गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

युवा फालतू फोन से छुटकारा पाएं और भारत को अमीर बनाने के लिए काम करें

प्रिय मित्रों, मैं नहीं जानता की एक बड़े समाचार पत्र में प्रकाशित होने के बावजूद, यह पत्र आप तक पहुंचेगा या नहीं। आपमें से तमाम लोग फोन पर बात करने, वीडियो देखने, चैटिंग, सोशल मीडिया पर कमेंट या सिर्फ सुंदर सेलेब्रिटीज की फीड देखने में व्यस्त होंगे, क्योंकि किसी आर्टिकल को पढ़ना आपकी प्राथमिकता में बहुत नीचे है। हालांकि, अगर आपको इसे पढ़ने का मौका मिल जाए तो कृपया पूरा पढ़ें।

आप फोन पर अपनी जिंदगी को बर्बाद कर रहे हो। हां, आप भारत के इतिहास की पहली युवा पीढ़ी हो, जिसे स्मार्टफोन व सस्ता डेटा उपलब्ध है और आप हर दिन घंटों इस पर बिता रहे हो। अपना स्क्रीन टाइम देखें, जो युवाओं के लिए अक्सर औसत 5-7 घंटे है। रिटायर अथवा स्थापित लोग अपने गैजेट्स पर इतना समय व्यतीत कर सकते हैं। एक युवा, जिसे अभी अपनी जिंदगी बनानी वह ऐसा नहीं कर सकता।

पांच घंटे आपके उत्पादकता वाले कामकाजी समय का एक तिहाई

पांच घंटे आपके उत्पादकता वाले कामकाजी समय का एक तिहाई है। फोन की लत आपकी जिंदगी का एक हिस्सा खा रही है। यह कॅरिअर की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रही है और दिमाग खराब कर रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा था तो आपकी पीढ़ी 4Gotten generation (भूली हुई पीढ़ी) बन जाएगी, यानी एक पूरी पीढ़ी जिसे 4G की लत है, जो लक्ष्यहीन है और देश के बारे में अनभिज्ञ है। फोन की लत के यह तीन टॉप नकारात्मक प्रभाव हैं-

पहला, निश्चित ही यह समय की बर्बादी है, जिसका इस्तेमाल जीवन में अधिक उत्पादक चीजें पर हो सकता है। फोन पर लगने वाले तीन घंटे बचाकर उन्हें फिटनेस, कुछ सीखने, पढ़ने, अच्छी नौकरी तलाशने, बिजनेस खोलने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

दूसरे, फिजूल कंटेंट देखने से आपका समझ संबंधी दिमाग कमजोर होता है। हमारे दिमाग के दो क्षेत्र होते हैं- ज्ञान (समझ) संबंधी और भावनात्मक। एक अच्छा दिमाग वह है, जिसमें दोनों अच्छे से काम करते हैं। जब आप कबाड़ देखते हैं तो ज्ञान संबंधी दिमाग कम इस्तेमाल होता है। जल्द ही आपकी सोचने व तर्क सहित बहस की क्षमता कम हो जाती है।

आप किसी बात के गुण-दोष देखने व सही फैसले में विफल होने लगते हैं। आप सिर्फ भावनात्मक दिमाग से काम करते हैं। सोशल मीडिया पर स्थायी गुस्सा, ध्रुवीकरण, किसी सेलेब्रिटी या राजनेता के धुर प्रशंसक या उससे घृणा और किसी टीवी एंकर की लोकप्रियता, ये सभी उस पीढ़ी की ओर इशारा करते हैं, जिसका नियंत्रण भावनात्मक दिमाग के हाथ में है। इसलिए वे जिंदगी में अच्छा नहीं कर पाते। इससे बचने का एक ही तरीका है कि अपने दिमाग को सुन्न न होने दें और उसे उत्पादक कामों में लगाए रखें।

तीसरा, स्क्रीन पर कई घंटे बिताने से मनोबल और ऊर्जा का क्षय होता है। जिंदगी में सफलता लक्ष्य निर्धारित करने, प्रेरित रहने और कड़ी मेहनत करने से मिलती है। जबकि स्क्रीन देखना हमें आलसी बनाता है। आपमें विफलता का एक डर बैठ जाता है, क्योंकि आपको भरोसा नहीं होता कि आप काम कर सकते हैं। इसलिए आप कारण तलाशने लगते हैं कि जिंदगी में सफलता क्यों नहीं मिली। आप एक दुश्मन तलाशने लगते हैं- आज के बुरे राजनेता, पुराने बुरे राजनेता, मुस्लिम, बॉलीवुड और उसका भाई-भतीजावाद, अमीर, प्रसिद्ध लोग या कोई और विलेन जिसकी वजह से आपकी जिंदगी वह नहीं हो सकी जो हो सकती थी।

सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने से मदद नहीं मिलेगी

हां, सिस्टम अन्यायपूर्ण है। लेकिन सोशल मीडिया पर समय बर्बाद करने से मदद नहीं मिलेगी। अपने ऊपर काम करने से मिलेगी। क्या आप अपना अधिकतम कर रहे हैं? इस फोन को तब तक खुद से दूर रखें जब तक आप कुछ बन नहीं जाते। विजेता अन्याय के खिलाफ भी रास्ता निकाल लेते हैं। आप भी निकाल सकते हैं।

यह आप पर है कि आप भारत को कहां ले जाना चाहते हैं। उस पीढ़ी के बारे में सोचें जिसने हमें आजादी दिलाई। मुझे आज भी मंडल कमीशन का विरोध या 2011 का अन्ना आंदोलन याद है। युवा राष्ट्रीय मुद्दों की परवाह करता था। क्या आज का युवा इस बात की परवाह करता है कि हमें असल में क्या प्रभावित कर रहा है? या फिर वह किसी सनसनीखेज समाचार पर भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करता है?

सबसे जरूरी हमारी अर्थव्यवस्था को फिर से उठाना होना चाहिए। क्या हम उस पर फोकस कर रहे हैं? या फिर हमें एक ऐसे विज्ञापन पर गुस्सा होना चाहिए, जिसमें कोई अंतरधार्मिक जोड़ा दिखाया जाता है। क्या आपको कॅरिअर पर फोकस करना चाहिए या कभी खत्म न होने वाले हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर? आप अच्छी जिंदगी बनाना चाहते हैं या बॉलीवुड की साजिशों को हल करना?

आप आज के युवा हैं और आपको इस सवालों का जवाब तय करना है। आप खुद को और इस देश को वहां ले जाइए, जहां आप जाना चाहते हैं। भारत को गरीब और घमंडी बनाने का लक्ष्य न रखें। भारत और खुद को अमीर और सौम्य बनाने का लक्ष्य रखें। इस फालतू फोन से छुटकारा पाएं और दिमाग को उत्पादक और रचनात्मक चीजों में व्यस्त करें। देश को बनाने वाली पीढ़ी बनें। (generation that 4Ges India ahead)एक 4Gotten पीढ़ी की तरह खत्म न हों। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार


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