आपने अक्सर सुना होगा कि महिलाओं को पुरुषों से बराबरी का हक नहीं मिल रहा। पुरुषों के मुकाबले उनका वेतन कम होता है। कुछ जगहों पर ऐसा है भी। लेकिन, यह भी याद करना जरूरी है कि इस असमानता के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी गई थी अमेरिका में। वहां महिलाओं को वोटिंग का अधिकार तक नहीं था। 50 से ज्यादा साल लड़ाई चली। तब जाकर 1920 में 26 अगस्त को उन्हें वोटिंग का अधिकार मिला।
इस दिन को याद करते हुए यूएस में महिला समानता दिवस या वुमन इक्विलिटी डे के तौर पर मनाया जाता है। चूंकि, लैंगिक समानता का मुद्दा सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है, इसलिए भले ही अंतरराष्ट्रीय न हो, इस दिन पूरी दुनिया में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी पर लाने के प्रयासों की जरूरत को दोहराया जाता है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की बात की जाती है।
सबसे पहले, क्या है यह वुमन इक्विलिटी डे?
- वुमन इक्विलिटी डे हर साल 26 अगस्त को मनाया जाता है। 1920 में इसी दिन अमेरिकी संविधान में 19वां अमेंडमेंट हुआ था। इसके जरिये महिलाओं को पुरुषों के बराबर वोटिंग का अधिकार मिला था।
- अब यह धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय सेलिब्रेशन बन गया है। दुनियाभर की महिलाएं इस दिन को समानता दिवस के तौर पर मनाती हैं। भारत में कई संगठन डिबेट्स, प्रतियोगिताएं, गेट-टूगेदर आयोजित करते हैं।
महिला समानता दिवस का इतिहास क्या है?
- अमेरिका में महिला अधिकारों की लड़ाई 1853 में शुरू हुई। विवाहित महिलाओं ने संपत्ति पर अधिकार मांगना शुरू कर दिया था। तब अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों में महिलाओं की स्थिति आज जैसी नहीं थी। उन्हें गुलाम समझा जाता था।
- 1890 में अमेरिका में नेशनल अमेरिकन वुमन सफरेज एसोसिएशन बना। इस संगठन ने महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देने के आंदोलन का नेतृत्व किया। इसने ही निर्णायक लड़ाई लड़ी और 1920 में वोटिंग का अधिकार पाया।
- अमेरिकी संसद ने 1971 में तय किया कि 26 अगस्त को वुमन इक्विलिटी डे के तौर पर मनाया जाएगा। तब से ही यह दिन मनाया जा रहा है। उसी की देखादेखी पूरी दुनिया में यह डे मनाया जाता है।
भारत में महिलाओं की वोटिंग की क्या स्थिति है?
- भारत में महिलाओं की वोटिंग का इतिहास अमेरिका जितना ही है। ब्रिटिश शासन के समय 1921 में मद्रास स्टेट ने सबसे पहले महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिया था। 1950 में पूरे देश में महिलाएं वोट करने लगीं।
- भारत के संविधान में महिलाओं के वोटिंग अधिकार का उल्लेख संविधान के आर्टिकल 326 में है। 1962 के चुनावों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 46.63% था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में यह बढ़कर 67.2% हो गया।
- ध्यान देने वाली बात यह है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भारत में कुल वोटिंग 67.4% हुई और महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत महज 0.2% कम था। बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, झारखंड, केरल, उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों में महिलाओं ने वोटिंग में पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया था।
महिलाओं को नेता बनाने में पीछे क्यों रह गया अमेरिका?
- भारत, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, इजरायल और डेनमार्क में महिला राष्ट्राध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन अब तक अमेरिका में किसी भी महिला को राष्ट्राध्यक्ष बनने का मौका नहीं मिला है।
- 2016 में हिलेरी क्लिंटन ने डोनाल्ड ट्रम्प से कड़ा मुकाबला किया था, लेकिन जीत नहीं सकी थी। 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में भी अमेरिका को महिला राष्ट्रपति मिलने की संभावना खत्म हो चुकी है।
- यदि हम भारत की बात करें तो पिछले साल के चुनावों में 78 महिला सांसद जीतकर संसद पहुंची हैं। यह संसद में 14.58% प्रतिनिधित्व बनता है। हम संसद में महिलाओं की भागीदारी को लेकर दुनिया में 20वें स्थान पर हैं।
- हमारे यहां पंचायत से संसद तक महिलाओं को 33% आरक्षण देने वाला विधेयक राज्यसभा में पारित हो चुका है। किसी न किसी कारण से यह विधेयक लोकसभा से पारित नहीं हो पा रहा।
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