कानपुर की प्रेरणा वर्मा ने जब 10वीं पास भी नहीं की थी, तभी उन्हें जॉब शुरू करना पड़ा क्योंकि घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे। मां ने अकेले बेटी और बेटे की परवरिश की थी। प्रेरणा बड़ी थीं, तो उन्होंने घर की जिम्मेदारी समझी और एक इंपोर्टर की कंपनी में कम्प्यूटर ऑपरेटर की नौकरी शुरू की। प्रेरणा को हर महीने 1,200 रुपए सैलरी मिलती थी।
नौकरी के साथ- साथ पढ़ाई भी चल रही थी। सुबह 6 से 10 क्लास अटैंड करती थीं। सुबह 10 से शाम के 6 बजे तक जॉब करती थीं। इसके बाद शाम साढ़े सात बजे तक ट्यूशन लेती थीं और फिर घर आकर खुद पढ़ती थीं और अगले दिन की तैयारी करती थीं। सायबर कैफे भी जाया करती थीं और सर्च करती थीं कि करियर में कहां और क्या किया जा सकता है।
एक दिन कैफे में ही लेदर प्रोडक्ट्स का बिजनेस करने वाला मिला और उसने प्रेरणा को लेदर प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करने का ऑफर दिया। बात ये हुई थी कि धंधा अच्छा सेट हुआ तो पार्टनरशिप में आ जाएंगे। लेकिन प्रेरणा को न लेदर प्रोडक्ट्स के बारे में कुछ पता था और न ही उन्हें मार्केटिंग करनी आती थी। इसके बावजूद उन्होंने मार्केटिंग करना शुरू कर दिया।
कहती हैं, मेरा काम लोगों को प्रोडक्ट खरीदने के लिए राजी करना था। एक महीने में ही मैंने कई ग्राहकों को जोड़ लिया। मैं ऑर्डर जनरेट करने लगी तो मेरे पार्टनर को शायद अच्छा नहीं लगा और उसका बिहेवियर बदलने लगा तो मैंने फिर उसका काम छोड़ दिया।
इसके बाद मेरे पास कोई काम नहीं था। पैसे भी नहीं थे। सब मिलाकर साढ़े तीन हजार रुपए की सेविंग की थी। डेढ़ महीने लेदर प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करके ये समझ आ गया था कि मैं ग्राहक तो जोड़ सकती हूं। इसलिए सोचा कि कुछ ऐसा काम किया जाए, जिसमें शुरू में पूंजी न लगाना पड़े और अपना काम भी शुरू हो जाए।
तो लेदर प्रोडक्ट्स की ट्रेडिंग शुरू करने का आइडिया आया। लेकिन ऑफिस खोलने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए घर के ही एक कमरे को ऑफिस बना लिया। घर की पुरानी टेबल रखी। कम्प्यूटर रखा और ट्रेडिंग शुरू कर दी।
प्रेरणा कहती हैं, मैं लेदर प्रोडक्ट्स की ट्रेडिंग किया करती थी। जिसको जो जरूरत होती थी, उस तक वो सामान पहुंचाती थी। मार्केट भी घूमती थी। लोगों को ऑनलाइन भी जोड़ रही थी। शुरू के सालों में जितना खर्चा होता था, उतना ही पैसा भी आता था। कोई प्रॉफिट नहीं था लेकिन मैं इंडस्ट्री को समझ रही थी। थोड़े क्लाइंट जुड़े तो फिर मैने घर से निकलकर दो कमरों का ऑफिस बना लिया और वहां से ट्रेडिंग करने लगी।
धीरे-धीरे मेरी सोर्सिंग होने लगी थी। क्लाइंट बनने लगे थे। मैं पांच साल ट्रेडिंग करते रही। लेदर इंडस्ट्री मेल डॉमिनेट होती है। यहां के मार्केट में घूमना और लोगों से बात करना भी किसी चुनौती से कम नहीं था लेकिन मेरा फोकस क्लियर था। मुझे सिर्फ अपने काम से मतलब था इसलिए बिना सोचे में लगी रहती थी।
डोमेस्टिक मार्केट का अच्छा नॉलेज होने के बाद मैंने 2007 में पहली बार सामान बाहर भेजा। मुझे एक रिफरेंस से इंग्लैंड का ऑर्डर मिला था। वहां कुछ लेदर प्रोडक्ट्स पहुंचाने थे। मैंने टाइम पर वो प्रोजेक्ट पूरा किया। बस यहीं से मेरे बिजनेस को ग्रोथ मिलना शुरू हुई। मैं विदेशों में एक्सपोर्ट करने लगी। कभी रिस्क लेने से डरी नहीं।
यदि पता चलता था कि कहीं थोड़ी रिस्क है, लेकिन फायदा भी है तो मैं रिस्क ले लेती थी। 2010 में मुझे यूपी सरकार ने आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस के लिए अवॉर्ड दिया। यह मेरे लिए किसी सपने की तरह था। इस अवॉर्ड से मेरा कॉन्फिडेंस बहुत तेजी से बढ़ा और मेरा अपने बिजनेस पर फोकस और ज्यादा हो गया।
2010 में ही मैंने खुद की फैक्ट्री शुरू की। हालांकि तब भी मुझे बैंक से लोन नहीं मिल पाया था क्योंकि उन्हें कुछ गिरवी रखना था, जो मेरे पास था नहीं। फिर मैंने जितना कैपिटल इकट्ठा किया था वो पूरा फैक्ट्री में लगा दिया और लेदर प्रोडक्ट्स का उत्पादन शुरू कर दिया। आज 25 से ज्यादा देशों में फैशन, फुटवियर, लेदर गुड्स, हैंडीक्रॉफ्ट में मेरी कंपनी डील करती हूं। 3500 रुपए से शुरू हुआ सफर 2 करोड़ रुपए के टर्नओवर तक पहुंच चुका है।
मैंने न एमबीए किया, न लेदर मार्केटिंग की कोई ट्रेनिंग ली। मेरा तो आर्ट्स में ग्रेजुएशन और इकोनॉमिक्स में पीजी हुआ है। पढ़ाई भी हिंदी मीडियम में हुई। लेकिन मुझे सिर्फ अपना कुछ करना था, इसलिए मैं ये सब कर पाई और मेहनत के साथ सक्सेस मिलती चली गई। अब एमबीए, बीटेक के स्टूडेंट्स को मोटिवेट करने के लिए मुझे बुलाया जाता था। एक्सपर्ट पर लेक्चर देने जाती हूं। यही सब मेरी उपलब्धि है।
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