लॉकडाउन के दौरान जहां देश के कई बड़े कल-कारखाने बंद हो गए, वहीं ओडिशा की मेटल इंडस्ट्री न सिर्फ काम करती रहीं बल्कि मुनाफा भी कमाया। यहां की इंडस्ट्रियल यूनिट्स में23 लाख टन से लेकर 90 लाख टन तक सालाना मेटल (आयरन और एल्युमिनियम) का उत्पादन होता है।इनमें करीब 20 हजारलोग काम करते हैं। कोरोना के चलते लॉकडाउन हुआ तो घरेलू मांग में सुस्ती आई। एक बार लगा कि सभी काम ठप हो जाएंगे। लेकिन, ओडिशा की मेटल इंडस्ट्री में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
बस कुछ यूनिट्स ने ही उत्पादन घटाया। प्रोडक्शन से जुड़ी टीमें प्लांट में डटी रही, बाकी ने वर्क फ्रॉम होम से मोर्चा संभाला। बंदी इसलिए भी नहीं हुई कि मेटल एसेंशियल कमोडिटी में शामिल था। कुछ बड़ी ईकाइयों ने रणनीति भी बदली और मंदी के दौर में बीते साल की तुलना में ज्यादा मुनाफा भी कमाया। घरेलू मांग घटी तो निर्यात बढ़ा दिया। सरिया बनाने वाली छोटी इकाइयों को छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हुए लॉकडाउन का फायदा मिला। क्योंकि टोटल लॉकडाउन में गांवों में भी घर बनना जारी रहा और सरिया के घरेलू डिमांड गैप की भरपाई यहीं से हुई।
लॉकडाउन में भी उत्पादन में कोई फर्क नहीं पड़ा
वेदांता ग्रुप का ओडिशा में निवेश करीब 50 हजार करोड़ का है। इसमें 300 करोड़ तो सिर्फ सामुदायिक विकास से जुड़ी योजनाओं पर खर्च है। इसमें करीब 5 लाख लोगों को डायरेक्ट या इंडायरेक्ट रूप से रोजगार मिलता है।लांजीगढ़ में एक कंपनी ने60 लाख टनएल्युमिनियम का टर्नओवर हासिल करने के लिए 15,000 करोड़ का निवश किया। झारसुगुड़ा में कंपनी का कॉम्पलेक्स 250 एकड़ में है। लॉकडाउन में कंपनी की सप्लाई चेन बाधित जरूर हुई लेकिन, उत्पादन में कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि प्रोडक्शन से सीधे तौर पर जुड़े 30% मैनपावर के साथ कंपनी काम करती रही।
अनलॉकमें अब हालातधीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं। कंपनी के अल्युमिनियम व पॉवर बिजनेस के सीईओ अजय कपूर कहते हैं कि वेदांता की कोशिश है कि देश आत्मनिर्भर बने। कोरोनाकाल में सरकार के साथ मिलकर हमने झारसुगुड़ा में 110 बेड का कोविड अस्पताल बनाया और दो करोड़ रुपए के जरूरी सामान और वेंटिलेटर सरकार को मुहैया कराए। भवानी पटना के कोविड हॉस्पीटल को कोरोना से लड़ाई के जरूरी साजो-सामान से लैस किया।
इसके साथ ही आसपास के 114 गांवों में लोगों को कोरोना सेबचानेके लिएमोबाइल वैन से जागरूकताअभियान चलाया। 2 लाख से ज्यादामास्क बांटे, आसपास के इलाकों को सैनिटाइज किया। वेदांता ही नहीं, सभी इंडस्ट्रियलघरानों ने अपने-अपने तरीके से कोरोना से लड़ाई में अहम रोल प्ले किया।
मांग बढ़ने पर सप्लाई क्षमता को बढ़ाया गया
टाटा स्टील के प्रवक्ताने बताया कि लॉकडाउन का असर उत्पादन पर पड़ा क्योंकि सप्लाई चेन बाधित हो गई थी। निर्माण और ऑटोमोबाइल सेक्टर से भी डिमांड सुस्त पड़ गई थी। इस दौरान कंपनी कच्चे माल के वैल्यू एडिशन की ओर शिफ्ट कर गई। अप्रैल में 40% की क्षमता पर प्लांट चले, मई में 50% और जून में मांग बढ़ने पर हमारे प्लांट 60-70% क्षमता पर ऑपरेट करने लगे। जहां तक 25 हजार करोड़ के निवेश वाले कलिंगनगर प्लांट के क्षमता विस्तार की बात है, इस बारे में आने वाले दिनों में निर्णय लिया जाएगा।
यहां कंपनी पैलेट और कोल्ड रोलिंग मिल पर फोकस कर रही है। प्लांट में 21 हजार लोग काम करते हैं। इनमें तकरीबन 60% रेगुलरऔर 81% अस्थाई कर्मी ओडिशा के ही हैं। कंपनी ने व्यापक पैमाने पर लोगों को कोरोना के दौरान सपोर्ट किया और 'कम्बैट-कोविड 19' जैसा 10 सूत्री प्रोग्राम लॉन्च किया।
21 हजार लोग नौकरी करते हैं यहां
जिंदल ग्रुप के ओडिशा में अंगुल और बड़बिल में दो बड़े प्लांट हैं। बड़बिल में पैलेट का उत्पादन होता है। अंगुल स्टील प्लांट 3500 एकड़ में है और फिलहाल इसकी उत्पादन क्षमता 60 लाख टन प्रति वर्ष है। ओडिशा केसबसे बडे़ स्टील प्लांट में देश का सबसे बड़ा ब्लास्ट फर्नेस है और सबसे चौड़ी (5 मीटर) स्टील की चादर यहीं तैयार होती है। बड़बिल में 90 लाख टन हर सालपैलेट कॉम्प्लेक्स है। ओडिशा में 45 हजार करोड़ से ज्यादाका कंपनीनिवेश और 21000 लोग यहां रोजगार पाते हैं।
कंपनी के प्रबंधन निदेशक वीआर शर्मा के मुताबिकलॉकडाउन पीरियड में दोनों प्लांट ने बीते साल की तुलना में अप्रैल-जून में 8% ग्रोथ दर्ज की। कंपनी ने प्रोडक्शन में कटौती नहीं की। घरेलू बाजार में मंदी को देखते हुए रणनीति बदली और विदेशी बाजार पर फोकस शिफ्ट कर दिया। जिंदल ने बीते सालकी तुलना में सेल्स के मोर्चे पर 12%और स्टील उत्पादन में 8% (पिग आयरन) की ग्रोथ दर्ज की।
बिक्री में 58% निर्यात शामिल था, परिणाम हुआ कि बीते साल की तुलना में सेल्स 7% बढ़ गई। इस दौरान बड़बिल का पैलेट प्लांट 90% की उत्पादन क्षमता पर चलता रहा। अंगुल स्टील प्लांट में होने वाले उत्पादन का 60-70% निर्यात हुआ। बीते 100 दिनों में कंपनी ने 10 लाख टन स्टील विदेशी बाजार में भेजा। शर्मा कहते हैं, यह रेलवे और पोर्ट प्रबंधन से मिले सपोर्ट की वजह से संभव हो पाया।
चीन को 60 हजार टन स्टील स्लैब की आपूर्ति में जुटा आरएसपी
राउरकेला केआजाद भारतइंटिग्रेटेड स्टील प्लांट (आरएसपी ) में लॉकडाउन के दौरान50-60% क्षमता पर काम चला। अनलॉकमें गाड़ी पटरी पर लौट रही है। आर्डर की डिलिवरी शुरू हो चुकी है। चीन से मिले 60 हजार टन स्टील स्लैब की डिमांड को पूरा किया जा रहा है। वियतनाम से प्लेट का ऑर्डर था, वहां भी आपूर्ति की जा रही है। लॉकडाउन में प्लेट मील, हॉट स्ट्रिप मील, कोल्ड रोलिंग मील, पाइप प्लांट, सिलिकॉन स्टील मील बंद रहीं।
जीएम (पीआर) रमेंद्र कुमार ने कहा किजो यूनिटें बंद रहीं, लॉकडाउन में समय का उपयोग उनके मेंटेनेंस के लिए किया गया। प्लांट के ब्लास्ट फर्नेस (लोहा गलाने वाली भट्ठी) के नाम हैं-पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा और दुर्गा। देवियों के नाम वाले इन फर्नेस से तरल लाल लोहा निकलता है। जो पानी और हवा के संपर्क में आते ही मोटी क्यूबिकल सिल्ली में ढल जाता है। प्लांट के फर्नेस में से पुरानी हो चुकी लक्ष्मी और सरस्वती को डिस्मैंटल किया जा रहा है।
अन्नपूर्णा का मेंटेनेंस चल रहा है। पार्वती छोटी क्षमता का फर्नेस है, कोरोनाकाल में इसे बंद किया गया। दुर्गा सबसे बड़ा फर्नेस है, बंदी के दौरान यह चलता रहा। प्लांट की क्षमता हर दिन8000 टन हॉट मेटल तैयार करने की है। लेकिन, इन दिनों 4000 टन ही उत्पादन हो रहा।राउरकेला स्टील प्लांट की मंथली प्रोडक्शन यूनिट3.7 लाख और सालाना 45 लाख टनहै।
अनलॉकमें उन्हीं इकाइयों को चालू किया जा रहा है, जिनके ऑर्डर मिल रहे हैं। वर्क फ्रॉम होम लगभग खत्म हो चुका है। प्लांट में 14,000 कर्मचारी हैं और करीब 10,000 कॉन्ट्रैक्ट लेबर हैं। वे कारिगरनहीं लौटे हैं जो राज्य में या राज्य के बाहर कहीं न कहीं फंसे हुए है। जिनको दूसरी गंभीर बीमारी है, प्रबंधन ने एहतियातन उन्हें घर पर ही रोक रखा है। न लौटने वालों में कॉन्ट्रैक्ट लेबर अधिक हैं। प्लांट की नार्मल लाइफ करीब-करीब लौट आई है।
दूसरे राज्यों में यूनिटों की बंदी का फायदा में स्पंज आयरन और सरिया बनाने वाली यूनिटों को मिला
लॉकडाउन में ओडिशा में स्पंज आयरन और सरिया बनाने वाली यूनिटें फायदे में रहीं। इसके पीछ वजह यह रही कि पास के दूसरे राज्यों मेंप्रोडक्शन बंद था और ओडिशा में चालू था। स्पंज आयरन एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश डालमिया के मुताबिक दूसरे राज्यों की तरह राउरकेला की स्टील इण्डस्ट्री प्रभावित नहीं हुई। हमारी लघु,मध्यम और सूक्ष्म ईकाइयों में भी उत्पादन जारी रहा। सुंदरगढ़ में 250 टन प्रति दिन उत्पादन क्षमता की स्पंज आयरन की 40 यूनिट्स हैं।
इनमें बनने वाले बिलेट से ही ज्यादातर सरिया बनता है। यहां की यूनिट्स 60% प्रोडक्शन कैपेसिटी पर चलीं। हालांकि इस दौरान दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा।कर्मचारी आने को तैयार नहीं थे। प्लांट, सरकार की कड़ी गाइडलाइन के अनुरूप चलाना था। प्रोडक्शन गिरा जरूर लेकिन गावोंमें कंस्ट्रक्शन वर्क नहीं रुका। इसलिएस्टील, खासकर सरिया की डिमांड बनी रही। पड़ोसी राज्यों में प्रोडक्शन बंद था, लिहाजा हमारी यूनिट्सका प्रोडक्शन निकल गया। 10% अधिक दाम पर।
राउरकेला में 15 दिन इंडस्ट्री बंद रही। 23 मई के बाद सभी खुल गईं। डालमिया बताते हैं कि अनलॉक टाइम में छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड व अन्य राज्यों में भी ईकाइयां चालू हो गईं हैं। इसलिएव्यापार में थोड़ा असर होगा।
हम व्यापारी हताश हैं, लेकिन हारे नहीं
डालमिया सीमेंट के कार्यकारी निदेशक सुनील गुप्ता बताते हैं कि सीमेंट बाजार अप्रैल से लेकर आधे मई तक 'जीरो' रहा। लॉकडाउन 3.0 में थोड़ी सांस चली, उम्मीद है कि जून-जुलाई में सब ठीक रहेगा। राउरकेला में महिन्द्रा-महिन्द्रा, होंडा और किया मोटर्स के बड़े डीलर दिलीप अग्रवाल के मुताबिक पर्सनल ह्वीकल का मार्केट 50% डाउन है। कमर्शियल गाड़ियों की तो कंपनी ही डिमांड पूरी नहीं कर पा रही। पश्चिमी ओडिशा में 200 गाड़ियों की डिमांड है। लेकिन, हम 50 से अधिक सप्लाई ही नहीं कर पा रहे हैं।
राधिका होटल के मालिक खिरोज साहू बताते हैं कि हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री 95% लॉस में चली गई है। 30% कैपिसिटी पर चलाने की इजाजत अब मिली है। इससे तो ऑपरेशनल कॉस्ट भी नहीं निकल रहा। शादी-ब्याह का सीजन निकल गया। 50 आदमी की लिमिट से पोसाई नहीं होने वाली, ऊपर से सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ा नियमहै। राउरकेला चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष प्रवीण गर्ग जो खुद पूर्वी क्षेत्र में डेयरी प्रोडक्ट्स के बड़े कारोबारी भी हैं। कहते है कि हम व्यापारी हताश हैं, लेकिन हारे नहीं हैं। उम्मीद है धीरे-धीरे सब नार्मल हो जाएगा लेकिन लंबा वक्त लगेगा।
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