सड़क के बीचो- बीच एक पुलिस चेक पोस्ट है। पोस्ट पर उत्तर प्रदेश पुलिस के कुछ जवान और एक दारोगा जी मुंह पर रूमाल बांधे बैठे हैं। पोस्ट की बाहरी दीवार पर लिखा है- उच्च सुरक्षा जोन, श्रीकृष्ण-जन्मस्थान। यहां से किसी भी गाड़ी को अंदर जाने देने की अनुमति नहीं है। करीब 7 सौ मीटर की दूरी पर स्थित श्रीकृष्ण-जन्मस्थान मंदिर के मुख्य गेट तक पैदल ही जाया जा सकता है।
मंदिर के मुख्य गेट तक जाने वाली सड़क मथुरा शहर की बाकी सड़कों के मुकाबले चौड़ी है। सड़क के दोनों तरफ खाने-पीने, साज-श्रृंगार और दूसरी छोटी-छोटी दुकानें हैं। सड़क बिल्कुल खाली है। इक्का-दुक्का लोग आ जा रहे हैं। पुलिस चेक पोस्ट से मंदिर के मुख्य गेट के बीच क़रीब 100 दुकानें हैं। दुकानें खुली तो हैं लेकिन उनका खुलना न खुलना बराबर जान पड़ता है। मथुरा के प्रसिद्ध पेड़े की एक दुकान तो बंद ही है। काउंटर टेढ़ा हो गया है। मकड़ी ने जाल बना लिया है। दुकान देखकर ही ये समझा जा सकता है कि पिछले 3-4 महीनों से बंद है।
मथुरा की सड़कें जो हमेशा व्यस्त रहती थीं वो जन्माष्टमी के मौके पर वीरान पड़ी हैं। शहर के स्टेशन रोड और नए बस अड्डे वाली सड़क पर आज पहले की तुलना में ज़्यादा चहल-पहल है। मंदिर के मुख्य गेट पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और स्थानीय मीडिया के कुछ पत्रकार मोबाइल से वीडियो बनाकर बता रहे हैं कि कोरोना की वजह से इस बार श्रीकृष्ण-जन्मस्थान मंदिर में भक्तों को प्रवेश की इजाजत नहीं है।
असल में कोरोना की वजह से इस बार मथुरा और वृंदावन के हर मंदिर को 10 अगस्त से लेकर 13 अगस्त तक बाहर से आए लोगों के लिए बंद कर दिया गया है। इस फैसले के बारे में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा कहते हैं, ‘क्या करें? कोई रास्ता ही नहीं था। ये मथुरा के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा में भक्तों के प्रवेश पर पाबंदी है। ये पांच हज़ार साल के इतिहास में पहली बार हो रहा है या यों कहें की करना पड़ा।’
मंदिर प्रशासन का दावा है कि भक्तों को निराश नहीं होना पड़ेगा। उनके घर तक मथुरा में होने वाला जन्मोत्सव पहुंचेगा। वो वहीं दर्शन कर लें लेकिन इस दावे और इस व्यवस्था की वजह से मंदिर के आसपास के सभी दुकानदार दुखी हैं। परेशान हैं और लाचार भी हैं।
मंदिर के मुख्य गेट से लगी हुई प्रमोद चौधरी की साज-सज्जा की दुकान है। उनकी दुकान में वो सब कुछ है जो बाहर से यहां आने वाले किसी यात्री का ध्यान खींच सकती है। मथुरा में पूजे जाने वाले लड्डू-गोपाल की मूर्ति से लेकर धूप-अगरबत्ती तक। प्रमोद का मानना है कि ऐसी जन्माष्टमी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। वो कहते हैं, ‘मंदिर बंद है। बाहर से कोई आ नहीं सकता। कोई आ नहीं रहा।
आप देख ही रहे हैं कि सड़कें खाली पड़ी हैं। अगर यही पिछले साल आप इस वक्त आते तो मैं आपसे बात भी नहीं कर पाता। आप यहां इस तरह से खड़े भी नहीं रह पाते। भीड़ के धक्के से यहां से वहां पहुंच जाते।’ इस बातचीत के दौरान प्रमोद कई बार अपनी दुकान से बाहर देखते हैं। उनकी आंखें ग्राहक को तलाश रही हैं, लेकिन अफसोस कि पिछले दस मिनट में एक भी ग्राहक नहीं आया।
प्रमोद की दुकान से बाहर निकलते ही, सड़क की दूसरी तरफ़। मंदिर के मुख्य गेट के ठीक सामने। एक चाय की दुकान है। इस दुकान के मालिक बबलू शर्मा हैं। पिछले 8 साल से वो दुकान पर बैठ रहे हैं। इससे पहले उनके पिता जी बैठते थे। इनकी दुकान यहां पिछले 48 सालों से है और वे केवल चाय ही बेचते हैं। बबलू शर्मा की ये दुकान किराए पर है। हर महीने पांच हज़ार रुपए किराया जाता है। पिछले चार महीनों से उन्होंने किराया नहीं दिया है। उम्मीद थी कि जन्माष्टमी के मौके पर कमाई होगी तो दे सकेंगे अब वो आस भी खत्म हो गई।
बबलू शर्मा कहते हैं कि चालीस साल तो मेरी उम्र ही हो गई। आज से पहले कभी ऐसा ना देखा। यहां तो सालभर भीड़ रहती है। खड़ा होना मुश्किल हो जाता था और अभी देखिए, कैसी वीरानी छाई है। चाय बेचकर हम हर दिन दो से तीन हज़ार रुपए अपने बच्चों के लिए ले जाते थे। अब हालात ये है कि किराया भी नहीं निकल रहा है।’आप देश के किसी हिस्से में चले जाएं। चाय की दुकान पर अकेले नहीं रहेंगे। चाय की दुकान पर चौकड़ी होती ही है। बतकही चलती ही है। यहां भी वैसा ही माहौल है। चार-पांच स्थानीय दुकानदार और हलवाई जमा हैं।
इन्हीं में से एक हैं बौना हलवाई। इनके परिवार में कुल 11 पुरुष मेंबर हैं। पिछले साल इस जन्माष्टमी के मौके पर सभी व्यस्त थे। इन्हीं पांच-सात दिनों में जो कमाई होती थी उसी से सालभर परिवार का काम चलता था। बौना बताते हैं, ‘यहां सालभर भंडारे चलते रहते हैं। बाहर से भक्त आते हैं भंडारे करवाने। हमारा पूरा परिवार खाना-प्रसाद बनाने के इसी काम में है। हम सब पिछले चार महीनों से घर बैठे हैं और मेले के समय भी काम नहीं है, तो तुम से बतिया रहे हैं।’
बौना हलवाई के इतना कहते ही आसपास खड़े कई लोग ठहाका लगाते हैं, उनकी बातों से तनाव का जो एक माहौल बना था वो कुछ देर के लिए ही सही लेकिन खत्म हो गया है। हालांकि असली सवाल अभी भी जस का तस बना हुआ है। जिस सड़क पर हर साल जन्माष्टमी के मौके पर 3-4 करोड़ रु का व्यापार होता था। इसी कमाई से जो सालभर अपना काम चलाते थे वो कैसे और कब तक इस स्थिति का सामना कर पाएंगे।
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