देश में कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले 200 डॉक्टर संक्रमण के कारण दम तोड़ चुके हैं। इनमें से 62 जनरल प्रैक्टिशनर्स हैं और 23 मेडिसिन डॉक्टर हैं। दरअसल, कोरोना के लक्षण दिखने के बाद ज्यादातर मरीज सबसे पहले जनरल प्रैक्टिशनर या मेडिसिन डॉक्टर के पास जाते हैं।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा का कहना है कि मरीजों को सबसे पहले ये ही देखते हैं जिससे संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा इन्हें ही रहता है। इसके अलावा एनेस्थिसिया, डेंटल और कुछ अन्य विभागों के डॉक्टरों की कोरोना से मौत हुई है।
तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 43 डॉक्टर मारे गए हैं। इनमें से तीन ऐसे थे, जिनमें पहले से कोई बीमारी नहीं थी। 32 डॉक्टरों की उम्र 50 साल या इससे कम और 27 की उम्र 70 साल या इससे ज्यादा थी। आईएमए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि डॉक्टरों के परिजन को भी बीमार होने के बाद अस्पतालों में बिस्तर नहीं मिल रहे हैं। डॉक्टरों और उनके परिजन को बीमा सुविधा मिलनी चाहिए।
विवाद: तमिलनाडु सरकार को ज्यादा मौतों पर यकीन नहीं
आईएमए जूनियर विंग के चेयरमैन डॉ. अबुल हसन ने बताया कि शुरू में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन नहीं हुई और पीपीई किट की क्वालिटी भी खराब थी। यही नहीं, बुखार और गैर बुखार वाले मरीजों को अलग-अलग रखने में भी कोताही बरती गई, जिसका खामियाजा डॉक्टरों को भुगतना पड़ा। तमिलनाडु सरकार अपने यहां 43 डॉक्टरों की मौत को स्वीकार नहीं कर रही है।
सरकार ने प्रमाण मांगे हैं। इसलिए अब डॉक्टरों की मौत की वजह के प्रमाण-पत्र इकट्ठा कर सरकार को देने की तैयारी की जा रही है।
सात राज्यों में ही 129 डॉक्टरों ने जान गंवाई
राज्य | मौतें |
महाराष्ट्र | 23 |
बिहार | 19 |
गुजरात | 23 |
दिल्ली | 12 |
मध्य प्रदेश | 6 |
तमिलनाडु | 43 |
हरियाणा | 3 |
सतर्कता: केरल को छोड़कर बाकी जगह दिखी लापरवाही
दिल्ली एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा ने कहा कि फीवर और कोरोना के लक्षण वाले मरीज सबसे पहले कोविड अस्पताल की जगह जनरल प्रैक्टिशनर के पास जाते हैं। कई डॉक्टर भी लापरवाही बरतते हैं। वे पीपीई किट नहीं पहनते और मास्क भी सही तरीके से नहीं लगाते। फिजिकल डिस्टेंस भी नहीं रखते।
केरल में पहला मरीज मिलने के बाद वहां के डॉक्टरों ने बीमारी की गंभीरता को पहचाना। वहां फीवर की जांच करने वाले क्लीनिक में डॉक्टर और अन्य स्टाफ के लिए पीपीई किट अनिवार्य है।
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