी होती थीं। पिछले 6 महीने में उन्हें सिर्फ 25 हजार रुपए मिले हैं।
शीबा की तरह ही नेपाल की राधा मरासिनी भी आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं। उनके पति भारत के लुधियाना में एक फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी करते थे। लॉकडाउन में उनकी नौकरी चली गई। जो कुछ पैसे पति भेजते थे वह बंद हो गया। मजबूरी में राधा को कर्ज लेकर घर चलाना पड़ रहा है। शीबा और राधा की तरह करोड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें कोरोनाकाल में आर्थिक तंगी का शिकार होना पड़ा है।
कोरोना की वजह से ग्लोबल रेमिटेंस में 20 % की कमी
वर्ल्ड बैंककी रिपोर्ट के मुताबिक इस साल कोरोना की वजह से दुनियाभर में रेमिटेंस में 20 फीसदी से ज्यादा की कमी आएगी। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में दुनियाभर में एक देश से दूसरे देश में करीब 40 लाख करोड़ रुपए रेमिटेंस के तौर पर भेजे गए। इस साल कोरोना की वजह से भारी संख्या में लोगों की नौकरियां गई हैं। इसका सीधा-सीधा असर रेमिटेंस पर पड़ा है। इस साल 20 फीसदी घटकर रेमिटेंस करीब 33 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। यानी करीब 7 लाख करोड़ रुपए की कमी।
रेमिटेंस क्या होता है
दरअसल दुनियाभर में लोग रोजगार की तलाश में एक देश से दूसरे देश में जाते हैं और वहां से अपने घर कुछ पैसे भेजते हैं। जिससे उनका घर चलता है। इस राशि को रेमिटेंस कहा जाता है। खाड़ी देशों में बसे भारतीय सबसे अधिक रेमिटेंस भेजते हैं। इसके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे विकसित देशों में काम करने वाले भारत में अपने परिवार के लिए पैसे भेजते हैं।
जो प्रवासी दूसरे देशों से अपने देश रेमिटेंस के तौर पर राशि भेजते हैं उसका करीब 75 फीसदी खाने-पीने जैसी जरूरी चीजों के लिए उपयोग किया जाता है। 10 फीसदी शिक्षा पर और बाकी 15%बचत के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में रेमिटेंस में 23 फीसदी की गिरावट
भारत में भी रेमिटेंस पर कोरोना का बुरा प्रभाव पड़ा है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस साल रेमिटेंस में 23 फीसदी कमी का अनुमान है। पिछले साल भारत में दूसरे देशों से लोगों ने करीब 6 लाख करोड़ रुपए भेजे थे। इस साल यह आंकड़ा घटकर 4.8 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। भारत की तरह ही दुनिया के दूसरे देशों के भी रेमिटेंस पर कोरोना का असर पड़ा है। साउथ एशिया में27.5 फीसदी कमी का अनुमान है। वहींपाकिस्तान में 23%, नेपाल में 19%, श्रीलंका में 14% और बांग्लादेश में करीब 22 फीसदी गिरावट का अनुमान है।
रेमिटेंस प्राप्त करने वाले देशों में भारत नंबर 1 पर
दुनियाभर में रहने वाले प्रवासी करीब 3 लाख करोड़ रुपएकमाते हैं। इसका 15 फीसदीअपने घर भेजते हैं। यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 200 मिलियन (20 करोड़) प्रवासी दूसरे देशों में काम करते हैं। वे दूसरे देशों से जो एमाउंटअपने घर भेजते हैं, उससे करीब 800 मिलियन ( 80 करोड़)लोगों को सपोर्ट मिलता है।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेश की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के ज्यादातर प्रवासी खाड़ी देशों में काम करते हैं। इनमें से 90 फीसदी लो या सेमी स्किल्ड हैं। इनमें से ज्यादातर की नौकरी कोरोना महामारी की वजह से गई है।
रेमिटेंस सोर्स वाले टॉप देश
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका, सउदी अरब, रूस, यूएई. जर्मनी, कुवैत, फ्रांस, कतर, इंग्लैंड और इटली ये 10 ऐसे देश हैं, जहां से सबसे ज्यादा रेमिटेंस दूसरे देशों में भेजे जाते हैं।
जीडीपी में महत्वपूर्ण स्थान
रेमिटेंस किसी देश की जीडीपी में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, टॉप रेमिटेंस वाले देश अपनीजीडीपी का 10 फीसदी कवर करते हैं।2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जीडीपी में रेमिटेंस का योगदान 2.9 फीसदी था। पाकिस्तान की जीडीपी 6.7 फीसदी, नेपाल की जीडीपी 28 फीसदी, बरमूडा की जीडीपी में 22 फीसदी, चीन की जीडीपी में 0.2 फीसदी योगदान रहा।
डोमेस्टिक रेमिटेंस में 80 फीसदी की कमी
भारत में काम करने वाले प्रवासी हर साल करीब 2 लाख करोड़ रुपए रेमिटेंस के तौर पर अपने घरों में भेजते हैं। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट (अप्रैल 2020) के मुताबिक, कोरोना के कारण करीब 4 करोड़प्रवासियों ने पलायन किया है। डोमेस्टिक रेमिटेंस में इस साल 80 %गिरावट का अनुमान है।
इकोनॉमी सर्वे 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 13 करोड़ प्रवासी दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं। इनमें बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासीकरीब 60 फीसदी रेमिटेंस के तौर पर घर भेजते हैं।
गरीबी, भूखमरी, अपराध और मानव तस्करी के मामले बढ़ेंगे
रेमिटेंस में कमी का असर लोगों के रोजमर्रा की जिंदगी पर तो पड़ेगा ही साथ ही इससे गरीबी, भूखमरी, अपराध, मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति बढ़ने का भी अनुमान है। क्योंकि रेमिटेंस भेजने वालों में ज्यादातर लोग गरीब वर्ग के होते हैं। नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज थिंक-टैंक के विशेषज्ञ गुरुंग का मानना है,"बिना रेमिटेंस के इन परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी और ये लोग गलत रास्तों पर चलने के लिएमजबूर हो जाएंगे।"
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