रविवार, 20 सितंबर 2020

आठ नौकरियां बदलीं, फिर पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए मशरूम उगाना शुरू किया; 3 लाख रुपए इन्वेस्ट किए, अब हर साल 2 करोड़ का कारोबार करती हैं

उत्तराखंड की एक लड़की पढ़ाई करने दिल्ली गई, वहां एमिटी यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई की। फिर प्राइवेट कंपनी में 25 हजार रुपए महीने की नौकरी भी की। एक के बाद एक करीब 8 नौकरियां बदलीं, क्योंकि इनसे संतुष्ट नहीं थी। कुछ अलग करने की चाह उसे वापस अपने राज्य ले आई। 2013 में जब वो वापस उत्तराखंड लौटी तो देखा कि नौकरी की तलाश में प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों से लोग दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हैं। तभी इस लड़की ने कुछ अलग करने का फैसला लिया।

हम बात कर रहे हैं देहरादून में रहने वाली 30 साल की दिव्या रावत की। आज दिव्या मशरूम कल्टीवेशन के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं। ‘मशरूम गर्ल’ से नाम से पहचान बनाने वाली दिव्या को उत्तराखंड सरकार ने मशरूम का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया है। मशरूम के जरिए दिव्या आज करीब 2 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार कर रही हैं।

दिव्या कहती हैं, ‘मशरूम जल, जमीन, जलवायु की नहीं बल्कि तापमान की खेती है। इसकी इतनी वैरायटी होती हैं कि हम हर मौसम में इसकी खेती कर सकते हैं। फ्रेश मशरूम मार्केट में बेच सकते हैं और इसके बाय प्रोडक्ट भी बना सकते हैं।’

दिव्या मशरूम कल्टीवेशन के साथ-साथ इसके बाय प्रोडक्ट भी बनाती हैं।

पलायन रोकने के लिए रोजगार की जरूरत थी, इसलिए मशरूम की खेती को चुना

दिव्या बताती हैं, ‘दिल्ली में मैंने देखा कि बहुत सारे पहाड़ी लोग 5-10 हजार रुपए की नौकरी के लिए अपना गांव छोड़ कर पलायन कर रहे हैं। मैंने सोचा कि मुझे अपने घर वापस जाना चाहिए और मैं अपने घर उत्तराखंड वापस आ गई। मैंने सोचा कि अगर पलायन को रोकना है तो हमें इन लोगों के लिए रोजगार का इंतजाम करना होगा। इसके लिए मैंने खेती को चुना, क्योंकि खेती जिंदगी जीने का एक जरिया है।’

मशरूम की खेती को चुनने के पीछे की वजह को लेकर दिव्या बताती हैं, ‘मैंने मशरूम इसलिए चुना, क्योंकि मार्केट सर्वे के दौरान यह पाया कि मशरूम के दाम सब्जियों से बेहतर मिलते हैं। एक किलो आलू आठ से दस रुपए तक मिलता है, जबकि मशरूम का मिनिमम प्राइज 100 रुपए किलो है। इसलिए मैंने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया।

2015 में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली। इसके बाद 3 लाख रुपए के इन्वेस्टमेंट के साथ खेती शुरू की। धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलता गया और जल्द ही दिव्या ने अपनी कंपनी भी बना ली। उन्होंने मशरूम की खेती के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया। दिव्या अब तक उत्तराखंड के 10 जिलों में मशरूम उत्पादन की 55 से ज्यादा यूनिट लगा चुकी हैं। उन्होंने बताया कि एक स्टैंडर्ड यूनिट की शुरुआत 30 हजार रुपए में हो जाती है। इसमें प्रोडक्शन कॉस्ट 15 हजार रुपए होती है और 15 हजार इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च होता है जो मिनिमम 10 साल तक चलता है।

मशरूम कल्टीवेशन के जरिए दिव्या ने स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार दिया।

शुरुआत में लोगों का माइंड सेट बदलना सबसे बड़ी चुनौती थी

दिव्या ने बताया कि शुरुआत में एक सबसे बड़ी परेशानी लोगों का माइंड सेट बदलना था। लोगों को लगता था कि ये काम नहीं हो पाएगा। जब मैंने उन्हें बताना शुरू किया कि मशरूम की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प है, तो लोग कहने लगे कि जब इतना ही अच्छा है तो आप खुद करो। मैं लोगों के सामने एक उदाहरण के तौर पर खड़ी हुई, इसके बाद लोगों ने इसे समझा और इस फील्ड में काम करने लगे।

मशरूम की खेती करने की चाह रखने वालों को दिव्या इसके कल्टीवेशन की ट्रेनिंग भी देती हैं।

10 बाय 12 के कमरे में भी मशरूम की खेती, दो महीने में हाेगा 4 से 5 हजार का प्रॉफिट

दिव्या ने बताया कि कोई भी आम इंसान 10 बाय 12 के एक कमरे से भी मशरूम की खेती शुरू सकता है। मशरूम की एक फसल की साइकिल करीब 2 महीने की होती है। इसके सेट अप और प्रोडक्शन की कॉस्ट करीब 5 हजार रुपए आती है। एक कमरे में आप दो महीने के सभी खर्चे काट कर 4 से 5 हजार रुपए का प्रॉफिट निकाल सकते हैं। मशरूम की खेती के लिए शुरुआती ट्रेनिंग की जरूरत होती है जो आप अपने प्रदेश के एग्रीकल्चर या हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट से ले सकते हैं। इसके अलावा हमारे हेल्पलाइन नंबर (0135 253 3181) पर कॉल करके भी जानकारी ली जा सकती है।

दिव्या ने कीड़ा जड़ी मशरूम के कल्टीवेशन के लिए एक लैब बनाई है, यह मशरूम 3 लाख रुपए प्रति किलो तक बिकता है।

3 लाख रुपए प्रति किलो मिलने वाले कीड़ा जड़ी मशरूम के कल्टीवेशन के लिए लैब बनाई

फिलहाल दिव्या ‘सौम्या फूड प्राइवेट कंपनी’ चलाती हैं, जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए में है। उनका मशरूम प्लांट भी है, जहां साल भर मशरूम कल्टीवेशन होता है। इस प्लांट में सर्दियों के मौसम में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों के मौसम में मिल्की मशरूम का कल्टीवेशन होता है। इसके साथ ही दिव्या हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली कीड़ा जड़ी की एक प्रजाति कार्डिसेफ मिलिटरीज़ का भी कल्टीवेशन करती हैं, जिसकी बाजार में कीमत 2 से 3 लाख रुपए प्रति किलो तक है। कीड़ा जड़ी के कमर्शियल कल्टीवेशन के लिए दिव्या ने बकायदा लैब बनाई है। दिव्या की ख्वाहिश है कि आम आदमी की डाइट में हर तरह से मशरूम को शामिल किया जाए।



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देहरादून में रहने वाली 30 साल की दिव्या रावत को उत्तराखंड के लोग मशरूम गर्ल के नाम से जानते हैं।


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