शनिवार, 15 अगस्त 2020

1947 में 10 ग्राम सोने की कीमत 89 रुपए से भी कम थी, आज इतने में दो लीटर दूध भी नहीं आता; आम आदमी की कमाई 542 गुना बढ़ी

मेरे पास 27 पैसे हैं। मैं इनका क्या करूं? आप कहेंगे ये तो कई साल पहले बंद हो चुके हैं। आप सही कह रहे हैं। इन पैसों की आज भले कोई कीमत नहीं हो लेकिन, आजादी वाले दिन यानी, 15 अगस्त 1947 को मैं इतने पैसे से एक लीटर पेट्रोल खरीद सकता था। आज जितने रुपए में एक लीटर पेट्रोल मिलता है। उतने में उस वक्त मैं 10 ग्राम सोना खरीद सकता था। और इसी एक लीटर पेट्रोल के पैसे से मैं दिल्ली से मुंबई के बीच ट्रेन से चार बार यात्रा कर सकता था।

आज आप एक दिन में 249 रुपए या उससे ज्यादा भी खर्च कर देते हैं। उस वक्त देश के एक नागरिक की सालाना कमाई इतनी ही थी। पिछले 73 साल में देश में बहुत कुछ बदला है। आजादी के वक्त देश में क्या स्थिति थी? आज क्या है? जानें इस रिपोर्ट में...

1. 73 साल में कितनी बढ़ गई देश की आबादी?
1947 में जब हमें अंग्रेजों से आजादी मिली, तो हमारी आबादी पता है कितनी थी? सिर्फ 34 करोड़। आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी। उस समय हमारी आबादी 34 करोड़ से बढ़कर 36 करोड़ से कुछ ज्यादा हो गई। आजादी के समय हमारा लिटरेसी रेट सिर्फ 12% था, वो भी 1951 तक बढ़कर 18% से ज्यादा हो गया।

आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी। उस समय तक हमारी आबादी 121 करोड़ को पार गई। लिटरेसी रेट भी बढ़कर 74% आ गया। यानी आजादी के समय हमारे देश में सिर्फ 12% लोग ही पढ़-लिख पाते थे।

इन सबके अलावा आधार जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई भी समय-समय पर आबादी के आंकड़े जारी करती रहती है। इसके ताजा आंकड़े मई 2020 तक के हैं। यूआईडीएआई का डेटा बताता है कि मई 2020 तक देश की आबादी 137 करोड़ से ज्यादा हो गई है। अब अगर हिसाब लगाएं तो पता चलता है कि आजादी के बाद से अब तक हमारी आबादी चार गुनी बढ़ गई है।

अब एक अनुमान ये भी है कि 2050 तक हम दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों की लिस्ट में पहले नंबर पर आ जाएंगे। अभी चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं।

2. 73 साल में कितनी बढ़ी देश की जीडीपी?
किसी भी देश की आर्थिक हालत कैसी है? इसको जानने का सबसे जरूरी पैमाना है जीडीपी। लोग मानते हैं कि जब अंग्रेज भारत आए थे, तब दुनिया की जीडीपी में हमारा हिस्सा 22% से भी ज्यादा था। यानी, उस समय दुनिया की जितनी जीडीपी थी, उसमें से 22% से ज्यादा जीडीपी तो अकेले हमारे देश की ही थी।

जबकि, 18वीं सदी में भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे ज्यादा थी, लेकिन धीरे-धीरे हमारी जीडीपी गिरते चली गई। जब अंग्रेज हमें छोड़कर गए, तो हमारी जीडीपी 2.70 लाख करोड़ रुपए थी। उस वक्त दुनिया की जीडीपी में हमारा हिस्सा सिर्फ 3% ही रह गया था।

लेकिन, आजादी के बाद से अब तक हमारी जीडीपी 55 गुना से ज्यादा बढ़ी है। 2019-20 में हमारी जीडीपी 147.79 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है। आज हम दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गए हैं और दुनिया की जीडीपी में हमारा हिस्सा 4% से ज्यादा है।

3. 73 साल में आम आदमी की कमाई कितनी बढ़ी?
आज 249 रुपए में क्या होता है? एक अच्छे प्लान वाला रिचार्ज भी नहीं आता। कुछ लोग तो 249 रुपए से ज्यादा तो दिनभर में ही खर्च कर देते हैं। लेकिन, जब हम आजाद हुए थे, तब हर आदमी की आमदनी सालाना 249 रुपए ही थी।

लेकिन, अच्छी बात ये है कि आजादी से लेकर अब तक आम आदमी की सालाना आमदनी 542 गुना बढ़ गई है। अब देश का हर आदमी सालाना 1 लाख 35 हजार 50 रुपए कमा लेता है। यानी, हर महीने 11 हजार 254 रुपए।

4. 73 साल में देश से कितनी गरीबी मिटी?
अब जाहिर है कि आमदनी बढ़ी है तो गरीबी भी घटी ही होगी। फिर भी आंकड़ों से समझते हैं कि आजादी से अब तक कितनी गरीबी घट चुकी है। जब हम आजाद हुए, तो हमारे देश की 80% आबादी या यूं कहें कि 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आते थे।

1956 के बाद से गरीबी की संख्या का हिसाब-किताब रखा जाने लगा। बीएस मिन्हास ने योजना आयोग एक रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने अनुमान लगाया था कि 1956-57 में देश की 65% आबादी या फिर 21.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे।

सरकार ने भी गरीबी रेखा कि एक परिभाषा तय कर रखी है, जो बताती है कि कौन गरीबी रेखा से नीचे आएगा और कौन नहीं? तो इस परिभाषा में तय ये हुआ है कि शहर में रहने वाला अगर कोई व्यक्ति हर महीने 1000 रुपए से ज्यादा कमा रहा है, तो वो गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा। इसी तरह अगर गांव में रहने वाला कोई हर महीने 816 रुपए से ज्यादा की कमाई कर रहा है, तो वो भी गरीबी रेखा से नीचे नहीं आएगा।

अब आंकड़े भी देख लेते हैं। गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 तक के ही मौजूद हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, देश की 26.9 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। यानी, उस समय तक देश की 22% आबादी ही गरीबी रेखा के नीचे आती थी। इस हिसाब से आजादी से लेकर अब तक देश की 58% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आ चुकी है।

5. 73 साल में सोने की कीमत कितनी बढ़ी?
ये तो सबको ही पता है कि हमारे देश को पहले सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसका कारण ये था कि हमारे यहां हर घर में सोना होता ही था। आज भी दुनिया के कई देशों की जीडीपी से ज्यादा सोना हमारे घरों और मंदिरों में रखा हुआ है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के पास जो डेटा है, उसके मुताबिक हमारे देश में घरों और मंदिरों में 25 हजार टन सोना है, जिसकी कीमत 75 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है।

हमारे यहां सोने को इसलिए भी पसंद किया जाता है, क्योंकि इसकी कीमत लगातार बढ़ती ही रहती है और जरूरत पड़ने पर सोना गिरवी रखकर कर्ज भी आसानी से मिल ही जाता है।

अब जरा ये भी जान लीजिए कि जब आजाद हुए तो उस वक्त 10 ग्राम सोने की कीमत क्या थी? तो आपको बता दें कि उस जमाने में 10 ग्राम सोना सिर्फ 88.62 रुपए में ही आ जाता था। जबकि, आज 10 ग्राम सोने की कीमत 54 हजार रुपए से ज्यादा हो गई है।

यानी, उस समय जितने रुपए में हम 10 ग्राम सोना खरीद सकते थे, आज उतने रुपए में दो लीटर दूध भी नहीं मिलता। आज एक लीटर दूध की औसत कीमत 50 रुपए है।

6. 73 साल में पेट्रोल की कीमत कितनी बढ़ी?
सोने के बाद अब पेट्रोल की बात। लेकिन, उससे पहले आपको बताते हैं कि आजादी के वक्त हमारे यहां कितनी गाड़ियां थीं। मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन का डेटा 1951 से रख रहा है। उस समय देश में 3 लाख के आसपास गाड़ियां रजिस्टर्ड थीं। यानी, आजादी के वक्त ही 3 लाख से कम गाड़ियां हमारे देश में होंगी। लेकिन, अब 30 करोड़ से ज्यादा गाड़ियां रजिस्टर्ड हैं।

इतने सालों में न सिर्फ गाड़ियां, बल्कि पेट्रोल की कीमतें भी बढ़ी हैं। आजादी के वक्त हम सिर्फ 27 पैसे में ही एक लीटर पेट्रोल खरीद सकते थे। लेकिन, आज एक लीटर पेट्रोल 80 रुपए से भी ज्यादा का हो गया है। इस हिसाब से आजादी से लेकर अब तक हमारे यहां पेट्रोल 300 गुना से ज्यादा महंगा हो गया है।

7. 73 साल में कितने रेल यात्री बढ़े? किराया कितना बढ़ा?
16 अप्रैल 1853 वो दिन था, जब हमारे देश में पहली ट्रेन चली थी। जो पहली ट्रेन थी, उसने मुंबई से ठाणे के बीच 33.6 किमी का सफर तय किया था। उसके बाद रेलवे की पटरियां बिछती गईं और धीरे-धीरे रेल ही भारत की लाइफलाइन बन गई। लाइफलाइन इसलिए क्योंकि ट्रेन ही ऐसा जरिया है, जिससे रोजाना करोड़ों यात्री सफर करते हैं।

जब भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारा हुआ, तब भी रेल ही एकमात्र ऐसा जरिया थी, जिससे लोग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आ रहे थे। अभी भी जब कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगा, तो प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने का काम भी रेल ने ही किया।

इसको लाइफलाइन कहने का एक कारण ये भी है कि इससे सफर करने वाले यात्रियों की संख्या हर साल बढ़ ही रही है। 1950-51 में ट्रेन से सालभर में 128 करोड़ यात्री सफर करते थे, जिनकी संख्या 2018-19 में बढ़कर 843 करोड़ से ज्यादा हो गई। यानी, इतने सालों में ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 6.5 गुना बढ़ गई।

अब यात्रियों की संख्या बढ़ी है। महंगाई बढ़ी है। रेल नेटवर्क बढ़ा है। तो जाहिर है किराया भी बढ़ा ही होगा। तो समझिए कि 1950-51 में रेलवे हर एक किमी पर 1.5 पैसा किराया वसूलती थी, जबकि 2018-19 में हर किमी पर 44 पैसे से ज्यादा किराया लगता है। इस हिसाब से रेलवे का किराया भी 30 गुना बढ़ गया है।

अब किराया बढ़ा है तो रेलवे की कमाई भी बढ़ी ही होगी। तो उसके आंकड़े भी देख ही लीजिए। 1950-51 में रेलवे को यात्रियों से 98 करोड़ रुपए का रेवेन्यू सालभर में मिलता था। और 2018-19 में 50 हजार करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यू सालभर में आया।

8. 73 साल में केंद्र सरकार का खर्च कितना बढ़ा?
सब कुछ बढ़ ही रहा है तो केंद्र सरकार के खर्च पर भी नजर डाल ही लेते हैं। जब हम आजाद हुए, तो हमारा पहला बजट आया। आजाद भारत का ये पहला बजट 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के लिए था। इस बजट में सरकार ने 197 करोड़ रुपए रखे थे।

उसके बाद से अब तक हमारे देश के बजट में साढ़े 15 हजार गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। 2020-21 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया था, उसमें सरकार ने 30.42 लाख करोड़ रुपए रखे थे। ये पैसा हमारी हेल्थ, हमारी पढ़ाई, हमारे देश की सुरक्षा, तरक्की और बाकी जगहों पर खर्च होगा।

9. 73 साल में डॉलर के मुकाबले कितना कमजोर हुआ रुपया?
अक्सर आपने सुना होगा कि आजादी के वक्त 1 डॉलर की वैल्यू 1 रुपए के बराबर थी। लेकिन, सरकारी आंकड़ों में ऐसा कोई जिक्र कहीं नहीं मिलता है। दुनिया की एक सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी है थॉमस कुक। पुरानी इसलिए क्योंकि 1881 में ये शुरू हुई थी। ये कंपनी फॉरेन एक्सचेंज की सर्विस भी देती है। यानी डॉलर के बदले रुपया और रुपए के बदले डॉलर।

इस कंपनी की वेबसाइट पर जो डेटा मौजूद है, वो बताता है कि आजादी के वक्त 1 डॉलर की वैल्यू 3 रुपए 30 पैसे थी। आज एक डॉलर की वैल्यू 74 रुपए 79 पैसे हो गई है। यानी, आजादी के बाद से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 23 गुना कमजोर हो गया है।

अब जरा ये भी समझ लीजिए कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने का कितना असर पड़ता है? क्योंकि इसका असर सिर्फ देश की सरकार ही नहीं, बल्कि आम लोगों को पड़ता है। कैसे? तो ऐसा इसलिए क्योंकि दुनियाभर में कारोबार की एक ही करंसी है और वो है डॉलर। अगर हमें विदेश से कुछ भी खरीदना है, तो उसकी कीमत हमें डॉलर में ही देनी होगी। इससे महंगाई भी बढ़ती है।

इसको ऐसे समझिए कि अगर हमें अमेरिका से कोई सामान खरीदना है और उसकी वैल्यू 1 डॉलर है, तो उसके लिए हमें अमेरिका को करीब 75 रुपए देने पड़ेंगे।

10. 73 साल में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व कितना बढ़ा?
रुपए के कमजोर होने का असर हमारे फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व पर पड़ता है। दरअसल, होता क्या है कि दुनिया के हर देश के पास दूसरे देश की करंसी का रिजर्व रहता है। इसके जरिए ही कोई भी देश एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट करता है। इसी रिजर्व को फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व कहते हैं।

आजादी के वक्त देश में कितना फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व था, इस बात के आंकड़े तो नहीं मिल सके हैं। लेकिन, 1950-51 के बाद से इसका डेटा रखा जाने लगा है। इसके मुताबिक, उस समय हमारे देश में 1 हजार 29 करोड़ रुपए का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व था। और 2018-19 में हमारे पास 28.55 लाख करोड़ रुपए का रिजर्व था। यानी, इतने सालों में हमारा फॉरेन करंसी रिजर्व 2.5 हजार गुना से ज्यादा बढ़ गया है।

फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व इसलिए भी जरूरी होता है, क्योंकि ये एक ऐसा खजाना है जो किसी भी आर्थिक संकट से निपटने में मदद करता है। इसके अलावा अगर डॉलर के मुकाबले रुपया ज्यादा होने लगता है, तो आरबीआई रिजर्व डॉलर को बेच देता है।



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