आज जन्माष्टमी है। झारखंड के पश्चिम में यूपी की सीमा के पास गढ़वा जिले के नगर ऊंटारी में बंशीधर मंदिर हैं। इस मंदिर में विराजित भगवान कृष्ण की प्रतिमा दुनिया की सबसे कीमती कृष्ण प्रतिमा मानी जाती है। ये मूर्ति 1280 किलो सोने से बनी है। 1280 किलो सोने की कीमत आज के समय में 716 करोड़ से भी ज्यादा आंकी जाती है। हालांकि, इस प्रतिमा की एंटिक वैल्यू 2000 करोड़ से भी ज्यादा की है, जो 2014 में आंकी गई थी।
सामान्य तौर पर यह 4-5 फीट की प्रतिमा ही नजर आती है। लेकिन, इसका एक बड़ा भाग अभी भी धरती के अंदर ही है। प्रतिमा शेषनाग पर विराजित कृष्ण की है, शेषनाग वाला हिस्सा जमीन के अंदर है। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि अभी तक इस प्रतिमा को लेकर सही समय की गणना नहीं हो सकी है।
इसकी कीमत को लेकर भी मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि भगवान की कीमत नहीं लगाई जा सकती। सन् 2018 में सरकार ने श्री बंशीधर जी की मंदिर की लोकप्रियता को देखते हुए शहर का नाम नगर ऊंटारी से बदलकर श्री बंशीधर नगर कर दिया है।
कृष्ण के साथ राधा की 120 किलो अष्टधातु की प्रतिमा
1280 किलो सोने की कृष्ण प्रतिमा के साथ राधा की भी एक प्रतिमा है। ये मूर्ति अष्ट धातु की है और इसका वजन करीब 120 किलो है। इस प्रतिमा की भी आज के दौर में एंटिक वैल्यू करोड़ों में आंकी जाती है।
कोरोना के चलते मार्च से ही बंद है मंदिर
झारखंड में कोरोना के कहर को देखते हुए सारे मंदिर 15 मार्च के बाद से ही बंद हैं। बंशीधर मंदिर भी तभी से बंद है। हालांकि, इसमें पूजा-पाठ निरंतर जारी है। हर साल जन्माष्टमी पर ये उत्सव बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है और हजारों श्रीकृष्ण भक्त यहां पहुंचते हैं, लेकिन इस साल कोरोना वायरस की वजह से बहुत ही कम भक्त यहां पहुंचे हैं। एक अनुमान के मुताबिक एक साल में यहां लगभग 10 लाख लोग दर्शन करने पहुंचते हैं।
औरंगजेब की बेटी ने मुगलों के खजाने से बचाई थी ये मूर्ति
श्री बंशीधर मंदिर ट्रस्ट के सलाहकार धीरेंद्र कुमार चौबे के मुताबिक मुगल सम्राट औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा श्रीकृष्ण की भक्त थीं। उस समय मुगलों का खजाना कलकत्ता से दिल्ली ले जाया जाता था। नगर ऊंटारी क्षेत्र में शिवाजी के सरदार रुद्र शाह और बहियार शाह रहा करते थे।
यहां से मुगलों का जो भी खजाना जाता था, उसे शिवाजी के सरदार लूट लिया करते थे। मुगलों ने बंशीधर भगवान की मूर्ति किसी मंदिर से लूटी थी। मान्यता है कि श्रीकृष्ण की जैबुन्निसा ने ये मूर्ति नगर ऊंटारी में रहने वाले शिवाजी के सरदारों तक पहुंचाई थी।
शिवाजी के सरदारों मुगलों से बचाने के लिए मूर्ति नगर ऊंटारी से 22 किमी दूर पश्चिम में एक पहाड़ी में छिपा दी थी। ये मूर्ति हजारों साल पुरानी है, क्योंकि मूर्ति के शेषनाग पर कुछ लिखा हुआ है, जिसे अब तक कोई समझ नहीं सका है, ये क्या लिखा है और किस भाषा में लिखा है। मूर्ति दक्षिण स्थापत्य शैली की है।
राजमाता को सपने दिए थे दर्शन
यहां के राजघराने के युवराज और मंदिर समिति के प्रधान ट्रस्टी राजेश प्रताप देव के अनुसार राजा भवानी सिंह देव की मृत्यु के बाद उनकी रानी शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थीं। उन्होंने 14 अगस्त 1827 की जन्माष्टमी पर व्रत किया था। उस समय राजमाता को सपने में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ।
श्रीकृष्ण ने रानी से वर मांगने को कहा तो रानी ने भगवान से सदैव कृपा बनाए रखने का वर मांगा। तब भगवान ने रानी से कनहर नदी के किनारे यूपी के महुरिया के निकट शिव पहाड़ी पर अपनी प्रतिमा के गड़े होने की जानकारी दी। इसके बाद वहां खुदाई की तो यहां 10 फीट ऊंची सोने की श्रीकृष्ण की प्रतिमा प्राप्त हुई थी।
इसके बाद वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा मंगाकर श्रीकृष्ण के साथ 21 जनवरी 1828 को स्थापित की गई। खुदाई में मिली बंशी-वादन करती हुई प्रतिमा का वजन 32 मन यानी 1280 किलो है।
साढ़े तीन एकड़ में बना है मंदिर
धीरेंद्र कुमार चौबे ने बताया कि मंदिर में स्थापित प्रतिमा स्वयंभू है। इस तीर्थ को मथुरा और वृंदावन के समान ही माना जाता है। इस प्रतिमा में श्रीकृष्ण शेषनाग के ऊपर कमल के फूल पर बंशी-वादन नृत्य करते हुए विराजित हैं। शेषनाग वाला हिस्सा जमीन में गढ़ा हुआ है। पूरा मंदिर करीब साढ़े तीन एकड़ में बना हुआ है। मंदिर की ऊंचाई करीब 50 फीट है।
सुरक्षा के लिए सरकारी गार्ड्स
झारखंड सरकार की ओर मंदिर में सुरक्षा के लिए गार्ड्स तैनात किए गए हैं। यूपी एटीएस को ऐसी सूचना मिली थी बंशीधर मंदिर हमला हो सकता है। आतंकी मंदिर को नुकसान पहुंचा सकते है। इसके बाद सरकार ने यहां सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की है। मंदिर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। 24 घंटे यहां गार्ड्स तैनात रहते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के लिए यहां अतिरिक्त मजिस्ट्रेट और पुलिस बल की तैनात किया गया है।
त्रिदेवों का स्वरूप है ये मूर्ति
भगवान श्रीकृष्ण की इस मूर्ति में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का स्वरूप है। श्री बंशीधरजी, शिवजी की तरह जटाधारी हैं, विष्णुजी की तरह शेषनाग की शैय्या पर कमल के पुष्प पर विराजित हैं। कमल के पुष्प पर ब्रह्माजी विराजते हैं। इस तरह इस मूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों के दर्शन किए जा सकते हैं।
वंश परंपरा के अनुसार नियुक्त होते हैं पुजारी
इस मंदिर के प्रधान पुजारी पं. ब्रज किशोर तिवारी हैं। मंदिर में पुजारी वंश परंपरा से ही तय होते हैं। इन्हीं के पूर्वज यहां पूजा किया करते थे। ये इनकी छठी-सातवीं पीढ़ी है। मंदिर में मंत्रोच्चार करने वाले प्रधान आचार्य पं. सत्यनारायण मिश्रा है।
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