अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास होने के साथ ही ‘काशी-मथुरा बाकी है’ जैसे नारे भी उठने लगे हैं। खुद को राम मंदिर आंदोलन का अगुआ बताने वाले बीजेपी के पूर्व सांसद और बजरंग दल के संस्थापक विनय कटियार ने खुद इस रिपोर्टर से कहा था, “अयोध्या में मेरा रोल यहीं तक था। अब मैं मथुरा पर ध्यान लगा रहा हूं।” ये बात उन्होंने अयोध्या में होने वाले भूमि पूजन से दो रोज पहले कही थी।
‘मथुरा बाकी है’ जैसे नारे क्यों लगाए जाते हैं? और क्यों कई हिंदू संगठन लगातार अयोध्या की ही तरह मथुरा को भी ‘मुक्त’ कराने की बात कहते रहे हैं? ये समझने के लिए मथुरा के इतिहास पर एक नजर डालना जरूरी है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, मथुरा भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का जन्मस्थान है। लिहाजा, यहां सदियों पुराना श्री कृष्ण जन्म भूमि मंदिर भी होगा, जिसे देखने लाखों श्रद्धालु हर साल मथुरा आते रहे हैं।
मथुरा का यह श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर इतिहास में कई बार टूटा और कई बार बनाया गया। कई इतिहासकार दावा करते हैं कि 17वीं सदी में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर इसके एक हिस्से में मस्जिद का निर्माण करवा दिया था, जो कि आज भी मंदिर के ठीक बगल में ही मौजूद है। कई हिंदू संगठनों का दावा है कि जिस जगह पर यह शाही ईदगाह मस्जिद मौजूद है, ठीक उसी जगह पर भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। यही इस विवाद का मुख्य कारण भी है।
हालांकि, इस मामले में 12 अक्टूबर 1968 को शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के बीच एक समझौता हो चुका है। इस समझौते के बाद मस्जिद की कुछ जमीनें मंदिर के लिए खाली की गई थीं और ये मान लिया गया था कि यह विवाद अब हमेशा के लिए सुलझा लिया गया है। लेकिन, श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल शर्मा और न्यास के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी इस समझौते को ही गलत बताते हैं।
न्यास से जुड़े लोग इस मंदिर की ‘मुक्ति’ की बात तो कहते हैं, लेकिन किसी भी हिंसक आंदोलन या आपसी सौहार्द बिगाड़ने वाली गतिविधि का समर्थन नहीं करते। स्थानीय लोगों के मुताबिक, जन्माष्टमी के मौके पर जब मंदिर में ज्यादा भीड़ हो जाती है तो श्रद्धालुओं को मस्जिद की तरफ से बाहर निकाला जाता है। वहीं ईद के मौके पर मंदिर के इलाके में नमाजी खड़े होकर ईद की नमाज पढ़ते हैं।
बीते दिनों इस शहर में कुछ गतिविधियां ऐसी भी हुईं, जिनके चलते प्रेम नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले मथुरा का जिक्र होना शुरू हो गया। मथुरा के आचार्य देव मुरारी बापू ने हाल ही में श्री कृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास के नाम से एक ट्रस्ट का गठन किया है, जिसका उद्देश्य श्री कृष्ण जन्म भूमि को मुक्त कराना बताया गया है। इस घटना ने राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह बनाई और चर्चा तेज होने लगी कि अयोध्या के बाद मथुरा के लिए कुछ लोग सक्रिय होने लगे हैं।
भड़काऊ गतिविधियों के चलते मथुरा प्रशासन ने आचार्य देव मुरारी बापू के खिलाफ धार्मिक उन्माद भड़काने का मामला दर्ज किया। इसके साथ ही श्री कृष्ण जन्म भूमि न्यास (ट्रस्ट) के सचिव कपिल शर्मा ने भी उनके खिलाफ फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज करवाई है। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने आचार्य देव मुरारी बापू सहित 13 अन्य लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है।
पुलिस को दिए अपने बयान में कपिल शर्मा ने कहा है कि आचार्य देव मुरारी बापू समेत 13 लोगों ने मिलकर श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट से मिलते-जुलते नाम वाला ट्रस्ट बनाया है जिसके जरिए लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ऐसा करके लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जा रही है।
श्री कृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट वो संस्थान है, जो कृष्ण जन्म भूमि की देखरेख करता है। ऐसा दावा किया जाता है कि इस ट्रस्ट की स्थापना करीब 70 साल पहले महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में हुई थी और राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष नृत्यगोपाल दास ही इसके भी अध्यक्ष हैं।
कृष्ण जन्मभूमि को मुक्त करवाने का दावा करने वाले आचार्य देव मुरारी बापू के खिलाफ जिस तरह से न्यास के सचिव कपिल शर्मा ने मुकदमा दर्ज करवाया है, क्या उसके आधार पर ये माना जा सकता है कि न्यास से जुड़े लोग ‘मथुरा की मुक्ति’ जैसी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते? इस सवाल के जवाब में कपिल शर्मा कहते हैं, “मंदिर की स्थिति जो आज आप देख रहे हैं वो कुछ साल पहले तक नहीं थी। यहां बहुत गंदगी रहती थी और मंदिर के पास में ही गाय तक कटती थीं। बीते कुछ सालों में हालात थोड़े ठीक हुए हैं। लेकिन, मंदिर की मुक्ति को लेकर कोई संदेह किसी को नहीं होना चाहिए। हां, इस देश में अदालतें हैं लिहाजा ये फैसला वहीं से आना चाहिए। सड़क पर कुछ तय नहीं होता और ना होगा।”
दूसरी तरफ शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के मौजूदा अध्यक्ष जेड हसन का मानना है कि मथुरा में मंदिर-मस्जिद से जुड़ा कोई भी पहलू विवादित नहीं है। मथुरा की मिली-जुली संस्कृति का हवाला देते हुए वो कहते हैं, “देखिए। आज की तारीख में कोई विवाद नहीं है। अब कुछ लोग अपने फायदे के लिए कोई विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं तो वो अलग बात है। मैं उस बारे में कुछ नहीं कहूंगा। मथुरा तो प्रेम की नगरी है। यहां दुनिया को प्रेम का संदेश देने वाले कन्हैया का जन्म हुआ है। इस जमीन पर विवाद हो ही नहीं सकता। एक छोटा-सा उदाहरण आपको देता हूं। ईद के मौके पर जब हमारे हिंदू दोस्त केक भेंट करते हैं तो उस केक पर बांसुरी और मोरपंख की आकृति बनी होती है और लिखा रहता है- ईद मुबारक!”
मथुरा की कुल आबादी का बीस प्रतिशत मुस्लिम हैं। शहर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कृष्ण के बाल स्वरूप जिसे लड्डू-गोपाल कहते हैं की मूर्ति बनाने, खास पोशाक तैयार करने और मुकुट बनाने जैसे काम से रोजगार पाता है। शहर ने पिछले कुछ सालों में अच्छी तरक्की की है। यहां छोटे-बड़े लगभग तीन सौ होटल हैं, जिनमें साल भर बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक होटल के मैनेजर के मुताबिक, शहर के किसी भी होटल में चार-पांच दिन पहले ही बुक न किया हो तो कमरा नहीं मिल पाता।
सवाल उठता है कि तेजी से विकास कर रहे और मंदिरों के सहारे व्यापार बढ़ा रहे परिवारों में मंदिर-मस्जिद विवाद के लिए कितनी जगह है? इस सवाल के जवाब में शहर के निवासी, पेशे से वकील और मथुरा के मिजाज को समझने वाले मधुवन दत्त चतुर्वेदी कहते हैं, “स्थानीय लोग मंदिर-मस्जिद के विवाद में कभी नहीं उलझना चाहेंगे। ये शहर हमेशा शांत रहा है। 1992 में भी मथुरा में कोई फसाद नहीं हुआ था और उसके बाद भी अमूमन शांति ही रही है। अगर मैं इस शहर के मिज़ाज को थोड़ा भी समझता हूं तो कह सकता हूं कि यहां अयोध्या जैसा कोई विवाद पैदा नहीं होगा।”
मथुरा केवल कृष्ण की जन्मभूमि नहीं है। केंद्र और यूपी की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी से जुड़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक मजबूत गढ़ भी है। स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि मथुरा को लेकर की जाने वाली ऐसी कोशिशें नाकाम ही होंगी। लेकिन, ये भी सच है कि विवाद को हवा देने वाले तत्व यहां खासे सक्रिय हैं।
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