बक्सर से करीब 7-8 किमी की दूरी पर एक गांव है महदह। बड़ा गांव है। 10 हजार के आसपास की आबादी वाला। शाम के 4 बजे का वक्त है। गांव के प्रवेश द्वार पर कुछ युवा और बुजुर्ग बैठे हैं। वैसे भले ही माहौल चुनावी न बन पाया हो, लेकिन मौसम चुनाव का है, सो इनके बीच भी चर्चा पॉलिटिक्स पर ही चल रही है।
एक युवक कह रहा है, 'लगता है चौबे जी (अश्विनी चौबे) परशुराम बाबा को फंसा दिए हैं। लड़ाई बहुत टक्कर वाली है। हमरा त लगता है कहीं कांग्रेस फिर से न जीत जाए।’ तभी एक बुजुर्ग बोल पड़ते हैं, ‘तोहार दिमाग त ठीक बा न, बक्सर से कबो भाजपा हारी (दिमाग तो ठीक है न, बक्सर से कभी भाजपा हारेगी)।'
इसी बीच उनकी डिबेट के बीच मैंने एंट्री ले ली है, 'बाबा, पिछला चुनौवा त भाजपा हारल रहे न। वो बोले, 'उ टाइम गईल बबुआ, अबकी भाजपा के कोई न रोक सकी (वो समय गया, इसबार भाजपा को कोई नहीं रोक सकेगा)।
बक्सर सीट से भाजपा प्रत्याशी परशुराम चौबे इसी गांव के हैं। कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर ‘हवलदार डीजीपी पर भारी पड़ गया’ जुमला काफी चर्चा में रहा था। परशुराम चौबे वही हवलदार हैं, जो अब नौकरी छोड़कर नेतागिरी में आ चुके हैं।
यहां के लोग इस बात से खुश जरूर है कि गांव के आदमी को टिकट मिला है, लेकिन जीत को लेकर मन में थोड़ा अगर-मगर भी बना हुआ है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिलता तो जीत आसान होती।
पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे का गांव भी इसी जिले में पड़ता है। यहां से करीब 10 किमी दूर है गेरूआबांध। गांव से पहले एक छोटी सी चाय-समोसे की दुकान है। यहां भी चार-पांच लोग बैठे हैं और बातचीत जारी है, लेकिन चुनावी गुणा-गणित से दूर।
हमने पूछा- चुनाव का क्या माहौल है। समोसे का मसाला तैयार कर रहे युवक ने अनमने भाव से कहा, ‘माहौल का बताएं हम, चुनाव के बाद कउनो झांकने भी आता है यहां। कोरोना में हम 14 दिन क्वारैंटाइन रहे, नीतीश बोले थे कि हजार रुपया देंगे, एक पैसा भी नहीं दिया।’
पांडेजी (गुप्तेश्वर पाण्डेय) कुछ नहीं किये! के जवाब में बोले- ‘छोड़िए महाराज, उ का करेंगे। एतना बड़का अधिकारी थे, चाहते तो ई पूरा जवार( इलाका) चमका देते।’
यह बतकही यहीं छोड़ हम पांडेजी के गांव पहुंचे तो एक छोटी सी झोपड़ी में 5-6 लोग बैठे मिले। उनसे कुछ बतियाना चाहा तो एक युवक बोला, 'ई बताइए कोई कोरोना के समय बोलने की हिम्मत किया है। देश में खाली दो ही आदमी है, जो बोला है। एक मोदी और दूसरा गुप्तेश्वर पांडे। नीतीश भी बोलने की हिम्मत नहीं कर पाए। अगर बक्सर से गुप्तेश्वर पांडे को टिकट मिला होता तो बक्सर सबसे हॉट सीट होता। मीडिया का तो यहां जमावड़ा लगा होता।’
वो कहते हैं, 'भाजपा ने ही टिकट काटा है इनका। भाजपा ने पहले 2009 में धोखा दिया और अब फिर 2020 में। ई बेर के चुनाव में हम भाजपा को सबक सिखाएंगे। मैंने पूछा कि एक-दो गांव के विरोध से कुछ फर्क पड़ेगा क्या? वो कहते हैं, ‘देखिए ई विधानसभा के चुनाव है। यहां एक गांव की तो बात छोड़िए एक वोट से फर्क पड़ता है। आप देखिएगा बक्सर और राजपुर दोनों जगह एनडीए का क्या हाल होता है।’
गांव में सुशांत सिंह राजपूत और टीआरपी घोटाले की भी खूब चर्चा है। एक बुजुर्ग कहते हैं, उ कौन ठाकरे है न मुख्यमंत्री महाराष्ट्र के, उ बिहारियों को देखना नहीं चाहता है। जैसे दो महीना उ केस नहीं दर्ज किया, उससे तो यही लगता है न कि उहो ई खेल में शामिल हैं। एक युवक तो मुंबई के पुलिस कमिश्नर का इस्तीफा भी मांग रहा है कि उसने एक चैनल को जानबूझकर फंसाया। हालांकि, ये लोग भावनाओं में ज्यादा मंत्रमुग्ध हैं, जमीनी फैक्ट पर कोई बात नहीं करना चाहता, ठीक अपने नेताओं की तरह।
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