शनिवार, 15 अगस्त 2020

राम जन्मभूमि में जहां मोदी ने पारिजात लगाया, इसी जगह 1857 के विद्रोह में इमली के पेड़ पर अंग्रेजों ने रामचरण और अली को फांसी पर लटका दिया था

राम मंदिर भूमि पूजन के लिए 5 अगस्त को अयोध्या पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर जिस हनुमान गढ़ी पर मुकुट सजाया गया, किलेनुमा यही गढ़ी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की धुरी थी। अयोध्या से पचीस कोस यानी करीब 75 किमी की दूरी पर सुरहुरपुर गांव है, यह गांव पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद मंगल पाण्डेय की जन्मस्थली भी है। शायद इसीलिए तब यहां के लोगों में बगावत का जोश और आजादी की चाह कुछ ज्यादा ही थी।

इसी हनुमान गढ़ी के महंत बाबा रामचरण दास ने अपने मुस्लिम दोस्त अमीर अली के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नेतृत्व किया था। बाबा रामचरण दास ने श्रीराम जन्मभूमि जमीन को मुसलमान भाइयों की आम सहमति से हिंदुओं को सौंप देने की सौगंध बादशाही मस्जिद में खाई थी और समूचे अवध के मुसलमानों को भी ये कसम खिलाई थी।

यहीं श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर स्थित जिस जगह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त को पारिजात का पौधा लगाया है, ठीक उसी जगह पर 85 साल पहले तक एक इमली का पेड़ था, जिस पर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बाबा रामचरण दास और अमीर अली की जोड़ी को अंग्रेजों ने फंसी के फंदे पर लटका दिया था।

इसके पीछे वजह यह थी कि रामचरण दास और अमीर अली श्रीराम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को आम सहमति से हल करने के करीब थे। इसके अलावा वे आजादी की लड़ाई में भी शरीक थे।


कुबैर टीले पर स्थित जिस इमली के पेड़ पर दोनों वीरों को लटकाया गया था, अयोध्या और आसपास के लोग बहुत दिनों तक उस पेड़ की पूजा करते रहे, लेकिन 28 जनवरी 1935 को फैजाबाद के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जेपी निकल्सन ने उस इमली के पेड़ को जड़ से कटवा दिया। इसके साथ ही अयोध्या के वीर शहीदों की शांति स्मृति को अंग्रेजों ने मिटा डाला। इस बात का जिक्र साहित्यकार अमृतलाल नागर ने अपनी किताब "गदर के फूल" में जिक्र किया है।

अमृतलाल नगर ने अपनी किताब में लिखा है कि चौबीस तोपों वाली इस किलेनुमा गढ़ी के महंत रामचरण दास की अगुवाई में अवध की सरजमीं पर लड़ा गया 1857 का स्वतंत्रता संग्राम यदि सफल हो गया होता तो अवध के मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद का ढांचा अपने हाथों ढहाकर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए रामकोट मुहल्ले की समस्त विवादित जमीन हिंदुओं को सौंप दी होती। नागर ने लिखा है कि 1857 का नायक फौज का सिपाही था और अवध के हाथ में गदर की कमान थी।


वरिष्ठ पत्रकार डॉ. उपेंद्र बताते हैं कि आज के ही दिन 32 साल पहले (15 अगस्त, 1988 ) जाने माने पुरातत्ववेत्ता और साहित्यकार अमृतलाल नागर ने इसी हनुमानगढ़ी के परिसर में मुझे युनाइटेड प्राविंस आफ अवध एंड आगरा (यूपी) के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की रोमांचकारी कहानी स्वयं सुनाई थी।

उन्होंने यह भी बताया था कि प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पाण्डेय अवध क्षेत्र के सुरहुरपुर गांव के रहने वाले थे। बाद में अमृतलाल नागर के उन सभी दावों को सप्रमाण उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना और प्रकाशन विभाग ने "गदर के फूल" शीर्षक से किताब में प्रकाशित भी किया। इस किताब को सन सत्तावन क्रांति के 100 साल होने मौके पर 1957 में प्रकाशित किया गया था।

डॉ. उपेंद्र कहते हैं कि अमृतलाल जी ने ये भी बताया था कि शहीद मंगल पाण्डेय के भतीजे बुझावन पाण्डेय भी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती दौर में शामिल थे। बुझावन पाण्डेय भी श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति संग्राम हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के बलबूते सुलझा लेने वाले सेनानियों में शामिल थे।

बैरकपुर में मंगल पाण्डेय ने विद्रोह की जो चिंगारी जलाई, उसकी सभी योजनाएं अयोध्या (फैजाबाद) में बनाई गई थीं, कानपुर में उन्हें विकसित किया गया और बैरकपुर में उन्हें संचालित किया गया। इस विद्रोह की बिगुल फूंकने की योजना भी अयोध्या से ही थी, लेकिन संयोग-बस इसका सूत्रपात मेरठ से हो गया।

अमृतलाल नागर ने अपने शोध के जरिए यह भी सिद्ध किया है कि मंगल पाण्डेय अयोध्या के अकबरपुर (अब अम्बेडकर नगर जिला मुख्यालय) में ही फौज में भर्ती हुए थे। कर्नल मार्टिन ने फैजाबाद के सैनिक अधिकारी कर्नल हंट को रिपोर्ट भेजी कि फैजाबाद में बागियों का अड्डा कायम हो गया है।

'गदर के फूल' किताब में अमृतलाल नागर ने इस बात का भी जिक्र किया है कि 26 जून 1857 को अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद) की सबसे प्रतिष्ठित व मुख्य नवाबी मुस्लिम इबादतगाह बादशाही मस्जिद में एक बड़ी सभा बुलाई गई थी। इस सभा को मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के हकीकी दामाद ने बुलाई थी।

इसी मस्ंजिदे मजलिस में मौलाना अमीर अली ने मुसलमानों को ऐलानिया तौर पर बाबर की बनवाई मस्जिद पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर बनवाने का मुस्लिम मजलिस से हामीनामा करा लिया था।

किताब में इस बात का भी जिक्र है कि बाबा रामचरण दास और अमीर अली ने अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि को हिन्दुओं को वापस दिलाने के लिए मुसलमानों को राजी कर लिया था, जिसके बाद अंग्रेजों में बुरी तरह घबराहट फैल गई थी। विद्रोहियों को सफल होते देखकर अंग्रेजों के हौसले परस्त हो रहे थे। अंग्रेजों से अधिक वे घबरा गए थे, जो देश के गद्दार थे, जो अंग्रेजी सेना का साथ दे रहे थे।


किताब में जिक्र है कि सभा में उत्तेजित भीड़ को शांत करते हुए अमीर अली ने कहा, "भाइयों, बहादुर हिंदू हमारी सल्तनत को हिंद में मजबूत करने के लिए लड़ रहे हैं। इनके दिल पर काबू पाने और इनके अहसानों का बोझ अपने सर से उतार देने के लिए हमारा फर्ज है कि अयोध्या की श्री राम जन्मभूमि, जिसे हम बाबरी मस्जिद कहते हैं, जो हकीकत में रामचन्द्र जी की जन्मभूमि है, इनके मन्दिर को जमींदोज करके शहंशाहे हिंद बादशाह बाबर ने मस्जिद बनवाई थी, इसे हिन्दुओं को वापस दे दें। इससे हिन्दू-मुस्लिम इत्तिहाद की जड़ इतनी मजबूत हो जाएगी, जिसे अंग्रेजों के बाप भी नहीं उखाड़ सकेंगे।"


डॉ. उपेंद्र बताते हैं कि नागर फिर 1989 में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर शिलान्यास आंदोलन के दौरान भी रामकोट और हनुमान गढ़ी पहुंचे थे। तब मैं यहां कवरेज के लिए मौजूद था। इस दौरान उन्होंने मुझसे श्रीरामजन्म भूमि आंदोलन और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के आपसी कनेक्शन को विस्तार से समझाया था।

अमृतलाल जी का गला रुंध गया था, जब वे बयां कर रहे थे, ''दुष्ट अंग्रेज राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझने नहीं देना चाहते थे, इसीलिए पहले उन्होंने रामचरण दास और अमीर अली को फांसी पर लटका दिया, फिर फांसी की गवाह इमली के पेड़ को काट डाला।''

दरअसल, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 100 साल होने के मौके पर 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े स्थलों और जीवित व्यक्तियों से जुड़े इतिहास को संजोने के लिए एक पुस्तक छापने का फैसला किया था। यह जिम्मेदारी मिली साहित्यकार अमृतलाल नागर को, उन्होंने जगह-जगह घूमकर साक्ष्य और तथ्य जुटाए और बाद में रिपोर्ताज शैली में ''गदर के फूल'' किताब लिखी।



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In the Ram Janmabhoomi, where Modi planted Parijat, in the revolt of 1857, the British hanged Ramcharan and Ali on the tamarind tree.


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